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त्रिपिंडी श्राद्ध विधि (हिंदी) त्र्यंबकेश्वर

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त्रिपिंडी श्राद्ध विधि (हिंदी) त्र्यंबकेश्वर

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Presentation Transcript


  1. त्रिप िंडी श्राद्ध पिधध ूजा त्र्यिंबक े श्िर त्रिप िंडी श्राद्ध ूजा श्री ियिंबक े श्िर की नगरी में की जाने िाली एक महत्ि ूर्ण ूजा है।

  2. त्रिप िंडी श्राद्ध ूजा क्या है? त्रिप िंडी श्राद्ध ूजा श्री त्रयंबक े श्वर की नगरी में की जाने वाली एक महत्वपूर्ण पूजा है। त्रिप िंडी श्राद्ध का अर्ण है तीन पीढ़ियों क े पूवणजों का ववधिपूवणक श्राद्ि। इन तीनों पीढ़ियों में यढि ककसी वंशज, मातृसत्तात्मक, गुरूवंश या ससुराल कुल क े व्यक्तत ने ननयमानुसार श्राद्ि नहीं ककया है तो उसे त्रत्रवपंडी श्राद्ि करने से मोक्ष की प्राक्तत होती है। त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजन न करने पर व्यक्तत वपतृिोष से पीड़ित होता है। वपतृिोष में पररवार क े मृत सिस्य अपने वंशजों को कोसते हैं, क्जन्हें वपतृशाप भी कहा जाता है।

  3. त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा तीन पीढ़ियों क े पूवणजों को राक्षसों से मुतत करने क े ललए की जाती है। पररवार में कई ऐसे सिस्य होते हैं जो वववाह से पहले ककसी व्यक्तत की असमय मृत्यु, आकक्स्मक मृत्युया मृत्युजैसे ववशेष कारर्ों से मर जाते हैं, उनकी आत्मा को शांनत नहीं लमलती है। इसललए ऐसी आत्माएं अनंत काल तक िरती पर भटकती रहती हैं और अपने पररवार में जन्में वंशजों क े इस िुख से मुतत होना चाहती हैं। ऐसे में हमारे प्राचीन शास्त्रों में पूवणजों की शांनत क े ललए त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा का आयोजन ककया जाता है। त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा का अनुष्ठान, मुख्य रृप से वपतृपक्ष क े महीने की अमावस्या क े ढिन, ववशेष रृप से फलिायी माना जाता है। इसक े अलावा पूर्र्णमा से पहले क े 16 ढिन वपतरों को यज्ञ च़िाने क े ललए श्रेष्ठ माने जाते हैं। यह श्राद्ि हर माह त्रयंबक े श्वर जैसे ववशेष िालमणक क्षेत्र में ककसी ववशेष मुहूतण का चयन करने क े बाि ककया जा सकता है।

  4. त्रिप िंडी श्राद्ध क्यों करना चाहहए? त्रत्रवपंडी श्राद्ि करना होगा यढि वपछली तीन पीढ़ियों क े पररवार से ककसी की मृत्युशैशवावस्र्ा या बु़िापे से हुई हो। वपछले तीन वषों से मृतकों को त्रत्रवपंडी श्राद्ि नहीं ढिया जाता है, जबकक मृतकों को गुस्सा आता है, इसललए हमें उन्हें शांत करने क े ललए त्रत्रवपंडी श्राद्ि करना चाढहए। त्रत्रवपंडी श्राद्ि वपछली तीन पीढ़ियों क े पूवणजों का वपंडिान है।हम सभी जानते हैं कक त्रयंबक े श्वर में नारायर् नागबली, काल सपण िोष, त्रत्रवपंडी श्राद्ि जैसी सभी प्रकार की पूजा-अचणना करना महत्वपूर्ण है। यह िालमणक पूजा महाराष्र में नालसक क े पास पववत्र स्र्ल त्र्यंबक े श्वर में की जानी चाढहए।

  5. त्रिप िंडी श्राद्ध कौन कर सकता है? त्रत्रवपंडी श्राद्ि को काम्या क े नाम से भी जाना जाता है, इसललए माता-वपता क े जीववत रहने पर भी यह अनुष्ठान ककया जाता है।त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा की रस्म वववाढहत पनत-पत्नी क े सार् की जाएगी।पत्नी जीववत न होने पर वविुर और पनत जीववत न होने पर वविुर द्वारा यह पूजा की जाती है।अवववाढहत व्यक्तत को भी इस पूजा का अधिकार है।ढहंिूवववाह पद्िनत क े अनुसार, एक मढहला को शािी क े बाि अपने पनत क े घर जाना प़िता है। इसललए उसे अपने माता-वपता की मृत्युक े बाि वपंडिान, तपणर् और श्राद्ि करने का कोई अधिकार नहीं है। लेककन त्रत्रवपंडी श्राद्ि में एक मढहला भी अपना सार् िे सकती है।

  6. त्रिप िंडी श्राद्ध क े ननयम: त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा क े मुहूतणसे एक ढिन पहले त्र्यंबक े श्वर में उपक्स्र्त होना चाढहए।श्राद्िकताण का वपता जीववत न हो तो उसक े पुत्र को अनुष्ठान क े िौरान बाल मुंडवाने प़िते हैं। श्राद्िकताण क े वपता को जीववत होने पर बाल काटने की कोई आवश्यकता नहीं है।सफ े ि कप़िे पहनकर की जाती है पूजा पुरूषों को सफ े ि क ुताण और िोती पहनना चाढहए और मढहलाओं को सफ े ि सा़िी पहननी चाढहए। त्रत्रवपंडी श्राद्ि क े बाि पूजा क े वस्त्र वहीं छो़िकर उनक े सार् लाए गए नए वस्त्र पहने जाते हैं। त्रिप िंडी श्राद्ध क े लाभ: त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा पूवणजों की अिूरी इच्छाओं को शांत करती है और उनका आशीवाणि भी प्रातत करती है।त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा क े बाि ककए गए वववाह जैसे शुभ कायों में भी सफलता और आशीवाणि प्रातत होता है।पूजा क े बाि सभी क्षेत्रों में सफलता प्रातत होती है और सामाक्जक प्रनतष्ठा में प्रगनत संभव है।नौकरी व्यवसाय में पिोन्ननत रूकी रहेगी और व्यापार में िन वृद्धि होगी।पाररवाररक कलह समातत होने क े बाि संबंिों में सुिार होता है और सुख की प्राक्तत होती है।प्रकृनत में सुिार क े सार्, शारीररक बीमाररयों से राहत लमलती है।लशक्षा और वववाह से जु़िी सभी समस्याएं िूर हो जाती हैं।

  7. त्र्यिंबक े श्िर में ताम्र िधारी गुरुजी त्र्यंबक े श्वर क्स्र्त ताम्र िधारी िंडडतजी क े ननवास पर त्रत्रवपंडी श्राद्ि की पूजा की जाती है। त्रयंबक े श्वर मंढिर में कई पीढ़ियों से पंडडत जी को पूजा करने का अधिकार ढिया गया है। यह िावा पेशवा काल में संरक्षक्षत तांबे की तलेट पर उत्कीर्ण है। तांबे क े पत्ते वाले गुरूजी को त्र्यिंबक े श्िर ज्योनतर्लिंग मिंहिर में पूजा करने का अधिकार है। यह अधिकार ववरासत में लमला है। गुरूजी को त्रयंबक े श्वर में ववलभन्न पूजा और शांनत कमण करने का अधिकार है, इसललए तांबे से पटाए पंडडतजी क े ननवास पर त्रत्रवपंडी श्राद्ि अनुष्ठान ककया जाता है।पुरोढहत संघ की वेबसाइट से त्र्यंबक े श्वर पंडडत जी की ऑनलाइन बुककंग कर सकते हैं। यह त्रत्रवपंडी श्राद्ि अनुष्ठान नालसक त्रयंबक े श्वर मंढिर में ही सभी मनोकामनाओं को पूरा करने और सभी कढठनाइयों को िूर करने क े ललए ककया जाता है। इस पूजा अनुष्ठान को करने से भगवान ववष्र्ु की पूजा करने से शारीररक पाप, बोले गए पाप और अन्य पाप िूर होते हैं।त्रयम्बक े श्वर में नारायर् नागबली ूजा, कालस णिोष ूजा, क ुं भ वववाह, महामृत्युंजय मंत्रजाप, रूद्रालभषेक, त्रत्रवपंडी श्राद्ि आढि वैढिक अनुष्ठान ककए जाते हैं।

  8. हमारे बारे में श्री क्षेत्र त्र्यंबक े श्वर की अधिकृतवेब स्र्ल (साइट) पर आपका स्वागत है त्र्यंबक े श्वर क े पववत्र स्र्ान पर "पुरोढहत संघ" संस्र्ान आपका स्वागत करता है।सभी भततों और प्रशंसकों को ववलभन्न सुवविाएं प्रिान करने का एकमात्र उद्िेश्य रखकर "पुरोढहत संघ" काम कर रहा है। नाम और रृप को आवश्यकता क े अनुसार बिल कर यह संस्र्ान वपछले १२००वषों से काम कर रहा है, लेककन अभी भी संस्र्ा का उद्िेश्य सभीभततों कोबेहतर सुवविाएंप्रिान करने क े ललएसमानहै। सभी अधिकृत पुरोढहत, "पुरोढहत संघ" संस्र्ान क े ललए काम कर रहे हैं और वे ७०० साल पुराने शास्त्रों, छत्रपनत लशवाजी महाराज द्िारा लेख, हस्तलेख, िमणग्रंर् और अन्य क्षेत्रों क े वैढिक, उद्योगपनत, और प्रनतक्ष्ठत व्यक्ततयों की हस्तलेख क े ललए एक ववलशष्टपहचान है। पुरोढहत संघ, त्र्यंबक े श्वर ने भततों और प्रशंसकोंकी सहायता क े ललएइस वेब स्र्ल (www.purohitsangh.org)को बनाया है, सभी भतत और प्रशंसक " त्र्यंबक े श्वर गुरूजी" (www.purohitsangh.org/trimbakeshwar-guruji) क े हमारे उपरोतत भाग (वेब स्र्ल) पर आधिकाररक पुरोढहत क े ववलभन्न नामों क े सार् उनक े ववक्जढटंग काडण संपक ण करने क े ललए िेख सकते हैं ताकक आप आसानी से अनुष्ठान करने क े ललएउन तक पहुंच सक ें ।

  9. ता : श्री गिंगागोिािरीमिंहिर, हलीमिंजजल, क ुशाितणतीर्णचौक, त्रििंबक े श्िर - 422212. जजला: नार्सक(महाराष्ट्र) िंडडतजी info@purohitsangh.org www.purohitsangh.org •त्र्यिंबक े श्िर ुजाए •- नारायर् नागबली •- त्रिप िंडी श्राद्ध •- कालस णयोग शािंती •- महामृत्युिंजयमिंि

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