700 likes | 3.82k Views
जामुन का पेड़. जामुन का पेड़. कृश्न चंदर. कृश्न चंदर जन्म: सन् १९१४,पंजाब के वज़ीराबाद गाँव (ज़िला – गुजरांकलां)
E N D
जामुन का पेड़ कृश्न चंदर
कृश्न चंदर जन्म: सन् १९१४,पंजाब के वज़ीराबाद गाँव (ज़िला – गुजरांकलां) प्रमुख रचनाएँ : एक गिरज़ा-ए-खंदक, यूकेलिप्टस की डाली(कहानी संग्रह); शिकस्त, ज़रगाँव की रानी, सड़क वापस जाती है, आसमान रौशन है, एक गधे की आत्मकथा, अन्नदाता, हम वहशी हैं, जब खेत जागे, बावन पती, एक वायलिन समंदर के किनारे, कागज़ की नाव, मेरी यादों के किनारे (उपन्यास) सम्मान : साहित्य अकादमी सहित बहुत से पुरस्कार निधन : सन् १९७७
पाठ-प्रवेश जामुन का पेड़ कृश्न चंदर की एक प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कथा है। हास्य-व्यंग्य के लिए चीज़ों को अनुपात से ज़्यादा फैला-फुलाकर दिखलाने की परिपाटी पुरानी है और यह कहानी भी उसका अनुपालन करती है। इसलिए यहाँ घटनाएँ अतिशयोक्तिपूर्ण और अविश्वनीय जान पडएं, तो कोई हैरत नहीं। विश्वसनीयता ऐसी रचनाओं के मूल्यांकन की कसौटी नहीं हो सकती। प्रस्तुत पाठ में हँसते-ह~म्साते ही हमारे भीतर इस बात की समझ पैदा होती है कि कार्यालयी तौर-तरीकों में पाया जाने वाला विस्तार कितना निरर्थक और पदानुक्रम कितना हास्यास्पद है। बात यहीं तक नहीं रहती। इस व्यवस्था के संवेदन शून्य एवं अमानवीय होने का पक्ष भी हमारे सामने आता है।
कठिन शब्दों के अर्थ :- झक्कड़ – आँधी रुआँसा – रोनी सूरत ता़ज्जुब – आश्चर्य हॉर्टीकल्चर –उद्यान कृषि एग्रीकल्चर– कृषि तगाफ़ुल – विलंब, देर, उपेक्षा
रात को बड़े ज़ोर का झक्कड़ चला। सेक्रेटेरिएट के लॉन में जामुन का एक पेड़ गिर पड़ा। सवेरे को जब माली ने देखा, तो पता चला कि पेड़े के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।
माली दौड़ा-दौड़ा चपरासी के पास गया, चपरासी दौड़ा-दौड़ा क्लर्क के पास गया, क्लर्क दौड़ा-दौड़ा सुपरिंटेंडेंट के पास गया, सुपरिंटेंडेंट दौड़ा-दौड़ा बाहर लॉन में आया। मिनटों में गिरे हुए पेड़ के नीचे दबे हुए आदमी के चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो गई।
क्लर्कों ने कहा – “ बेचारा जामुन का पेड़। कितना फलदार था। इसकी जामुनें कितनी रसीली होती थीं! मैं फलों के मौसम में झोली भरकर ले जाता था, मेरे बच्चे इसकी जामुनें कितनी खुशी से खाते थे। ” माली ने दबे हुए आदमी की तरफ़ ध्यान दिलाया। “ पता नहीं ज़िंदा है कि मर गया ? ” चपरासी ने पूछा। “ मर गया होगा, इतना भारी पेड़ जिसकी पीठ पर गिरे वह बच कैसे सकता है ? दूसरा चपरासी बोला। “ नहीं, मैं ज़िंदा हूँ । ” दबे हुए आदमी ने बड़ी कठिनता से कराहते हुए कहा। “ पेड़ को हटाकर ज़ल्दी से इसे निकाल लेना चाहिए? ” माली ने सुझाव दिया। “ माली ठीक कहता है, ” बहुत-से क्लर्क एक साथ बोल पड़े, “ लगाओ ज़ोर, हम तैयार हैं। ” “ ठहरो! ” सुपरिंटेंडेंट बोला, “ मैं अंडर – सेक्रेटरी से पूछ लूँ । ”
सुपरिंटेंडेंट अंडर-सेक्रेटरी के पास गया। अंडर-सेक्रेटरी डिप्टी-सेक्रेटरी के पास गया। डिप्टी-सेक्रेटरी ज्वाइंट-सेक्रेटरी के पास गया। ज्वाइंट-सेक्रेटरी चीफ़-सेक्रेटरी के पास गया। चीफ़ सेक्रेटरी मिनिस्टर के पास गया। मिनिस्टर ने चीफ़ सेक्रेटरी से कुछ कहा। चीफ़ सेक्रीटरी ने ज्वाइंट सेक्रेटरी से कुछ कहा। ज्वाइंट सेक्रेटरी ने डिप्टी सेक्रेटरी से कुछ कहा। डिप्टी सेक्रेटरी ने अंडर- सेक्रेटरी से कहा। फ़ाइल चलती रही। इसी में आधा दिन बीत गया। दोपहर को सुपिरिंटेंडेंट फ़ाइल भागा-भागा आया। बोला ‘ हम लोग ख़ुद इस पेड़ को हटा नहीं सकते। हम लोग व्यापार -विभागके हैं और पेड़ कृषि-विभाग के अधीन है। मैं इस फ़ाइल को अर्जेंट मार्क करके कृषि-विभाग में भेज रहा हूँ – वहाँ से उत्तर आते ही इस पेड़ को हटा दिया जाएगा। ” दूसरे दिन कृषि-विभाग से उत्तर आया कि पेड़ व्यापार-विभाग के लॉन में गिरा है, इसलिए इस पेड़ को हटवाने या न हटवाने की ज़िम्मेदारी व्यापार-विभाग पर पड़ती है। गुस्से से फ़ाइल दुबारा भेजी गई। दूसरे दिन शाम को जवाब आया कि चूँकि यह जामुन का एक फलदार पेड़ है, इसलिए इस मामले लो हॉर्टीकल्चर – विभाग के हवाले कर रहे हैं।
रात को चारों तरफ़ पुलिस का पहरा था कि कहीं लोग कानून को हाथ में लेकर पेड़ को ख़ुद से हटवाने की कोशिश न करें। माली ने दया करके उस दबे हुए आदमी को खाना खिलाया। माली ने उससे पूछा, ‘‘ तुम्हारा कोई वारिस है तो बताओ मैं उन्हें ख़बर कर दूँ। ” आदमी ने कहा, “ मैं लावारिस हूँ। ” तीसरे दिन हॉर्टीकल्चर-विभाग से बड़ा कड़ा और व्यंग्यपूर्ण जवाब आ गया कि हम देश में पेड़ लगाते हैं, काटते नहीं। हम इस समय देश पेड़ लगाओ स्कीम चला रहे हैं. हम एक फलदार पेड़ को काटने की इजाज़त नहीं दे सकते। “ अब क्या किया जाए? ” एक मनचले ने कहा, “ अगर पेड़ काटा नहीं जा सकता, तो इस आदमी को ही काटकर निकाल लिया जाए। यह देखिए, अगर इस आदमी को ठीक बीच मे से यानी धड़ से काटा जाए तो आधा आदमी इधर से निकल आएगा और आधा आदमी उधर से बाहर आ जाएगा। पेड़ वहीं का वहीं रहेगा। ” “ मगर इस तरह तो मैं मर जाऊँगा। ” दबे हुए आदमी ने आपत्ति प्रकट करते हुए कहा। “ आप जानते नहीं हैं, आजकल प्लास्टिक सर्जरी कितनी उन्नति कर चुकी है। मैं तो समझता हूँ, अगर इस आदमी को बीच में से काटकर निकाल लिया जाए तो प्लास्टिक सर्जरी से धड़ के स्थान से इस आदमी को फिर से जोड़ा जा सकता है। ”
इस बार फ़ाइल को मेडिकल डिपार्टमेंट भेज दिया गया। फिर एक प्लास्टिक सर्जन भेजा गया। उसने दबे हुए आदमी को अच्छी तरह टटोलकर, उसका स्वास्थ्य देखकर, खून का दवाब देखा, नाड़ी की गति को परखा, दिल और फेफडॊं की जाँच करके रिपोर्ट भेज दी कि इस आदमी का प्लास्टिक ऑपरेशन तो हो सकता है और ऑपरेशन सफल भी होगा, मगर आदमी मर जाएगा। इसलिए यह फ़ैसला भी रद्द कर दिया गया। रात को माली ने जब फिर उसे खाना खिलाते हुए दिलासा दी , तब उस आदमी ने एक आह भरकर कहा – “ ये तो माना कि तगाफ़ुल न करोगे लेकिन ख़ाक हो जाएँगे हम तुम ख़बर होने तक ! ” माली ने अचंभे से कहा, “ क्या तुम शायर हो ? ” दबे हुए आदमी ने धीरेसे सिर हिल दिया। दूसरे दिन चारों तरफ़ यह बात फैल गई कि दबा हुआ आदमी शायर है। भीड़ पे भीड़ उमड़ने लगी। एक कवि-सम्मेलन का-सा वातावरण पैदा हो गया। सभी शौकीन लोग उसे अपनी कविता सुनाने लगे।
अब फ़ाइल को कल्चरल डिपार्टमेंट भेज दिया गया। फ़ाइल कल्चरल डिपार्टमेंट के अनेक विभागों से होती हुई साहित्य अकादमी के सेक्रेटरी के पास पहुँची। सेक्रेटरी उसी समय गाड़ी में सवार होकर वहाँ आया और दबे हुए आदमी का इंटरव्यू लेने लगा। “ तुम कवि हो ? “ जी, हाँ। ” “ किस उपनाम से शोभित हो ? ” “‘ ओस ” “ ओस ” सेक्रेटरी ज़ोर से चीखा, “ क्या तुम वही ओस हो जिसका गद्य-संग्रह ‘ ओस के फूल ’ अभी हाल ही में प्रकाशित हुआ है ? दबे हुए कवि ने हुँकार में सिर हिलाया। “ क्या तुम हमारी अकादमी के मेम्बर हो ? ” “ नहीं ”“ आश्चर्य है, इतना बड़ा कवि हमारी अकादमी का मेम्बर नहीं है और गुमनामी के अँधेरे में दबा पड़ा है। ” “ गुमनामी में नहीं,… एक पेड़ के नीचे दबा पड़ा हूँ। कृपया मुझे इस पेड़ के नीचे से निकालिए। ” “ अभी बन्दोबस्त करता हूँ। ” सेव्क्रेटरी फ़ौरन बोला और फ़ौरन उसने अपने विभाग में रिपोर्ट की।
दूसरे दिन सेक्रेटरी भागा-भागा आया और बोला, “ मुबारक हो, हमारी अकादमी ने तुम्हें अपनी केन्द्रीय शाखा का मेम्बर चुन लिया है। यह लो चुनाव-पत्र। ” “ मगर मुझे इस पेड़ के नीचे से तो निकालो। ” – दबे हुए आदमी ने कराहकर कहा। “ यह हम नहीं कर सकते। हाँ, अगर तुम मर जाओ, तो तुम्हारी बीवी को वज़ीफा दे सकते हैं। “ मैं अभी जीवित हूँ, मुझे ज़िंदा रखो। ” “ मुसीबत यह है कि हमारा विभाग सिर्फ़ कल्चर से संबंधित है। वैसे हमने फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट को अर्जेंट लिख दिया है। शाम को माली ने बताया कि कल फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट के लोग आएँगे और तुम्हारी ज़ान बच जाएगी। बस, कल सुबह तक तुम्हें ज़िंदा रहना है।
दूसरे दिन जब फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट से लोग आए तो उनको पेड़ काटने से रोक दिया गया। मालूम हुआ कि विदेश –विभाग से हुक्म आया था कि पेड़ न काटा जाए। कारण यह था कि दस साल पहले पीटोनिया राज्य के प्रधानमंत्री ने सेक्रेटेरिएट के लॉन में यह पेड़ लगाया था। अब अगर पेड़ काटा गया तो पीटोनिया सरकार से हमारे संबंध सदा के लिए बिगड़ जाएँगे। “ मगर एक आदमी की ज़ान का सवाल है। ” एक क्ल्र्क चिल्लाया। “ दूसरी ओर दो राज्यों के संबंधों का सवाल है। क्या हम उनकी मित्रता की ख़ातिर एक आदमी के जीवन का बलिदान नहीं कर सकते ? ” दूसरे क्लर्क ने पहले क्लर्क को समझाया। “ कवि को मर जाना चाहिए । ” “ निस्संदेह। ” शाम के पाँच बजे स्वयं सुपीरिंटेडेंट कवि की फ़ाइल लेकर उसके पास आया और कहा, “ प्रधानमंत्री ने इस पेड़ को काटने का हुक्म दे दिया है और इस घटना की सारी अंतर्राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी अपने सिर ले ली है। कल यह पेड़ काट दिया जाएगा। आज तुम्हारी फ़ाइल पूर्ण हो गई। मगर कवि का हाथ ठंडा था, आँखों की पुतलियाँ निर्जीव और चीटियों की एक लंबी पाँत उसके मुँह में जा रही थी……..। उसके जीवन की फ़ाइल भी पूर्ण हो चुकी थी।
गृह- कार्य • ‘ कृश्न चंदर ’ की पुस्तकें पुस्तकालय आदि से संग्रह कर पढ़ना। • सरकारी कार्यालय की कार्य-शैली पर आधारित कोई लेख लिखना। • मशहूर टी.वी. धारावाहिक ‘ ऑफ़िस-ऑफ़िस ’ देखना।
बोध प्रश्न • दबा हुआ आदमी एक कवि है, यह बात कैसे पता चली और इस जानकारी का फ़ाइल की यात्रा पर क्या असर पड़ा ? • कृषि विभाग वालों ने मामले को हॉर्टीकल्चर विभाग को सौंपने की पीछे क्या तर्क दिए ? • इस पाठ से सरकारी कार्यालयों के कार्य के बारे में क्या जानकारी मिलती है ? • इस कहानी के अन्य दो शीर्षक सुझाइए।
धन्यवाद ! प्रस्तुति सीमांचल गौड़ स्नात्तकोत्तर शिक्षक ज.न.वि., धलाई, त्रिपुरा