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Home >> Division >> LC and ILAS Division >> Indo EU joint seminar. रोजगार, बेरोजगारी और प्रशिक्षण के मुद्दे प्रस्तुतकर्ता पी. के. राय उप महानिदेशक (रोजगार) रोजगार एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय , श्रम और रोजगार मंत्रालय, भ्रातार सरकार. विश्व में रोजगार और बेरोजगारी का परिदृश्य.
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Home >> Division >> LC and ILAS Division >> Indo EU joint seminar रोजगार, बेरोजगारी और प्रशिक्षण के मुद्देप्रस्तुतकर्तापी. के. रायउप महानिदेशक (रोजगार)रोजगार एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय ,श्रम और रोजगार मंत्रालय,भ्रातार सरकार
विश्व में रोजगार और बेरोजगारी का परिदृश्य दुनिया में लगभग सभी देशों में रोजगार और बेरोजगारी की समस्या है। दुनिया में वर्ष 2005 में बेरोजगार व्यक्तियों की कुल संख्या 191.8 मिलियन थी। बेरोजगारी की दर श्रम शक्ति का लगभग 6.3% थी। 1.37 बिलियन लोग हालांकि रोजगार प्राप्त थे, पर उनकी एक दिन की कमाई 2 अमरीकी डॉलर से भी कम थी। इसी प्रकार 520.1 मिलियन लोग हालांकि रोजगार प्राप्त थे, पर उनकी एक दिन की कमाई 1 अमरीकी डॉलर से भी कम थी। तो समस्या यह है कि 711.9 मिलियन डॉलर कि व्यवस्था की जाय, जिससे कम से कम 1 डॉलर प्रति दिन माना जा सके।
भारत में रोजगार और बेरोजगारी का परिदृश्य S क्र.सं.मद2004-2005 जन. 2005 के अनुसार कुल जनसंख्या1092.96 मिलियन(परिलक्षित) कुल श्रम शक्ति469.94 मिलियन कुल रोजगार 459.10 मिलियन कुल खुली बेरोजगारी संख्या10.84 मिलियन कुल श्रम शक्ति के मुक़ाबले बेरोजगारी दर2. 3 % संगठित क्षेत्र में रोजगार (2004) 26.4 मिलियन Cont...
क्र.सं.मद 1999-2000 असंगठित क्षेत्र में रोजगार 432.7 मिलियन रोजगार कार्यालय में पंजीकृत कुल बेरोजगार 39.3 मिलियन (31-12-2005 की स्थिति में) रोजगार कार्यालय में पंजीकृत कुल युवा28.8 मिलियन 31-12-2004 की स्थिति में कार्यशील गरीब अर्थात ऐसे व्यक्ति जो काम करते हैं पर गरीबी रेखा के नीचे हैं। (1999-2000) 130 मिलियन नोट: खुले बेरोजगार वे हैं जिनके पास पिछले 365 दिनों के दौरान कोई भी रोजगार नहीं था।
श्रम शक्ति सहभागिता दर (LFPR), कार्य शक्ति सहभागिता दर (WFPR) और बेरोजगारी दर: अंतर्राष्ट्रीय तुलना
कार्य शक्ति की संरचना क्षेत्र विश्व भारत कृषि40.1% 58.5% उद्योग21.0% 18.1% सेवाएँ 38.9% 23.4% • कृषि में श्रमिकों की विशाल जनसंख्या • उनमें से एक बड़ा महत्वपूर्ण अनुपात गरीबी रेखा से नीचे है।
विभिन्न देशों द्वारा प्रयास विभिन्न देश विभिन्न साधनों के माध्यम से बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं। विकसित देश अलग रोजगार नीतियां बनाने की कोशिश कर रहे हैं. विकासशील देश आर्थिक विकास के साथ ही विशेष रोजगार सृजन कार्यक्रमों पर भरोसा कर रहे हैं। जब तक विकासशील देश श्रम शक्ति कौशल में बेहतरी का दावा नहीं करते हैं, तब तक अन्य देशों को श्रम बल का निर्यात आसान नहीं हो सकता।
आर्थिक योजना में रोजगार के प्रति दृष्टिकोण- भारत भारत में योजना, आर्थिक विकास पर केंद्रित है रोजगार सृजन को विकास की प्रक्रिया के रूप में देखा गया है न की संघर्ष में लक्ष्य के रूप में, और न ही इसे स्वतंत्र तौर पर आर्थिक विकास के लिए अपनाया जाना चाहिए इसलिए ऐसी कोई भी रोजगार सृजन की नीति नहीं है और अतिरिक्त रोजगार सृजन के प्रयास विकास की प्रक्रिया तथा रोजगार सृजन कार्यक्रमों के माध्यम से किए गए हैं
जनसंख्या का आयु वितरण (भारत)
उत्पादकता, रोजगार वृद्धि और विकास (भारत) उन्नत देशों की तुलना में, श्रम उत्पादकता (प्रति व्यक्ति उत्पादन के मामले में) काफी कम है ($3.05), जैसे अमरीका ($40.72), ब्रिटेन ($30.92), यहां तक कि चीन ($4.39) में भारत की तुलना में बेहतर श्रम उत्पादकता है। आर्थिक विकास, उत्पादकता और रोजगार वृद्धि अभी भी सकारात्मक तौर पर एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं। संबद्धता की मात्र क्षेत्र दर क्षेत्र भिन्न है। सेवा क्षेत्र में यह संबद्धता उच्च है, और औद्योगिक तथा कृषि क्षेत्र में यह संबद्धता कम है।(क्रमशः)
उत्पादकता, रोजगार वृद्धि और विकास (भारत) (क्रमशः) विकसित देशों के विपरीत भारत जैसे विकासशील देश में मांग अभी तक अपने चरम बिन्दु पर नहीं पहुँचा है, और उत्पादकता बढ़ाने से रोजगार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। विभिन्न क्षेत्र में तकनीकी विकास अभी उस स्तर तक नहीं पहुंचा है जो किसी भी रोजगार वृद्धि के बिना आर्थिक विकास की ओर जाता हो। (क्रमशः)
समस्याएँ जनसंख्या वृद्धि और श्रम शक्ति में परिणामी वृद्धि हुई है। 10-12 मिलियन व्यक्ति हर साल श्रम शक्ति में प्रवेश कर रहे हैं। रोजगार से उत्पादकता और आय का सृजन कम है। हालांकि, खुली बेरोजगारी केवल 2.3% (11 मिलियन) है, गरीबी रेखा से नीचे की आबादी का प्रतिशत अधिक है। रोजगार प्राप्त कर लेना गरीबी से बचने की कोई गारंटी नहीं है, जो हमारी स्थिति में जीवन यापन के एक बहुत ही बुनियादी स्तर को दर्शाता है। कुल 470 मिलियन कार्य शक्ति में से लगभग 130 मिलियन कार्यशील गरीब है। इसलिए सबसे बड़ी समस्या 130+11=141 मिलियन का व्यवस्थापन है।
मुख्य मुद्दे प्रमुख तौर पर दो मुद्दे हैं, नामतः- मुद्दा नं-1 श्रम शक्ति में एक नए प्रवेशकर्ता और एक बेरोजगार को कैसे रोजगार प्रदान किया जाय। अर्थयह है कि आवश्यक अतिरिक्त रोजगार के अवसरों का कैसे सृजन किया जाय। मुद्दा नं-2 रोजगार की गुणवत्ता को कैसे बढ़ाया जाय ताकि श्रम शक्ति की उत्पादकता और आय के स्तर में सुधार लाया जा सके।
मूल/मौलिक अवधारणा • अर्थव्यवस्था में श्रम शक्ति के सभी व्यक्तियों हेतु लाभकारी रोजगार उपलब्ध कराने की क्षमता है। • कार्य शक्ति उचित काम प्राप्त करने में सक्षम नहीं है क्योंकि श्रम बाजार में आवश्यक कौशल की अनुपलब्धता है।
मुद्दा नं 1 निपटने के लिए की गई कार्रवाई नियोजित प्रयास।दसवीं योजना में हर साल लगभग 10 लाख नौकरियों के सृजन की परिकल्पना की गई, लगभग 6 लाख सामान्य विकास प्रक्रिया से और 4 लाख विभिन्न क्षेत्रों के लिए प्रस्तावित विशेष रोजगार सृजन कार्यक्रमों के माध्यम से। आर्थिक विकास और रोजगार वृद्धि के समबादधा प्रयास के चलते अर्थव्यवस्था के 8% विकास दर हासिल करने के प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि प्रत्याशित रोजगार सृजन किया जा सके। वर्ष 2000-2005 के दौरान प्रति वर्ष 10 मिलियन व्यक्तियों के लक्ष्य के सापेक्ष लगभग 12 मिलियन व्यक्तियों को प्रति वर्ष रोजगार उपलब्ध कराया गया।
मुद्दा नं 2 निपटने के लिए की गई कार्रवाई श्रम शक्ति में नए प्रवेशकर्ताओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया जाय। कार्य शक्ति के कौशल के स्तर में सुधार करना। बाजार की मांग के अनुसार कौशल प्रशिक्षण का आयोजन करना। अर्थात यह कि इससे दोनों, संगठित और असंगठित क्षेत्र, की आवश्यकतायें पूरी होनी चाहिए।
श्रम शक्ति के साथ कौशल श्रम शक्ति में नए प्रवेशकर्ताओं द्वारा कौशल की प्राप्ति दो माध्यमों से की जाती है, नामतः सरकार और निजी द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से औपचारिक कौशल प्रशिक्षण। लगभग 2.5 मिलियन सरकारी संस्थाओं के माध्यम से कुछ सौ हजार निजी संस्थानों (निजी क्षेत्र के लिए सटीक अनुमान उपलब्ध नहीं हैं) के माध्यम से। अनौपचारिक माध्यम का अर्थ, सेवा के दौरान प्रशिक्षण, कार्य के दौर सीखना, प्रशिक्षुता प्रशिक्षण, मास्टर क्राफ्टमैन की सहायता, इत्यादि। ज़्यादातर कार्य शक्ति कौशल की प्राप्ति इन्हीं माध्यमों से करती है। इस तरह के कौशल प्रमाणित नहीं होते हैं, और उनके कौशल स्तर ज्ञात नहीं होते, इसलिए इस तरह के श्रमिक बेहतरी के लिए गतिशीलता, अपने कौशलों के उन्नयन और उनके जीवन में परिणामी सुधार से ग्रस्त होते हैं।
औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्रशिक्षण विभिन्न ट्रेडों में प्रदान किया जाता है जो संगठित क्षेत्र की प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार किए गए होते हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के माध्यम से प्रत्येक वर्ष लगभग 2.5 मिलियन व्यक्ति प्रशिक्षण पाते हैं। संस्थागत प्रबंधन समिति के माध्यम से उद्योग प्रशिक्षण से जुड़े होते हैं। औपचारिक परीक्षण आयोजित किए जाते हैं और प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। क्रमशः
अनौपचारिक क्षेत्र आधारित कौशल प्रशिक्षण अनौपचारिक साधनों के माध्यम से कौशल प्राप्ति को टाला नहीं जा सकता। इस प्रकार प्राप्त कौशल के परीक्षण और प्रमाणीकरण की आवश्यकता होती है। (निर्माण क्षेत्र के लिए इसे अपनाया गया है। अन्य के लिए इस पर कार्य किया जा रहा है।) वे कौशल जिनकी आवश्यकता है और सामान्य तौर पर अनौपचारिक माध्यमों से उन्हें प्राप्त नहीं किया गया है, पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं हैं, विद्यमान अधोसंरचना का उपयोग करते हुये मॉड्यूलर प्रयोग आधारित कोर्स और मास्टर क्राफ्टमैन कोर्स संचालित करने के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। (जैसे; आईटीआई, पोलिटेकनिक, स्कूल इत्यादि) क्रमशः
अनौपचारिक क्षेत्र आधारित कौशल प्रशिक्षण(क्रमशः) विकसित किए जा रहे उत्कृष्टता केन्द्रों में यह लक्ष्य रखा गया है कि उत्पादन के साथ-साथ विश्व स्तर का कामगार मॉड्यूलर पाठ्यक्रम उनके स्व रोजगार और अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्नता में उनकी मदद करेगा। विभिन्न मंत्रालय और विभाग भी उनके द्वारा संभाले जाने वाले क्षेत्रों हेतु कौशल प्रशिक्षण तैयार करने के दौरान अनौपचारिक क्षेत्र की जरूरतों पर भी ध्यान दे रहे हैं।