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डॉ भीमराव अंबेडकर - युवाओं की प्रेरणा
अंबेडकर को बचपन से ही अपनी जाति के कारण भेदभाव से गुजरना पड़ा था और इसका उनके कोमल मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। बात 1901 की है जब अंबेडकर सतारा से कोरेगाँव अपने पिता से मिलने जा रहे थे तब बैलगाड़ी वाले ने उन्हें अपनी बैलगाड़ी पर बैठाने से इंकार कर दिया। दोगने पैसे देने पर उसने कहा कि अंबेडकर और उनके भाई बैलगाड़ी चलाएंगे और वह बैलगाड़ी वाला उनके साथ पैदल चलेगा। कभी उन्हें जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया तो कभी किसी खास अवसर पर मेहमान की तरह जाने के बावजूद भी नौकर ने उन्हें यह कहकर खाना नहीं परोसा कि वह महार जाति से हैं। शायद यही सब कारण होंगे जिनकी वजह से बाबासाहेब ने जाति व्यवस्था की वकालत करने वाली किताब मनुस्मृति को जलाया था। ये तो हम सभी जानते हैं कि डॉ भीमराव अंबेडकर (Dr. BhimraoAmbedkar) संविधान (Constitution) निर्माता के तौर पर प्रसिद्ध हैं, लेकिन हर कोई उनके जीवन की उपलब्धियों के बारे में नहीं जनता। पूरे देश में हर साल 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है। डाॅ. भीमराव अंबेडकर जी का पूरा जीवन संघर्षरत रहा है। जनहित में किये गए उनके प्रयासों और देश के गरीबों और दलितों के लिए किये गए उनके कार्यों के लिए उन्हें मरणोपरांत ‘भारत-रत्न’ (Bharatratan) का सम्मान दिया गया था। आज इस आर्टिकल में हम बाबासाहेब के बारे में कुछ रोचक तथ्य Some interesting facts about Babasaheb,ताकि हम सभी उनके जीवन से प्रेरणा ले सकें। CONTINUE READING.. ‘मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।’- डॉ भीमराव अंबेडकर देश में आज लगभग सभी नेता, दलितों को वोट बैंक यानि वोटों का जरिया तो मानते हैं पर उनकी दशा सुधारने के लिए कुछ खास नहीं करते, और आखिर करेंगे भी कैसे? क्योंकि एक गरीब दलित की व्यथा वही समझ सकता है जिसने गरीबी को पास से देखा हो और जिया हो। आज उन सभी नेताओं का शुक्रिया जिन्होंने देश की आजादी से पहले और बाद में देश के दलितों और असहायों को कुछ विशेष अधिकार दिए और आज उन्हें सर उठाकर जीने का मौका दिया। भारतीय इतिहास के पन्नो में जब भी दलितों के कल्याण की बात की गयी तो पहला नाम बाबा साहेब अंबेडकर का ही पहले आया।
डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने भारत की आजादी के बाद देश के संविधान के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया। इसके अलावा उन्होंने कमजोर और पिछड़े वर्ग के लोगों के अधिकारों के लिए पूरा जीवन संघर्ष किया। हम कह सकते हैं कि डॉ अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत और समतामूलक समाज के निर्माणकर्ता थे। वे हमेशा से समाज के कमजोर, मजदूर, महिलाओं और पिछड़े वर्ग को शिक्षित करके सशक्त बनाना चाहते थे। यही कारण है की डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती को भारत में समानता दिवस और ज्ञान दिवस Equality Day and Knowledge Day के रूप में मनाया जाता है। आइए जानते हैं बाबा साहेब के जीवन से जुड़ी कुछ प्रेरणादायी और रोचक बातें भीमराव अंबेडकर का जीवन (Life of BhimraoAmbedkar): 14 अप्रैल 1891 को डाॅ. भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश (MP) के एक छोटे से गांव महू (Mhow) में हुआ था। हालांकि, मूल रूप से उनका परिवार रत्नागिरी (Ratnagiri) जिले से ताल्लुक रखता था। अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और उनकी माता का नाम भीमाबाई था। डॉ. अंबेडकर महार जाति के थे जिसके चलते उन्हें बचपन से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा। यही कारण है कि उन्होंने अपने पूरे जीवन भेदभाव का विरोध किया और गरीबों व पिछड़ों के हक़ की बात कही। बी. आर. अंबेडकर बचपन से ही बुद्धिमान, गुणी और पढ़ाई में अच्छे थे। हालांकि, उस समय छुआछूत जैसी समस्याएं व्याप्त होने के कारण उनकी शुरुआती शिक्षा में काफी परेशानी आयी, लेकिन उन्होंने जात-पात की बातों को पीछे छोड़कर अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके पश्चात् 1913 में डॉ. अंबेडकर ने अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी (Columbia University) से आगे की शिक्षा प्राप्त की। साल 1916 में उन्होंने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की जब उन्हें शोध (research) के लिए सम्मानित किया गया। बाबा साहेब के गुरु कृष्ण केशव आम्बेडकर Krishna KeshavAmbedkarजी ने जिन्होंने बचपन में ही बाबा साहेब की प्रतिभा को पहचान लिया था। इसके अलावा, सयाजीराव गायकवाड़ जी ने उनकी पढ़ाई में बहुत सहायता की।
लंदन में पढ़ाई पूरी होने पर अपनी स्कॉलरशिप खत्म होने के बाद वह 1917 में स्वदेश यानि भारत वापस आ गए और यहाँ मुंबई के सिडनेम कॉलेज (Sydenham College) में प्रोफेसर के तौर पर नौकरी करने लगे। 1923 में उन्होंने एक शोध (रिसर्च) पूरा किया था, जिसके लिए डॉ अंबेडकर को लंदन यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टर ऑफ साइंस (Doctor of Science) की उपाधि दी गयी थी। इसके बाद, साल 1927 में अंबेडकर जी ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से अपनी पीएचडी भी पूरी की। अपनी शिक्षा से उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया। और एक समय ऐसा आया जब उन्होंने भारत का संविधान लिख दिया। अंबेडकर जी और उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल मुंबई के एक ऐसे मकान में रहा करते थे जहां एक ही कमरे में पहले से ही बेहद गरीब लोग रहा करते थे इसलिए उस कमरे में उनके पिता और अंबेडकर जी दोनों लोग बारी-बारी से सोया करते थे। जब उनके पिता सोते थे तब अंबेडकर उस कमरे में नहीं सो सकते थे और जब अंबेडकर सोते थे तब उनके पिता वहां नहीं सो सकते थे। यहां तक की अंबेडकर जी दीपक की हल्की रोशनी में पढ़ते थे। वह संस्कृत पढ़ना चाहते थे लेकिन वह समय ही कुछ ऐसा था कि छुआछूत की प्रथा के अनुसार, निम्न जाति के लोग संस्कृत का ज्ञान नहीं ले सकते थे। अंग्रेजों को संस्कृत पढ़ने की अनुमति थी लेकिन निम्न जाति के लोगों के साथ बहुत भेद भाव था। उन्हें अपनी ज़िंदगी में कई बार अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा लेकिन फिर भी उन्होंने धैर्य और वीरता के दम पर ना सिर्फ अपनी स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पूरी की बल्कि कॉलेज में एक प्रोफेसर की तरह भी पढ़ाया। बचपन से ही देखा भेदभाव अंबेडकर को बचपन से ही अपनी जाति के कारण भेदभाव से गुजरना पड़ा था और इसका उनके कोमल मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। बात 1901 की है जब अंबेडकर सतारा से कोरेगाँव अपने पिता से मिलने जा रहे थे तब बैलगाड़ी वाले ने उन्हें अपनी बैलगाड़ी पर बैठाने से इंकार कर दिया। दोगने पैसे देने पर उसने कहा कि अंबेडकर और उनके भाई बैलगाड़ी चलाएंगे और वह बैलगाड़ी वाला उनके साथ पैदल चलेगा।
बाबासाहेब के बारे में कुछ रोचक तथ्य Some interesting facts about Babasaheb • डॉक्टर अम्बेडकर लगभग 9 भाषाओं का ज्ञान रखते थे। • बाबासाहेब के पास 32 डिग्रियां थीं। • कश्मीर में लगी धारा 370 के वह शख्त खिलाफ थे। • वह अपने जीवनकाल में दो बार लोकसभा चुनाव लड़े और दोनों ही बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। • उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी विदेश से की थी। • मात्र 21 वर्ष की आयु में उन्होंने सभी धर्मों की पढ़ाई कर ली थी। • बाबासाहेब अंबेडकर आज़ाद भारत के पहले कानून मंत्री थे। डॉ भीमराव अंबेडकर से सीखने वाली बातें (Lessons from DrAmbedkar's life) बाबासाहेब ने शिक्षा को सबसे जरूरी बताया, शिक्षा के जरिये अपने आप को ऊपर उठाने और उन्होंने शिक्षा के जरिये ही आधुनिक भारत के महान नेता बनने की सीख दी। उन्होंने बताया कि जातिवाद और भेदभाव से ग्रस्त समाज में आवाज उठाने के लिए शिक्षित होना कितना महत्वपूर्ण है। न्यायविद, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक के रूप में उनका जीवन हम सभी के लिए एक उदाहरण है।
डॉ भीमराव अंबेडकर जी अपने जीवन के हर पड़ाव पर डट कर खड़े रहे और सभी परेशानियों का सामना किया। उन्होंने युवाओं के लिए कई उदहारण पेश किये, आइए जानते है कुछ उनसे मिली कुछ अहम सीख… • शिक्षा ही सफलता की कुंजी है (Education is the key to success): • डॉ भीमराव अंबेडकर एक मेधावी छात्र रहे और शिक्षित होने के अपने दृढ़ संकल्प के रास्ते में उन्होंने कुछ भी नहीं आने दिया। जिस समाज में दलितों या 'अछूतों' को शिक्षा से वंचित कर दिया गया था, वहां डॉ अंबेडकर कॉलेज खत्म करने वाले पहले दलित बने। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय में अध्ययन किया, और अर्थशास्त्र से पीएचडी की पढ़ाई भी खत्म की। उन्होंने बड़ौदा राज्य में रक्षा सचिव के रूप में कार्य किया। डॉ अंबेडकर भारत के पहले कानून मंत्री first law minister of India और संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष थे। • किसी से डरो मत (Don’t be daunted): • बाबा साहेब के दौर में जाति व्यवस्था इस समय से कहीं अधिक जटिल थी। उस समय चारों तरफ केवल जात-पात और भेदभाव देखने को मिलता था। युवा अम्बेडकर को ऊंची जाती के लोगों के साथ एक ही कक्षा में बैठने की अनुमति नहीं थी, और न ही उस कुएं से पानी पीने की अनुमति थी जहाँ बाकी बच्चे या लोग पानी पीते थे। उन्होंने इस भेदभाव को शिक्षा प्राप्त करने और इस देश के इतिहास में एक अग्रणी व्यक्ति बनने के अपने दृढ़ संकल्प के रास्ते में नहीं आने दिया और किसी से भी नहीं डरे क्योंकि उन्हें पता था कि वह कुछ गलत नहीं कर रहे। 1990 में, उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। Also Read : अन्य देशों से प्रभावित भारतीय संविधान की विशेषताएं