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HkfDr dkyhu dkO;. तुलसीदास. तुलसीदास.

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Presentation Transcript


  1. HkfDr dkyhu dkO;

  2. तुलसीदास

  3. तुलसीदास गोस्वामी तुलसीदासएक महान कवि थे। उनका जन्म राजापुर, (वर्तमान बाँदा जिला) उत्तर प्रदेश में हुआ था। अपने जीवनकाल में तुलसीदासजी ने १२ ग्रन्थ लिखे और उन्हें संस्कृत विद्वान् होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ट कवियों में एक माना जाता है। तुलसीदासजी को महर्षि वाल्मीकि का भी अवतार माना जाता है जो मूल आदि काव्य रामायण के रचयिता थे। श्रीरामजी को समर्पित ग्रन्थ श्री राम चरित मानस वाल्मीकि रामायण का प्रकारांतर से अवधी भाषांतर था जिसे समस्त उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। विनय पत्रिका तुलसीदासकृत एक अन्य महत्त्वपूर्ण काव्य है।

  4. कबीरदास

  5. कबीरदास • कबीर सन्त कवि और समाज सुधारक थे। ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे। कबीर का अर्थ अरबी भाषा में महान होता है। कबीरदास भारत के भक्ति काव्य परंपरा के महानतम कवियों में से एक थे। भारत में धर्म, भाषा या संस्कृति किसी की भी चर्चा बिना कबीर की चर्चा के अधूरी ही रहेगी। कबीरपंथी, एक धार्मिक समुदाय जो कबीर के सिद्धांतों और शिक्षाओं को अपने जीवन शैली का आधार मानतेथे।

  6. सूरदास

  7. सूरदास • कृष्ण भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में सूरदास का नाम सर्वोपरि है। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदासहिंदी साहित्य के सूर्य माने जाते हैं। हिंदी कविता कामिनी के इस कमनीय कांत ने हिंदी भाषा को समृद्ध करने में जो योगदान दिया है, वह अद्वितीय है। सूरदास हिन्दी साहित्य में भक्ति काल के सगुण भक्ति शाखा के कृष्ण-भक्ति उपशाखा के महान कवि हैं। हिन्ढी साहित्य में कृष्ण-भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम अग्रणी

  8. मीराबाई

  9. मीराबाई कृष्ण-भक्ति शाखा की प्रमुख कवयित्री हैं। उनका जन्म १५०४ ईस्वी में जोधपुर के ग्राम कुड्की में हुआ था। उनके पति कुंवर भोजराज उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र थे। विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहांत हो गया। पति की मृत्यु के बाद उन्हे पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया किन्तु मीरां इसके लिये तैयार नही हुई। वे संसार की ओर से विरक्त हो गयीं और साधु-संतों की संगति में हरिकीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं। कुछ समय बाद उन्होंने घर का त्याग कर दिया और तीर्थाटन को निकल गईं। वे बहुत दिनों तक वृंदावन में रहीं और फिर द्वारिका चली गईं। जहाँ संवत १५६० ईस्वी में उनका देहांत हुआ।

  10. प्रस्तुतकर्ता • श्री प्यारे लाल (पी. जी. टी. हिन्दी ) • केन्द्रीय विद्यालय सिंगरौली

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