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SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE - जनवरी-2022

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SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE - जनवरी-2022

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Presentation Transcript


  1. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE शोध ,साहित्यऔरसंस्कृतिकीमाससकवैबपत्रिका नयी ग ंज-------. वर्ष 2022 अंक 1 WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 i

  2. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE संपादकमंडल प्रमुखसंरक्षक प्रो. देवमाथुर vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com मुख्यसंपादक रीमा मािेश्वरी shuddhi108.webs@gmail.com संपादक सशवा ‘स्वयं’ sarvavidhyamagazines@gmail.com शाखा प्रमुख ब्रजेश कुमार aryabrijeshsahu24@gmail.com aryabrijeshsahu24@gmail.com परामशषदािा कमल जयंथ jayanth1kamalnaath@gmail.com WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 ii

  3. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE संपादकीय सशवा ‘स्वयं’ अपनी जन्मभ सम को नमन करने, िम शब्दों की भेंट लाये िैः ! पपरो हदया िै स्यािी में अंिमषन की ज्वाला को, िम पावन अपनी धरिी मााँ का वंदन करने आये िैः अपने आप को पाने क े सलए िी िो सारी जद्दोजिद िै ! जीवन का सदुपयोग िो सक े , िम वो बन सक े जैसा बन कर लगे कक िााँ, अब अंदर सुक न िै ! पर ऐसा िो कुछ भी करक े िोिा निीं ! मृग िृष्णा िै भीिर, बस क े वल बढ़िी िी जािी िै ! समट्टी से अब खुश्ब आिी निीं िै, घरों में माबषल सजा कर उसमें से खुश्ब अनुभव करने की कोसशश कर रिे िैः िम सब ! ऐसा भी किीं िोिा िै ? क्योंकक िम वस्िुओ से खुद को भर कर, वास्िव में खाली कर रिे िैः ! भरना िै िो पवचारों को भरो, जो िमें एक हदन प रा िो करेंगे ! निीं िो संभविः िमारी प ंजी में िीरे मोिी निीं क ं कड़ पत्थर िी रि जायेंगे ! एक पपवि प्रेरणा का िाथ पकड़ कर चलो जो इस िरि साथ िोिी िै जैसे मााँ की ऊ ाँ गली थाम कर चलना, वो जो िमेशा कोमल रास्िो पर चलना निीं ससखािी, वो िो उबड़ खाबड़ रास्िों का तनमाषण खुद िी करिी िै कक उसक े बच्चे को उन रास्िों पर WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 iii

  4. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE चलना आ जाये ! वो ससखािी िै कक िज़ार बार भी गगरो िो कोई बाि निीं मगर िौसला एक बार भी गगरने मि देना ! वो भरोसा ससखािी िै, अवगुणों से भरे िम, यहद जीवन में गुण जोड़ लें िो यि गचरस्थाई संपपि िोगी, जजससे सच्चा श्ृंगार सम्भव िो जािा िै ! िम बिुि मेिनि से कमािे िैं, अपने जीवन कों सजािे िैं अच्छे कपड़ो से, बड़ी गाड़ी से, मिंगे समानों औऱ आलीशान घरों से ! कमाई एक िो बािर क े सलए िोिी िै जो जीवन का बािरी रंग सुन्दर कर देिी िै लेककन इस बािर कों सजाने की दौड़ में अंदर से सुंदरिा िो द र की बाि िै अंदर की िो गन्दगी िक साफ निीं िो पािी – ककसी गायक की किी पंजक्ियााँ िैं कक - क्यों पानी में मल मल नहाये मन की मैल उतार ओ प्राणी.. हदन राि पररश्म करक े िम चमकने वाली चीज़े िो खरीद लेिे िैं लेककन व्यजक्ित्व क े रंग को िो काला िी कर देिे िैं - घृणा, प्रतिस्पधाष, जलन, लोभ इिने पवकार भर जािे िैं िम में औऱ िम उनको अपने अंदर की कुरूपिा निीं मानिे बजकक िम इन पवकारों क े साथ जीने क े इिने आहद िो जािे िैं कक व्यजक्ित्व में इन सब बािों को िम सिज़ मानने लगिे िैं ! समझना िो इस बाि को पड़ेगा कक जजस िरि ऊपर से चमकने क े सलए कुछ देर क े सलए मेकअप ककया जा सकिा िै लेककन स्थाई चमक क े सलए अच्छा स्वास््य चाहिए उसी िरि अपने भीिर स्वस्थ पवचारों को रख कर िी िम स्वयं अपने पवस्िार को पा सकिे िैं, अन्यथा निीं !’इसी उद्देश्य की प्राजति की ओर यि पिला कदम.... WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 iv

  5. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE शुभेच्छा नयी ग ूंज------.पररवार परामशषदािा- प्रश्निैककसंस्कृतिक्यािै।य ंसंस्कृतिशब्दसम्+कृतिसेबनािै, जजसकाअथषिैअच्छीकृति।अथाषि् संस्कृतिवस्िुिःराष्रीयअजस्मिाक ेपररचायकउदािित्वोंकानामिै। भारिीयसन्दभषमेंसंस्कृतिव्यजक्ितनष्ठनिोकरसमजष्टतनष्ठिोिीिै।संस्कृतिकीसंरचनाएकहदनमें निोकरशिाजब्दयोंकीसाधनाकासुपररणामिोिािै।अिःसंस्कृतिसामाससक-सामाजजकतनगधिोिीिै। संस्कृतिवैचाररक, मानससकवभावनात्मकउपलजब्धयोंकासमुच्चयिोिीिै।इसमेंधमष, दशषन, कला, संगीिआहदकासमावेशिोिािै।इसीकीअपररिायषिाकीओरसंक े िकरिेिुएभिृषिररनेसलखािैकक इसक ेत्रबनामनुष्यघासनखानेवालापशुिीिोिािै- ‘‘साहित्यसंगीिकला-पविीनः साक्षाि्पशुःपुच्छपवर्ाणिीनः।। मुख्यसंपादक उपतनर्द्क ेशब्दोंमेंकिेंिोसंस्कृतिमेंजीवनक ेदोआयामश्ेयवप्रेयकासामंजस्यिोिािै।इन्िीं आधारपरआध्याजत्मक, वैचाररकवमानससकपवकासिोिािैऔरइन्िींक ेआधारपरजीवन-म कयोंव संस्कारोंकातनधाषरणिोिािैऔरयिीजीवनक ेसमग्रउत्थानक ेस चकिोिेिैः।सशक्षा-िंिमेंइन्िीं सांस्कृतिकम कयोंकासशक्षण-प्रसशक्षणिोिािै।विषमानमेंसशक्षा-व्यवस्थासंस्कृतिकीअपेक्षासम्यिा- तनष्ठअगधकिै।िात्पयषिैककविषमानसशक्षापवचार-प्रधान, गचन्िन-प्रधानवम कयप्रधानकीअपेक्षा ज्ञानाजषन-प्रधानिै।वस्िुिःइसीकापररणामिैककसम्प्रतिसशक्षाक ेद्वाराबौद्गधकस्िरमेंिो असभवृद्गधिुईिैककन्िुसंवेदनात्मकयाभावनात्मकस्िरघटािै। WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 v

  6. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE संपादक– िमारीसशक्षामेंसांस्कृतिकम कयोंक ेस्थानपरपजश्चमीसभ्यिा-म लकित्वोंकोउपादानक ेरूपमेंग्रिण करसलयागयािै।िभीिोसशक्षावसमृद्गधक ेपाश्चात्यमानदण्डोंकोआधारमानसलयािैजोसंस्कृति- पवरोधीिैः, जजनमेंनैतिकवमानवीयम कयोंकापवशेर्स्थाननिींिै।इसीकापररणामिैककबुद्गधमानव गरीबनैतिकव्यजक्िसामाजजकदृजष्टसेभीिांससयेपरिीरििािैऔरनैतिकिा-पविीन, संवेदनिीन, भ्रष्टाचारीवअपराधीभीसम्पन्न, सभ्य, सम्मान्यवप्रतिजष्ठििोिािै।इसीसंस्कृति-पविीनव्यवस्थाक े कारणशोर्ण-प्रधानप ंजीवादीव्यवस्थािीग्राह्यिोगईिै, जजसनेरिन-सिनक ेस्िरकोिोउठायािै, पर इसभोगवादीबाजारवादीव्यवस्थाक ेकारणअथषशास्िविकनीककपवज्ञानक ेसामनेनैतिकिाव मानवीयिागौणिोगईिै।जबककराधाकृष्णनवकोठारीआयोगकीमान्यिाथीककसशक्षाऐसीिोनी चाहियेजोसामाजजक, आगथषकवसांस्कृतिकपररविषनकाप्रभावीमाध्यमबनसक े ।इसदृजष्टसेभारिीय प्रकृतिऔरसंस्कृतिक ेअनुरूपसशक्षासेिीम कयपरकउदाि-गुणोंकासंप्रेर्णऔरसमग्रव्यजक्ित्वका तनमाषणसम्भविै।इसमेंपुरानेवनयेकात्रबनापवचारककयेजोदेशकीअजस्मिावसमाजक ेहििकरिै, उसीकोप्रमुखिादेनीचाहिए। शाखा प्रमुख कीकलमसे-- पप्रयपाठकों संस्थानकीपत्रिकानयीग ंजक ेपिलेअंककालोकापषणएकआंिररकसुखकीअनुभ तिकरारिािै। मुझेप्रसन्निािैककशाखा प्रमुखक ेरूपमेंकायषभारसंभालनेक ेबादमुझेआपसभीसेनयीग ंजक ेइस अंकक ेमाध्यमसेरूबरूिोनेकामौकासमलरिािै। िमककिनाभीपवकासकरलेंककन्िुयहदसमाजमेंसंवेदनािीमरगईिोसबव्यथषिै।इससंवेदनिीनिा क ेचलिेसमाजमेंनकारात्मकऊजाषहदनप्रति-हदनबढ़िीजारिीिैजोतनन्दनीयभीिैऔरपवचारणीय भी।आवश्यकिािैककिमअपवलम्बइसहदशामेंअपनेप्रयासआरम्भकरदें। वस्िुिःअपनेकमोंसेिमअपनेभाग्यकोबनािेऔरत्रबगाड़िेिैः।यहदगंभीरिासेगचंिन-मननककया जायिोिमाराकायष-व्यापारिमारेव्यजक्ित्वक ेअनुसारिीआकारग्रिणकरिािैऔरिमेंअपनेकमषक े आधारपरिीउसकाफलप्रातििोिािै।कमषससफ षशरीरकीकियाओंसेिीसंपन्ननिींिोिाअपपिुमनुष्य क ेपवचारोंसेएवंभावनाओंसेभीकमषसंपन्निोिािै।वस्िुिःजीवन-भरणक ेसलएिीककयागयाकमषिी WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 vi

  7. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE कमषनिींिैिमजोआचार-व्यविारअपनेमािा-पपिाबंधुसमिऔरररश्िेदारक ेसाथकरिेिैःविभीकमष कीश्ेणीमेंआिािै।मसलनिमअपनेवािावरणसामाजजकव्यवस्था, पाररवाररक समीकरणोंआहदक ेप्रतिजजिनािीसंवेदनशीलिोंगेिमाराव्यजक्ित्वउिनीिीउच्चकोहटकीश्ेणीमें आयेगा। आजक ेजहटलऔरअतिसंचारीजीवन-वृपिक ेसफलसंचालनिेिुसभीकाव्यजक्ित्त्वउच्चआदशोंपर आधाररििोऐसीमेरीअसभलार्ािै। यिज़रूरीनिींिैककिरकोईिरककसीकायषमेपररप णषिो, परन्िुअपनादातयत्वअपनीप रीकोसशशसे तनभानाभीदेशकीसेवाकरनेक ेसमानिीिै।संप णषकिषव्यतनष्ठासेककयािुआकायषआपकोअवश्यिी कायष-समाजतिकीसंिुजष्टदेगा।कोईभीककयागयाकायषिमारीछापउसपरअवश्यछोड़देिािैअिएव सदैवअपनीश्ेष्ठिमप्रतिभासेकायषसंपन्नकरें।िरछोटीचयाषकोऔरछोटे-से-छोटेसेकायषक ेिरअंग काआनंदलेकरबढ़िेरिनािीएकअच्छेव्यजक्ित्वकाउदािरणिै। यिसवषपवहदिि्यिैककनयीग ंजएकउच्चस्िरीयपत्रिकािैजजसमेंपवसभन्नपवधाओंमेंउच्चस्िरीय लेखोंकाअन ठासंग्रििै आपसभीपत्रिकाकाआनन्दलेंएवंअपनीप्रतिकियायेंऑनलाइनयाऑफलाइनभेजें। नयीग ंजक ेमाध्यमसेिमाराआपकासंवादगतिशीलरिेगा।आपसभीअपनीसुन्दरवश्ेष्ठरचनाओंसे नयीग ंजकोतनरन्िरसमृद्धकरिेरिेंगेइसीपवश्वासक ेसाथ। अंिमेंमैःसभीसम्पादकमण्डलक ेसदस्योंएवंरचनाकारोंकोनयीग ंजपत्रिकाक ेसफलसम्पादनएवं प्रकाशनक ेसलएसाधुवादज्ञापपिकरिाि ंकरिाि ाँ। आपसभीकोिाहदषकबधाईक ेसाथबिुि-बिुिधन्यवाद!! कासलदासनेकाव्यक ेमाध्यमसेकिािै- पुराणसमत्येवनसाधुसवं नचापपकाव्यंनवसमत्यवद्यम्। सन्िःपरीक्ष्यान्यिरद्भजन्िे म ढःपरप्रत्ययनेयबुद्गधः।। अथाषि्पुरानीिीसभीचीजेंश्ेष्ठनिींिोिीऔरननयासबतनन्दनीयिोिािै।इससलएबुद्गधमानव्यजक्ि परीक्षाकरक ेजोहििकरिोिािैउसीकोग्रिणकरिेिैःजबककम खषद सरोंकािीअन्धानुकरणकरिेिैः। अस्िु, तनपवषवादरूपसेयिसभीस्वीकारकरिेिैःककराष्रकीरक्षा, कासकारात्मकपक्षिोिािै। WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 vii

  8. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE प्रकाशनसामग्रीभेजनेकापिा ई-मेलःgoonjnayi@gmail.com नयी ग ंज इंटरनेटपरउपलब्धिै। www.nayigoonj.com परजक्लककरें। नयी ग ंज.मेंप्रकासशिलेखाहदपरप्रकाशककाकॉपीराइटिै शुककदर 40/- वापर्षक: 400/- िैवापर्षक: उपयुषक्िशुकक-दरकाअगग्रमभुगिान 1200/- को -----------------------------------------द्वाराककयाजानाश्ेयस्करिै। तनयमतनदेश 1 रचनाएंयथासंभवटाइपकीिुईिों, रचनाकारकाप रानाम, पदएवंसंपक षपववरणकाउकलेख अपेक्षक्षििै। 2 लेखोंमेंशासमलछाया-गचििथाआाँकड़ोंसेसंबंगधिआरेखस्पष्टिोनेचाहिए।प्रयुक्िभार्ासरल, स्पष्टएवंसुवाच्यहिंदीभार्ािो। 3 अनुहदिलेखोंकीप्रामाणणकिाअवश्यसुतनजश्चिकरें।अनुवादमेंसिायिािेिुसंस्थानसंपादक मंडलप्रकोष्ठसेसंपक षकरसकिेिैः। 4 प्रकासशिरचनाओंमेंतनहििपवचारोंक ेसलएसंपादकमंडलप्रकोष्ठउिरदायीनिींिोगाऔरइसक े सलएप रीकीप रीजजम्मेदारीस्वयंलेखककीिीिोगी। नई ग ाँज तनयमावली रचनाएं goonjnayi@gmail. Com क े सलए नई ग ाँज क े साथ लॉग-इन करें, यि वांतछि िै। goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पिे पर भेजी जा सकिी िैः। रचनाएं भेजने आप िमारे whatsapp no. 9785837924 पर भी अपनी रचनाएाँ भेज सकिे िैं WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 viii

  9. NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE पप्रय सागथयों, नईग ाँजिेिु आपक े सियोग क े सलएआपका िाहदषक धन्यवाद। आशा िै कक ये संबंध आगे भी प्रगति क े पथ पर अग्रसर रिेंगे। आगामी अंक िेिु आप सबक े सकिय सियोग की पुनः आकांक्षा िै। आप सभी से एक मित्वप णष अनुरोध िै कक आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप क े ििि िी प्रस्िुि करें जजससे कक िमें िकनीकी जहटलिाओं का सामना न करना पड़े - 1.प्रकाशनिेिुआपकीरचनाक ेमौसलकिोनेकास्विःसत्यापन रचना प्रेपर्ि करिे समय "मौसलकिा प्रमाण पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै। इसक े त्रबना रचना पर पवचार करना संभव निीं िोगा 2. रचनाकिींपरभीप वषमेंप्रकासशिनिींिोनीचाहिए ! 3. आपकीरचनाएाँएम.एस. ऑकफसमें टाइप िोना चाहिए 4. फोंट -कृतिदेव 10, मंगल य तनकोड 5. रचनाओंक ेसाथअपनाप णषपिा, मोबाइलनंबर, ईमेलिथापासपोटषसाइजकीफोटोलगाना अपेक्षक्षििै ! 6. आपलेख, कपविा, किानी, ककसीभीपवधामेंरचनाएाँभेजसकिेिैं ! नई ग ाँज रचनाओं क े प्रेर्ण सम्बंगधि तनयम व शिे : एक से अगधक रचनायें एक िी वडष-डॉक्य मेंट में भेजें। रचनायें अपने पंजीकृि पेज पर हदए गए सलंक इस्िेमाल कर प्रेपर्ि करें। यहद आप हिंदी में टाइप करना निीं जानिे िैः, आप ग गल द्वारा उपलब्ध करवायी गयी सलतयान्िरण सेवा का इस्िेमाल कर सकिे िैः। इसक े सलए Google इनपुट उपकरणसलंक पर जाएाँ। स-आभार संपादकमंडल WEBSITE- nayigoonj.com Email address goonjnayi@gmail.com - WHATSAPP NO. 91-9785837924 ix

  10. अ अनुक्रमाविका नुक्रमाविका क्रम क्रम संख्या संख्या वििरविका वििरविका पृष्ठ पृष्ठ संख्या संख्या लेखक लेखक बृजेि बृजेि कुमार दुर्ाा दुर्ाा माहेश्वरी माहेश्वरी डॉ डॉ वििा वििा धमेजा पृष्ठ पृष्ठ संख्या संख्या लेख लेख – – विक्षक का भारत मेरा भारत भारत मेरा भारत मुखौटे मुखौटे के केपीछे पीछे कौन कविता कविता नीड़ नीड़ का का वनमााि वनमााि फिर मानि मानि जीिन जीिन में में विक्षक का महत्ि महत्ि कुमार 1 1 2 2 3 3 4 4 1 1 - - 5 5 6 6 - -10 10 11 11 - -14 15 15 - -17 कौन धमेजा 14 फिर फिर फिर हररिंि हररिंि राय बच्चन बच्चन विनोद विनोद मानिी बृजेि बृजेि कुमार अंजली अंजली साहू राय 17 ितामान ितामान व्यिस्था कृष्ि कृष्ि अजुान मेरी मेरी प्यारी प्यारी मााँ व्यिस्था की अजुान संिाद मााँ ( ( नन्ही नन्ही कलम कहानी कहानी सुनिाई सुनिाई सौ बरस बरस के के वलए पहचान पहचान की सच्चाई सच्चाई संिाद कलम से से ) ) मानिी कुमार साहू 5 5 6 6 7 7 8 8 9 9 10 10 11 11 12 12 13 13 18 18 - - 21 22 22 - - 26 27 27 28 28 – – 32 33 33 – – 36 37 37 – – 48 49 49 – – 50 51 51 – – 56 57 57 – – 6 66 6 21 26 अलका अलका प्रमोद डॉ डॉ वििा वििा धमेजा आिा आिा िैली अिोक अिोक रक्ताले प्रमोद धमेजा िैली रक्ताले 32 36 48 50 56 सौ वलए ईश्वर ईश्वर र्ीत र्ीत – –लाि लोक लोक कथा कथा – –मााँ आलेख आलेख – –वहन्दू कंधे पर मााँ पन्ना पन्ना धाय वहन्दू ह्रदय ह्रदय सम्राट सूरजमल सूरजमल स्थल एक एक नजर ( (राजस्थान राजस्थान ) ) सावहत्य अकादमी अकादमी पुरस्कार लाि कंधे पर वलए वलए कब धाय का सम्राट – –महाराजा कब तक का त्यार् त्यार् महाराजा तक कुमार बृजेि बृजेि कुमार 14 14 ऐवतहावसक ऐवतहावसक स्थल नजर – –वचत्तौडर्ढ़ वचत्तौडर्ढ़ 6 67 7– – 7 72 2 सावहत्य पुरस्कार के के बारे जावनए जावनए बारे में में 15 15 73 73 - - 76 76

  11. साक्षात्कार साक्षात्कार 16 16 17 17 साक्षात्कार साक्षात्कार – –सावहत्य साक्षात्कार साक्षात्कार – –आर ( (पुलफकत िमाा पुलफकत िमाा ) ) सावहत्य ( (बोहती ढां आर. . जे जे. . एस बोहती ढांडा एस. . डा ) ) 77 77 - - 84 85 85 - - 90 84 90

  12. मानव जीवन में शिक्षक का महत्व 1

  13. दीपक की भाांति होिा है शिक्षक, स्वयां जलकर प्रकाि फ ै लािा है शिक्षक, उन्नति का मार्ग ददखािा है शिक्षक, ज्ञान की र्ांर्ा में नहलािा है शिक्षक, इसशलए िो शिक्षक साधारण नहीां होिा, शमट्टी को सोना बनािा है शिक्षक! “शिक्षक” 2

  14. भा रतीय संस्कृतत में शिक्षक क े शिए गुरू िब्द का प्रयोग ककया गया है! जिसका अर्थ होता है- ज्ञान देने वािा अर्ाथत अंधकार से प्रकाि की ओर िे िाने वािा! बच्चों की जिंदगी में मां क े बाद शिक्षक की बहुत बडी भूशमका होती है! वह बच्चे को ककस तरह ढ़ािता है, यह तनभथर करता है उसकी योग्यता पर! अगर शिक्षक का िाजब्दक अर्थ देखे तो पता चिता है कक शिक्षण का कायथ करने वािा अर्ाथत अध्ययन- अध्यापन कराने वािा! “जजस प्रकार एक कुम्भकार शमट्टी को िरह-िरह की आकृति में ढ़ाल देिा है उसी प्रकार बच्चे क े भववष्य का तनमागिा उसका शिक्षक ही है!” अनेक िेखकों ने शिक्षक िब्द की अिग-अिग व्याख्या की है – “शिष्य क े मन में सीखने की इच्छा जार्ृि करने वाला – शिक्षक!” “कमजोरी को दूर कर शिखर िक ले जाने वाला – शिक्षक!” यह सब का अपना एक मत है िेककन सच यह है कक शिक्षक ही बच्चे का भववष्य तनमाथता होता है! प्राचीन काि हो या वतथमान, भारतीय संस्कृतत में शिक्षक/ गुरू का पद ईश्वर क े समकक्ष बताया गया है! िैसे ईश्वर सवथिजततमान होने पर भी कभी गित नहीं करता है, वैसे ही शिक्षक अपने शिष्य का कभी बुरा नहीं सोच सकता! शिक्षक ही है िो बच्चे क े मन में प्रगतत, उन्नतत तर्ा सपनों को साकार करने की भावना पैदा करता है! शिक्षक की शिक्षा ही है िो हमारे िीवन को सही ददिा तनदेि देती है और हमें सफिता क े मागथ पर आगे िे िाती है! यदद शिक्षक ने होते तो िायद हमारा समाि या यह कहे पूरा ववश्व इतना आगे नहीं बढ़ा होता! सीखना एक अिग प्रकिया है िेककन सीख कर सीखना एक अिग चीि है! िरृरी नहीं कक सीखने वािा वही चीि दूसरे को शसखा सक े ! माता-वपता तर्ा भगवान क े बाद शिक्षक की होता है िो बच्चे का भववष्य तय करता है! 3

  15. स्वामी ववरिानंद सरस्वती िैसे आचायथ ने इस समाि का राष्र को िो अमूल्य शिष्य दयानन्द सरस्वती ददया है! जिसने अपने राष्र की धरोहर वेद ज्ञान तर्ा गुरूकुि शिक्षा को पुन स्र्ावपत करने का प्रयास ककया! समाि में फ ै िी कुरीततयों तर्ा आडंबरो का पुरिोर ववरोध ककया! अपना पूरा िीवन राष्र तर्ा समाि की सेवा क े शिए तनछावर कर ददया! यह अपने आप में एक अद्भुत कायथ है! “घनानांद शिक्षक साधारण नहीां होिा, तनमागण और प्रलय उसकी र्ोद में पलिे हैं! अर्र मुझ में सामर्थयग है, िो मैं अपने पोषण करने वाले सम्राटों का तनमागण कर लूांर्ा!” आचायग चाणक्य ने घनानांद को चुनौिी देिे हुए कहा क्रक – यह प्रततज्ञा आचायथ चाणतय ने अपनी शिष्य चंद्रगुप्त का तनमाथण कर पूरी की और अपनी योग्यता क े बि पर चंद्रगुप्त िैसे तनधथन और गरीब बािक को चिवती सम्राट बना ददया! यह होती है शिक्षक की भूशमका! शिक्षक क े ववषय में महापुरूषों क े ववचार – “अच्छा शिक्षक वह है जो जीवन पयंि ववद्यार्थी बना रहिा है और इस प्रक्रिया में वह क े वल क्रकिाबों से नहीां अवपिु ववद्यार्र्थगयों से भी सीखिा है!” - डॉक्टर सवगपल्ली राधाकृष्णन “मैं शिक्षक हूां, यदद मेरी शिक्षा में सामर्थयग है, िो अपना पोषण करने वाले सम्राटों का तनमागण मैं स्वयां कर लूांर्ा” “एक सभ्य घर जैसा कोई स्कूल नहीां है और एक भद्र अशभभावक जैसा कोई शिक्षक नहीां है” “क े वल एक चीज जो मुझे सीखने में हस्िक्षेप करिी है, वो है मेरी शिक्षा” –चाणक्य - महात्मा र्ाांधी – अल्बटग आइांस्टीन “मैंने जो कुछ भी सीखा है, क्रकिाबों से सीखा है” – अब्राहन शलांकन “शिक्षा की जडे कडवी होिी हैं, मर्र फल मीठा होिा है” - अरस्िु 4

  16. “शिक्षक समाज क े दपगण को स्वच्छ रखने का वह कायग करिा है जजस में आने वाली पीदढ़याां अपने अच्छे एवां र्लि ववचार रृपी मुांह को देखने में भली भाांति सक्षम हो पािी है! हम जैसे हैं उसमें हमारे पूवग शिक्षकों का अिुल्य योर्दान है, भववष्य में जो व्यजक्ि होंर्े उसमें हमारी भूशमका भी प्रमुखिा से शलखी जाएर्ी, अिः सावधान होकर अपने किगव्य का पालन करें” – अज्ञात िेककन प्राचीन काि और वतथमान क े शिक्षक मैं उनकी कर्नी और करनी में बहुत अंतर आ गया है! अब शिक्षा व्यापार बन कर रह गई है! आि शिक्षक की जस्र्तत वेतन भोगी क े शसवाय कुछ नहीं है! इसशिए आि की जस्र्तत को देखकर ककसी ने कहा है – र्ुरू लोभी चेला लालची, दोनों खेल दाव! भवसार्र में डूबिे, बैठ पत्र्थर की नाव!! िबकक शिक्षक इस राष्र तर्ा समाि की िडे हैं! जिस प्रकार िड क े दहि िाने पर पेड गगर िाता है, उसी प्रकार एक उत्तम शिक्षक क े बबना शिष्य का तनमाथण नहीं हो सकता है! अतः शिक्षक को अपने कतथव्य को समझ कर, बच्चों को िारीररक मानशसक बौद्गधक रृप से तैयार करना चादहए! तयोंकक छोटे बच्चे शमट्टी की तरह है, िैसा शिक्षक डािेगा, बस वैसे ही ढि िाएंगे! आि शिक्षक और शिष्य क े बीच दूरी बनती िा रही है, वे भी समाप्त होगी! तभी हम सही अर्थ में कह सक ें गे कक शिक्षक ही अपने शिष्य का सच्चा सही पर् प्रदिथक है! बृजेि कुमार 5

  17. भारत मेरा भारत यह एक अप्रिय तथ्य है कक सन् 1947 में भारत द्वारा स्वतन्त्रता िाप्तत क े अवसर पर भारत का प्रवभाजन धमम क े आधार पर ककया गया | पृथक राष्ट्र इस मान्त्यता क े आधार पर हहन्त्दू और इस्लाममक दो राष्ट्रों की पररकल्पना को मौन स्वीकृतत िदान करते हुए भारतमाता का अंग – भंग ककया गया था उसी क्षण हमारे कणमधारों क े मन में यह बात बैठ गई कक धमम को राजनीतत से पृथक रखना चाहहए ! अपने इस संकल्प को साकार करने क े प्रवचार से उन्त्होंने भारत क े संप्रवधान में भारत को एक धममतनरपेक्ष राज्य ( Secular State ) घोप्रित ककया! धमम का अथम धमम को सामान्त्यतः अंग्रेजी क े शब्द Religion क े अथम में ियोग ककया जाता है और उसको मत, पंथ, मजहब आहद क े रूप में ग्रहण ककया जाता है | ररलीजन ( Religion ) की अवधारणा अलौककक प्रवश्वासों तथा अतत िाकृततक शप्ततयों से सम्बद्ध है , जबकक धमम भावना में ककसी िकार क े अलौककक क े ितत प्रवश्वास क े मलए कोई स्थान नहीं है हमको यह जानकर आश्चयम नहीं करना चाहहए कक धमम ग्रन्त्थों एवं आचार संहहताओं में जहााँ धमम क े लक्षण बताए गए हैं | वहााँ आत्मा , परमात्मा अथवा ककसी अतत िाकृत एवं अधध - िाकृत की चचाम नहीं की गई है | 6

  18. यथा- धारण करने क े कारण ही धमम कहलाता है, धमम िजा को धारण करता है- (महाभारत ) धैयम , क्षमा , दम , अस्तेय , शौच , इप्न्त्िय - तनग्रह , तत्वज्ञान , आत्मज्ञान , सत्य और आक्रोध ये दस धमम क े लक्षण हैं | ( मनुस्मृतत ) डॉ . राधाकृष्ट्णन ने धमम की भारतीय अवधारा को स्पष्ट्ट करते हुए मलखा है कक "प्जन मसद्धान्त्तों क े अनुसार हम अपना दैतनक जीवन व्यतीत करते हैं तथा प्जनक े द्वारा हमारे सामाप्जक सम्बन्त्धों की स्थापना होती है , वे सब धमम है धमम जीवन का सत्य है और हमारी िकृतत को तनधामररत करने वाली शप्तत है" इस दृप्ष्ट्ट से धमम कर्त्मव्य भावना का वाचक ठहरता है । महाभारतकार ने सामाप्जक स्वास्थ्य को दृप्ष्ट्टगत करक े नागररकों को आदेश हदया है । कक "सावधान होकर धमम का वास्तप्रवक अथम सुनो और उसी क े अनुसार आचरण करो जो कुछ तुम अपने मलए हातनिद और दुःखदायी समझते हो , वह दूसरे क े साथ मत करो” | पाश्चात्य धचन्त्तन में भी हमको कर्त्मव्यपरक धमम की अवधारणा ममल जाती है | जममनी क े दाशमतनक कप्रव गेटे का कथन है कक "सच्चा धमम हमें आधितों का सम्मान करना मसखाता है और मानवता, तनधमनता, मुसीबत , पीडा एवं मृत्यु को ईश्वरीय देन मानता है ! प्रवश्ववन्त्य पूज्य महात्मा गांधी िायः यह कहा करते थे " मेरा प्रवश्वास है कक बबना धमम का जीवन बबना मसद्धान्त्त का जीवन होता है और बबना मसद्धान्त्त का जीवन वैसा ही है जैसा कक बबना पतवार का जहाज | प्जस तरह बबना पतवार का जहाज 7

  19. मारा - मारा किरेगा , उसी तरह धममहीन मनुष्ट्य भी संसार - सागर में इधर - उधर मारा - मारा किरेगा और अपने अभीष्ट्ट स्थान तक नहीं पहुाँचेगा ! चूाँकक राजनीतत हमारे जीवन का अमभन्त्न अंग है | अतः उसका भी धमम होना चाहहए अथामत् वह भी कततपय मान्त्यताओं पर आधाररत होनी चाहहए | धममप्रवहीन राजनीतत असामाप्जक होगी और वह हमारे मलए हहतकर नहीं है | धमम और राजनीतत का सम्बन्त्ध भारत में धमम को राजनीतत का मागमदशमक माना गया है और इसी दृप्ष्ट्ट से राजा क े धमम का राजा क े कर्त्मव्य का स्वरूप - तनधामरण ककया गया है- " राजा यहद आलस्य छोडकर दण्ड देने लायक अपराधी को दण्ड न दे तो बलवान दुबमलों को लोहे क े कॉंटे में पकडी हुई मछमलयों की तरह खा डालें " तथा " राजा शास्र क े अनुसार मंबरयों द्वारा िजा से वाप्रिमक कर वसूल करे और अपनी िजा क े साथ प्रपता क े समान व्यवहार करे | " ( मनुस्मृतत ) इस आदशम का पालन करने वाले राजा क े ितत ककसी को प्रवरोध नहीं होता है आधुतनक संदभम में यहद कोई राजनेता उतत आदशम का अनुसरण करता तो – “न राजनेता से प्रवरोध हो सकता है और न ही राजनेताओं का तनमामण करने वाली राजनीतत से |” तो ककसी को ककसी से भी मशकायत नहीं होगी | कालान्त्तर में धमम क े मनमाने अथम लगाकर शासक धमम क े नाम पर िजा पर अत्याचार करने लगे अथवा जनता का शोिण करने लगे | तब से राजनीतत क े क्षेर में 'ररलीजन' को अछूत समझा जाने लगा | लोग धमम क े मूल अथम को भूल गए और ररलीजन क े समकक्ष धमम को मानकर धमम से परहेज करने लगे | राजनीतत क े संदभम में धमम और ररलीजन का एक ही अथम में ियोग ककया जाने लगा है | 8

  20. राजनीतत का धमम हो धमम क े नाम पर राजनीतत क े अमभशतत बन जाने का मुख्य कारण यह है कक स्वाथमपरता क े कारण हम लोगों ने धमम क े वास्तप्रवक अथम को भुला हदया है तथा गांधीवादी जीवनदशमन को अस्वीकार कर हदया है | धमम वस्तुतः मानवता एवं नैततकता का पयायम है | इस दृप्ष्ट्ट से मानवमार का धमम क े वल एक धमम , मानव धमम ठहरता है | संप्रवधान में यहद भारत का धमम मानव धमम मान मलया गया होता , अथवा मान मलया जाए , तो धमम क े नाम पर उत्पन्त्न उन्त्माद एवं आतंक को सहज ही तनयंबरत कर मलया जाए , तयोंकक तब हम मजहवी कट्टरता को बुरा - भला कहेंगे , न कक धमम से उत्पन्त्न काल्पतनक संकीणमता पर आाँसू बहाना चाहेंगे | महात्मा गांधी धमम और ररलीजन क े भेद को समझते थे | उन्त्होंने राजनीतत में धमम भावना अथवा नैततकता का समावेश करक े प्रवश्व को सत्य एवं अहहंसा का संदेश हदया था | सत्य का व्यावहाररक रूप अहहंसा है और धमम नैततकता का पयामय है | राजनीतत में नैततकता का समावेश करक े गांधीजी ने राजनीतत का शुद्धधकरण ककया और धमम क पर राजनीतत करने वालों को अलग - थलग करने का ियास ककया | उनका मत सवमथा स्पष्ट्ट था कक "जो चीज प्रवकार को ममटा सक े , राग - द्वेि को कम कर सक े , प्जस चीज क े उपयोग में मन सूली पर चढ़ते समय भी सत्य पर डटा रहे, वही धमम की मशक्षा है, मैं इस बात से सहमत नहीं हूाँ कक धमम का राजनीतत से कोई सम्बन्त्ध नहीं है, धमम से प्रवलय राजनीतत मृत शरीर क े तुल्य है, जो क े वल जला देने योग्य है" देश की जो राजनीततक मान्त्यताएं हैं , उनका अनुसरण करना और देश क े संप्रवधान क े अनुसार देश क े जो राजनीततक उद्देश्य हैं | उनकी पूततम करना , यही 9

  21. राजनीतत का धमम होना चाहहए भारत जैसे प्रवशाल देश में अपने संप्रवधान की सीमाओं में कायम करना राजनीतत का धमम होना चाहहए | इसक े बाहर जाने का अथम होगा राजनीतत क े धमम का उल्लंघन, इस दृप्ष्ट्ट से संप्रवधान में संशोधन करने क े पूवम खूब सोच - समझ लेना चाहहए | जहााँ तक सम्भव हो यथाप्स्थतत वाली नीतत अपनाई जानी चाहहए , तयोंकक एक बार छूट हो जाने पर छूट का अन्त्त नहीं होता है | भारत इसका ज्वलन्त्त उदाहरण है | िततविम औसतन दो संशोधन करक े संप्रवधान को अपना अनुगामी बनाकर तया हम राजनीतत में धमम को अलग नहीं बता रहे हैं | दुगाम माहेश्वरी 10

  22. मुखौटे क े पीछे कौन ? 11

  23. मैः ही तो ह ूँ, वो ! जो कभी ककस रंग में तो कभी ककस रंग में ! वो कौनसा रंग है जो मेरा है, इन सब में से ! कोई नहीं ! इंसान ककतनी बख बी छछपा लेता है असललयत को, ऐसी कमाल की प्रछतभा क े वल हम मनुष्यों में ही तो होती है ! शेर, शेर ही दिखता है , वो कभी दहरन जैसा दिखने या होने का प्रयास नहीं करता ! सांप, सांप ही दिखता है, हम उससे संभल कर चल सकते हैं ! अगर सांप में खुि पर चींटी का मुखौटा लगाने की क्षमता आ जाती तो सोचचये ककतने डंक जीवन में हमें लग जाते! लेककन सांप ककतना भी जहरीला क्यों न हो वो अपने जहर को ढक कर याछन छछपा कर नहीं रखता! इसललये उसकी यह सबसे बड़ी ख़ बस रती है कक वो सांप है पर सच्चा है, बबना मुखौटे क े है ! बबल्ली शेर बनकर डराती नहीं ! औऱ शेर बबल्ली का रृप बनाकर हमारे आस पास रह सकता नहीं ! ककतना सच्चा है सब जानवरों क े जंगलों में, हम इंसानों क े जंगलों में ककस चेहरे क े पीछे कौनसा चेहरा छछपा है –ये सच कभी कोई नहीं जान सकता ! सबको पता होता है शेर दहंसक जानवर है, इससे बच कर रहना है, नहीं तो खा जायेगा ! मगर ये इंसान ? जजसको कोई नहीं जानता कक कब यह ककस रृप में होगा? जो दहंसक भी हो तो हम बेखबर होते हैं औऱ वो कब हमें खा जाता है, पता ही नहीं चलता ! औऱ कोई दहंसक ना हो, बहुत स्नेदहल भी हो तो हम उससे डरने लगते हैं, उस पर शक करने लगते हैं ! सोचते हैं कक बनता तो अच्छा है ऊपर से, असली में ऐसा नहीं होगा ! 12

  24. “सच्चे पर शक औऱ झ ठे पर ववश्वास ! तभी तो यहाूँ इंसानों क े जंगलों में कोई ककसी का नहीं, ककतनी भी सावधानी बरतो, हम लशकार हो ही जाते हैं –धोखेलमल ही जाते हैं औऱ जानवरों क े जंगलो में सावधानी बरत कर खुले शेर से भी बच कर हम सही सलामत आ जाते हैं !” क्यों ? क्योंकक शेर ने मुखौटे तो नहीं लगाए औऱ हम बड़े कुशल हैं –‘तरह - तरह क े मुखौटे लगा लेते हैं ! इसललये लसनेमा जगत में भी एक गाना बहुत प्रचललत हुआ – “एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग !” इस कायय में इतने पारंगत होते हैं हम कक एक ही समय में कई भ लमकाओं को छनभा लेते हैं ! इंसानी बुजदि का बड़ा गैर कान नी प्रयोग है ये ! जजसकी कोई सजा नहीं ! सजा तो क्योंकक तब हो सकती है ज़ब अपराध साबबत हो ! मुखौटे लगाकर जीने को कोई अपराध ही नहीं मानता ! इंसान ने डडचियों से बुद्चध को इतना ववकलसत कर ललया है कक ककतने भी ख बस रत ढंग से अपनी बिस रती को छछपाने में सफल हो जाता है ! काश कक बहुरूवपया इंसान, जानवरों की तरह उसी रंग का होता, जो उसका अपना व्यजक्तत्व होता, चाहे अच्छा होता या बुरा ! चाहे काला होता या सफ़ े ि ! चाहे वो 13

  25. आजस्तक होता या नाजस्तक ! जैसा होता बस वैसा होता ! सबसे सुन्िर उसका असली रृप होता ! तब वो कुरृप होकर भी आकर्यक लगता ! वो पुराने जमाने जैसा होता कक सीधा, सच्चा !चाहे उसकी अलमाररयों में जीत क े प्रमाण कई मैडल ना होते लेककन कई अबोले, अव्यक्त, पुण्य कमों से उसक े खाते भरे होते ! अपने चेहरे पर से ि सरे चेहरे को उतार फ ें क े तो हम वो पाक –पववत्र –साफ चेहरा पा लेंगें, जो ईश्वर की भेंट है –हमस्वयं ! हम स्वयं, स्वयं क े पासऔऱ सबक े साथ एक जैसे, सच्चे रृप में ! डॉ. शिवा धमेजा लेखक 14

  26. नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर, हररवंश राय बच्चन नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! वह उठी आँधी फक नभ र्ें छा गया सहसा अँधेरा, धूलि धूसर बादिों ने भूलर् को इस भाँनि घेरा, राि-सा ददन हो गया, फिर राि आ ई और कािी, िग रहा था अब न होगा इस ननशा का फिर सवेरा, राि क े उत्पाि-भय से भीि जन-जन, भीि कण-कण फकंिु प्राची से उषा की र्ोदहनी र्ुस्कान फिर-फिर! 15

  27. नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! वह चिे झोंक े फक काँपे भीर् कायावान भूधर, जड़ सर्ेि उखड़-पुखड़कर गगर पड़े, टूटे ववटप वर, हाय, निनकों से ववननलर्ाि घोंसिो पर क्या न बीिी, डगर्गा ए जबफक क ं कड़, ईंट, पत्थर क े र्हि-घर; बोि आशा क े ववहंगर्, फकस जगह पर िू नछपा था, जो गगन पर चढ़ उठािा गवा से ननज िान फिर-फिर! 16

  28. नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! क्रुद्ध नभ क े वज्र दंिों र्ें उषा है र्ुसकरािी, घोर गजानर्य गगन क े क ं ठ र्ें खग पंक्क्ि गािी; एक गचडड़या चोंच र्ें निनका लि ए जो जा रही है, वह सहज र्ें ही पवन उंचास को नीचा ददखािी! नाश क े दुख से कभी दबिा नहीं ननर्ााण का सुख प्रिय की ननस्िब्धिा से सृक्टट का नव गान फिर-फिर! नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! 17

  29. वर्तमान व्यवस्था की सच्चाई आज करें हम बार् देश की देश हमारा बबगडा है। नेर्ाओं ने मंत्री बंन कर देश हमारा ररगडा है ॥ पुलिस हमारी अत्याचारी चारधाम हैं थाने जी । बबन पैसे क े काम करे ना थानेदार ना माने जी ॥ स्कूिों की हािर् देखो टीचर मस्र्ी मार रहे बच्चे गुटखा -जदात खावे बच्चों को ना डांट रहे , 18

  30. कहा बर्ाऊ बार् देश की गंदगी हम फ ै िार्े हैं। कुत्ता -बबल्िी मरे सडक पर उनको ना दफनार्े हैं ॥ कहे मानवी सुन मेरे भाई बार् समझ में ना आई बेटा हमने 4 करें हैं । बेटी हमने मरवाई बेटी बचाओ , बेटी पढाओ यही हमारा नारा है ॥ देश क े सैननक वीर बहादुर दुश्मन को ििकारा है। 19

  31. भगर् लसंह की र्रह देश में र्ुम भी ऐसा काम करो गांधीजी क े सपनों की खानर्र भारर् मां से प्यार करो वर्तमान की बार् करें हम हम र्ो वह सुल्र्ान हैं ॥ भारर् मां को अमरीका में लमिर्ा अब सम्मान हैं । िेककन बच्चों सुनो कहानी भक्र् देश का बनना है ॥ अब्दुि ( किाम ) क े सपनों को साकार र्ुम्ही को करना है । 20

  32. अमेररका -जापान ,चीन हो अब ना र्ुम को डरना है ॥ िाि ककिे की प्राचीर से भारर् मां की गररमा है। वंदे मार्रम् -वंदे मार्रम् ,जय हहंद! ववनोद मानवी 21

  33. कृष्ण-अर्जुन यजद्ध संवाद कर्ुण्येवाधधकारस्ते र्ा फलेषज कदाचन । र्ा कर्ुफलहेतजर्जुर्ाु ते संगोऽस््वकर्ुणण ॥ 22

  34. र्बश्रीकृष्णनेशांततप्रस्तावर्ेंपांडवोंक ेललएपांचगााँवदेनेकीबातकही, , तबदजयोधननेएक इंचर्र्ीनदेनेसेर्नाकरददया! तबर्हार्ारतक ेयजद्धकाद्वारखजलगयाऔरकजरूसेना , पांडवोंकीसेनाकजरूक्षेत्रर्ेंआगई।यजद्धकीदोनोंओरसेशंखतथा दजंदर्ी बर्नेलगी ! तब अर्जुनअपनागाण्डीवहाथसेधगरादेताहै।तबश्रीकृष्णपाथुकोर्ोकहतेहैं , उससेआगे कववताशजरृहोतीहै- - हे पाथु उठो! अब यजद्ध करो , कायरता नपजंसक का गहना है, गाण्डीव उठा गर्ुन कर डालो , सर्र र्ूलर् र्ें हलचल कर डालो , पााँचर्न्य को फूं का रण र्ें , इसकी अब तजर् लार् बचा लो । शोक तजम्हें न शोर्ा देता , रण र्ें क े वल योद्धा होता , ररश्ते - नाते ना होते रण र्ें , वीरों को ना रोते देखा , क े वल रक्त पात होता है , ववर्यश्री का लक्ष्य होता है । 23

  35. जर्नको तजर् अब देख रहे हो , क े वल यह अधर्ी योद्धा हैं , र्ो चजप बैठे थे रार्सर्ा र्ें , चौसर होते देख रहे थे , आयों की र्याुदाओं को खंड-खंड करक े , सब पर पानी फ े र रहे थे ! लसंह नाद की र्गह , श्रगाली आवाज़ सजनाई देती है , पजत्र र्ोह क े आगे रार्न र्र्बूर ददखाई देते हैं , नारी का चीर हरण होने पर , शस्त्र ना जर्नक े उठते हैं , र्ानो अब खून नहीं वीरों का , बजर्ददल बनकर बैठे हैं ! ऐसे इन अधर्ी लोगों का , लर्ट र्ाना ही अच्छा है , 24

  36. हे पाथु सजनो , इस धर्ु यजद्ध र्ें , शस्त्र उठाना अच्छा है , जर्ससे वीरों की शोर्ा हो , धर्ु ध्वर्ा आगे को बढे । इतना सजनकर पाथु बोला , हे क े शव! क ै से बाण चला दूाँ र्ैं , ववर्यश्री क े ललए अपनों को र्ार धगरा दूाँ र्ैं , इन्हीं हाथों ने बचपन र्ें , सबक े ही पैर दबाये हैं , र्ीष्र् वपतार्ह ने लसर को , चूर् चूर् कर हर्को र्ी लाड लडाए हैं , अगर बाण की नॉक करृ ाँ र्ैं , 25

  37. लज्र्ा र्जझको आती है , है क े शव! अब र्ृ्यज दे दो , यही सीख सजहाती है । यह सजनकर क े शव र्जस्काये , र्गत गजरू ने उपदेश सजनाये , र्न्र् र्ृ्यज क े बंधन का , गीता ज्ञान सजनाते हैं , सजख- दजुःख से आगे बढने का , स्य र्ागु बतलाते हैं , इतना सजनकर पाथु ने गाण्डीव हाथ र्ें उठा ललया , कौरव सेना पर टूट पडे , हाहाकार र्चा ददया । - बृर्ेश कजर्ार 26

  38. मेरी प्यारी मााँ मााँ हमको लगती प्यारी है, मााँ की ममता ही न्यारी है! पहले तो मााँ दुलारती है, दुलार कर हमें जगाती है! विद्यालय क े ललए फिर मााँ ही, करती सारी तैयारी है! विद्यालय से िापस आते, मााँ को मुस्कुराते ही पाते! हमको मुस्कुराते देखती तो, मााँ जाती बारी-बारी है! मााँ ही गंगा की धारा है, मााँ ही मेरी िुलिारी है! मेरी मााँ सबसे प्यारी है!! अंजली साहू कक्षा-7th बाल भारती विद्यालय(अलिर) 27

  39. सुनवाई कनिकािेघड़ीदेखीरातकेग्यारहबजगयेथेपरनिनतिअभीतकिहीआयाथा ,कनिकाकोनिन्ताहोिेलगी ।निनतिउसकीआँखोंकाताराथाक्षणभरभीउसेउदासदेखिाउन्हेगवारािथा।तभीद्वारकीघंटीबजी ,कनिका दौड़करदरवाजाखेालिेगई।उसिेसोिनलयाथानकआजनिनतिसेकहदेगीनककलसेवहउसकेनलयेदरवाजा खोलिेकेनलयेइतिीराततकिहीजागेगी।अगरदसबजेकेबादघरमेंपांवरखातोितोखािानमलेगािमैंबात कर ं गी । द्वारखोलतेहीसामिेखाकीवदीवालेकोदेखकरकनिकाकाहदयकाँपउटा।कहींनिनतिकेसाथतोकुछिहीहुआ इसआशंकािेउसकीसुधबुधनबसरादी।इसकेपूववनकवहकुछपूछतीपुनलसवालेिेकहा‘‘ यहनिनतिकाघरहै ’’? “जीहांबताइयेमैंउसकीमाँह ँवहठीकतोहैि’’? “पहलेआपउसेबुलाइयेतबमेंबताऊ ँगानकवहठीकहैनकिहीं’’। “मतलब ?’’ “आपकेबेटेकेनवरुद्धअरेस्टवारेंटहै’’। कनिकामािोआसमािसेनगरीहोउसिेकहा‘‘ देनखयेआपकोकोईगलतफहमीहुईहैयहनिनतिगुलाटीका घरहैनिनतिमेराबेटायूनिवसवटीमेंबीएससीकाछात्रहै, कोईिोरउिक्कािहींहै’’। “जीहाँमैंउसीनिनतिगुलाटीकीबातकररहाह ँजोयूनिवसवलकालेजमेंबीएससीकररहाहैऔरइसीघरमेंरहता है’’। “क्योंक्यानकयाहैमेरेबेटेिे?’’कनिकाकोअभीभीनवश्वासथानकपुनलसवालेकोधोखाहुआहै ,वहनकसी औरनिनतिकेभ्रममेंउसेबेटेकोपूछरहाहै। उसपुनलसवालेिेकहा‘‘ आपकेबेटेपरबलात्कारकाआरोपहै” । कनिकाकेपाँवतलेजमीिनखसकगई।‘‘ िहींिहींमेराबेटाऐसािहींकरसकतावहशरीफघरकाबेटाहै।” “देनखयेवोकैसेघरकाबेटाहैमुझेउससेकुछलेिादेिािहींहैपरनजसलड़कीकेसाथउसिेनखलवाड़नकयाहै उसिेउसीकािामनलयाहै’’ दरोगािेघरकािप्पािप्पाछािडालानफरनिनतिकोिपाकरनफरआिेकीधमकीदे 28

  40. करिलागया।वोतोघरमेंसबकुछउलटपलटकरिलागयापरकनिकाकेमिमेंजोझंझावतउत्पन्िकरगयाकरिलागया।वोतोघरमेंसबकुछउलटपलटकरिलागयापरकनिकाकेमिमेंजोझंझावतउत्पन्िकरगया उसकेसमक्षउलटपलटकुछिथी। कनिकाकोनवश्वासथानकनकसीदुश्मिीमेंउसलड़कीिेऐसाकहाहोगा।उसिेउसलड़कीसेनमलिातयनकया।रात नकसीतरहकटीपरसुबहहीवहथािेपहुँिगई।वहाँवहलड़कीऔरउसकेघरकेलोग ,नमत्रऔरकुछतमाशादेखिे वालीभीड़उपनस्थतथी।कनिकाकोदेखतेहीनकसीिेकहा‘‘ अरेयहहीतोहैउसबलात्कारीकीमाँ’’ सबउसेघूर घूरकरदेखिेलगे , । लोगोंिेउसेघेरनलयाकोईबोला‘‘ अपशब्दभीकहिेसेबाजिआये, नजन्हें सुिकरकनिकालज्जासेगड़गई ,अपमािसेउसकािेहरालालहोगया।वो तोपुनलसकेनसपाहीिेउसकेअन्दरजािेकारास्ताबिायाअन्यथापतािहीकनिकाउसकेसाथभीड़क्याकरती। अन्दरवहलड़कीबैठीथीउसकीसूजीआँखें ,िेहरेकाआक्रोशऔरअस्तव्यस्तनस्थनतउसकीसच्िाईकेसाक्षीथे ।संभवतःपूरीरातवहऔरउसकापररवारकोतवालीमेंहीरहेथे, नफरभीकनिकाकामििमािा ,उसिेउसलड़की सेपूछा‘‘ क्याजोबयाितुमिेनदयाहैवहसिहै’’? ‘‘इसीकोअगवाकरलोतबतोबच्िूहाथआएंगे।’’ ’’कुछलोगतोउसे मािवीनबफरपड़ी‘‘ आपक्यासमझतीहैंमुझेअपिातमाशाबिािेकाशौकहैजोमैंयहकोतवाली ,लोगोंकेउल्टे सीधेप्रश्नोंऔरमेडकलिेकअपकीयातिासहरहीह ँ”! कनिकासकपकागई, अपिेकोसंयतकरतेहुएशान्तस्वरमेंउसिेपूछा‘‘ िहींमेरामतलबहैनकक्यातुमश्योरहोनक तुम्हारेसाथअिािारकरिेवालानिनतिगुलाटीहीथा’’? “जीहाँविहन्रेडविपरसेंटश्योरह ँ’’ उसिेकनिकाकोघूरतेहुएकहा। तभीमािवीकीमाँिउसेउपेक्षासेदेखतेहुएकहा‘‘ आपकोक्यापताएकबेटीकीइज्जतक्याहोतीहै ,आपकेबेटा हैि ,तोदेदीउसेखुलीछूटनकजाओबेटाजोमिमेंआयेकरोआनखरमदवहो।’’ पीछेसेमािवीकेनपताश्रीरंजिबोले‘‘ आपअपिेबेटेकोिाहेलाखनछपालें, नजतिेिाहेंजोरलगालेंपरवह बिेगािहीकािूिकेहाथबहुतलम्बेहैं”! कनिकापरव्यंग्यकेवारपेवारहोरहेथेकोईमाििेकोतैयारिहींथानकउसेिहींपतानकनिनतिकहाँहै।उसे िेताविीदेदीगईथीनकवहकहींबाहरिहीजाएगी। नकसीप्रकारआघातोंसेक्षतनवक्षतवहघरआकरकटेपेड़केसमािढहगई।कालेजमेंनशनक्षकाकनिकाका इतिाअपमाितोजीविमेंकभीिहुआथा।कनिकामनहलाकालेजमेंपढ़ातीहैऔरस्त्रीवादीबातोंमेंबढ़िढ़कर नहस्सालेतीरहीहै, परआजउसकीबड़ी-बड़ीबातोंकीधनज्जयाँउड़गईथीं, वहभीउसकेअपिेबेटेकेकारणऔर 29

  41. वहप्रश्नोंकेकटघरेमेंखड़ीथी।अिािकउसेध्यािआयानकनिनतिहोगाकहाँ ,होसकताहैबेटाअपराधीहीहोपरहै तोउसकेहदयकाटुकड़ा।उसकेबारेमेंसोितेहीवहकाँपउठी‘ हेभगवािमेरेबेटेकोबिालो’ ’ तभीउसकेअन्तमवििेउसेटकोहामारा‘‘ अच्छाअगरमािवीतेरीबेटीहोतीतोभीक्यातूयहीकहती?’’ उसिेस्वयंसेतकवनकया‘‘ क्यापतामािवी झूठबोलरहीहो’’ उसकीहालतदेखिेकेबादऐसामाििेकोमििहीं कररहाथा।परअपिेबेटेपरऐसेआरोपपरभीउसेनवश्वासिहींहोरहाथा।उसेयादहैनकउसिेनिनतिकेपापािवीि केजािेकेबादअकेलेहीनकतिेलाड़प्यारसेउसेपालाहै।जीविमेंआयेसंघर्षोंकीतनिकभीआँिउसिेनिनतिपर िहींपड़िेदी।स्वयंसारेदुखझेलकरउसेअपिेआंिलकीओटमेंसुखकेसायेमेंनछपाएरखा। निनतिलगभगदसवर्षवकारहाहोगाजबउसिेहठठािनलयाथानकउसकेसारेदोस्तकारसेस्कूलआतेहैंवहबससे िहींजाएगा, तबकनिकािेअपिेआनफससेअनिमधिलेकरएकसेकेंडहैंडकारखरीदलीथी।जबकारघरपर आईतोनिनतिमारेखुशीकेउसकेगलेलगगयाथाऔरउसकोढेरसारीनकस्सीदेडालीथी।निनतिकीप्रसन्ितादेख करकनिकाभूलगईथीनकइसअनिमकीकटौतीकेनलयेउसेकहाँ-कहाँअपिीआवश्यकताओंमेंकटौतीकरिी पड़ेगी।एकनिनतिहीतोउसकेजीिेकासहाराथा, उसकीहरइच्छापूरीकरकेमािोवहअपिीइच्छाएंपूरीकरतीथी। निनतिबड़ाहोतागयासाथहीउसकीफरमाइशेंभी।कभीकभीकनिकाउसकीइच्छाएंपूरीकरते-करतेहाँफजातीथी परनिनतिउसकीकमजोरीथाउसकेमुखपरउदासीवहदेखिपाती। परआजजोहुआउसकीतोउसिेकल्पिाभीिहींकीथी।उसकेमिअभीभीिहींमािरहाथानकउसकाबेटा, अपिाखूिऐसाकरसकताहै।क्याउससेकहींसंस्कारदेिेमेंिूकहुईहै ,परवहतोसदाउसेबिपिमेंअच्छीबातेंही बतातीथी।उसकेमििेउसेआश्वासिदेिािाहा , क्यापतानकसीकेदबावमेंयानिनतिसेशत्रुतामेंनकसीऔरका दोर्षनिनतिपरमढ़रहीहो? उसकाबेटाऐसािहींकरसकता।इसतकवमेंउसेएकआसकीनकरणनदखाईदी, वहव्यि होगईनिनतिसेनमलिेको।निनतिकाफोिनमलिहींरहाथाउसकेसभीदोस्तोंकोवहकालकरिुकीथी।उसेसमझ िहींआरहाथानकउसेकैसेढूँढे।वहतोपुनलसकासहाराभीिहीलेसकतीथीपुनलसतोउसेस्वयंहीढूँढरहीहैऔर भगवािकरेवहपुनलसकोिनमले ,िहींतोभलेवहअपराधीहोयािहोपुनलसउसकापतािहींक्याहालकरेगी। उसिेटीवीखोलाउसपरभीयहीसमािारआरहाथा।वहनकससेकहेक्याकहे।उसिेएकदोअपिेपररनितोंको सहायताकेनलयेकॉलनकया, परसबिेउसकीसहायतातोदूरसहािुभूनतनदखािाभीउनितिहींसमझा।अगलेनदि समािारोंमेंभीइसीकालेसमािारसेपन्िेरंगेथे।उसमेंअपिेकालेजजािेकासाहसिथा।उसिेफोिपरअपिी अस्वस्थताकोबहािाकरिेहेतुफोिनकयापरउधरसेसुििेकोनमलाउसिेउसकेपैरोंतलेजमीिनहलादी।उसकी प्रधािािायाविेकहा‘‘ देनखयेनमसेजकनिकागुलाटीआपकेबेटेकीइसहरकतकेबादहमआपकोअपिेगल्सव कालेजमेंरखकरअपिीबदिामीिहींकरवासकते।” 30

  42. ‘‘ ‘‘परइसमेंमेराक्यादोर्ष?’’ कनिकािेकहातोउधरसेआवाजआई‘‘ संतािकोसंस्कारमांबापहीदेते हैं।’’ ’’ मािवीिेबतायाथानककाफीनदिोंसेनिनतिउसकेपीछेपड़ाथापरमािवीटालतीरही।उसनदिवहपीछेपड़गया उसकेसाथकाफीपीिेिलिेकेनलये।निनतिकेअनधकहठकरिेपरमािवीिेउसेनझड़कनदयानिनतिकोयहरासि आया।मािवीप्रायःकक्षाकेबादलायब्रेरीमेंबैठकरपढ़तीथी।दूसरेनदिजबमािवीकीसहेनलयाँिलीगईंऔरवह लायब्रेरीमेंपढ़रहीथी ,तोनिनतििेउसेनकसीसेझूठासंदेशनभजवायानकमािवीकोकेनमस्रीकीरंजिामैडमलैबमें बुलारहीहैं।यद्यनपकालेजसमाप्तहोिुकाथापरमािवीिेसोिा, होगाकोईकामअतःवहिलीगई।लैबमेंजब मािवीपहुँिीतोवहाँकोईिथा ,वहइसेनकसीकामजाकसमझकरलौटिेकोहुईनकवहाँनछपेनिनतििेदरवाजा बन्दकरनलयाऔरउसकेसाथव्यनभिारनकया।लैबथोड़ादूरथाऔरकालेजकासमयसमाप्तहोिुकाथाअतः मािवीकीिीखकोईसुििहींपाया।कनिकामिहीमिनवश्लेर्षणकररहीथीनकऐसाक्योंहुआ।भलेउसिेबेटेको गलतबातेंिहींनसखायींपरशायदउसकीहरइच्छाकोपूरीकरकेउसेनिरंकुशबिानदया।उसिेजोिाहावोपायाइसी नलयेतोवहमािवीकी‘ि’ ’कोसहिहींपाया।मािवीकाअभीतकघरिआिाउसेदोर्षीनसद्धकररहाथा। काश! वहबेटेकेप्यारमेंअंधीिहोती ,उसकेनक्रयाकलापों ,उसकीहठीप्रकृनतकोदेखपाती ,काश! वहथोड़ीसी कठोरबिकरेनिनतिकोसंयमकापाठभीपढ़ापाती।अबबहुतदेरहोिुकीथीकनिकाफफक-फफककररोपड़ी ।उसेमािवीकेबारेमेंसोिकरहीस्वयंसेघृणाहोिेलगी।भलेहीमािवीतथाअन्यलोगउसेिफरतसेदेखरहेथेपर वहभीएकस्त्रीहोिेकेिातेमािवीकीपीड़ाकोअिुभवकरपारहीथीऔरकोईसमयहोतातोवहअबतकिारी वादकाझंडाउठाकरनिकलिुकीहोतीपरयहाँतोदुश्मिउसकाअपिाबेटाथा। तभीबाहरघंटीबजीवहबाहरगईतोपुनलसकेनसपाहीिेबतायानकनिनतिपकड़ागयाऔरउसेथािेबुलायागयाहै कनिकाउसीहालतमेंथािेकीओरिलदी। पुिःभीड़केआक्रोशऔरव्यंग्यकातीरसहतेकोतवालीपहुँिी।निनतििेउसेदेखकरिैिकीसाँसलीबोला‘‘ मम्मामैंआपकाहीइन्तजारकररहाथा।देखोमुझेबिाओकोईबड़ावकीलकरकेमेरीजमाितकराओ”! “बेटाजोआरोपतुझपरलगाहैक्यावहसिहै?’’ कनिकािेपूछा। ‘‘ ‘‘मम्मीअबकमसेकमआपमेरीइन्क्वायरीिकरो, नकसीतरहमुझेबाहरनिकालो।’’ ’’ निनतिकेइसउत्तरिेउसकीरहीसहीआशाभीसमाप्तकरदी।कनिकाकेतिबदिमेंआगलगगईवहभूलगईनक निनतिउसकाबेटाहैउसिेनिनतिकोकईझापड़जड़नदयेऔरकहा‘‘तूिेऐसािीिकामक्योंनकया?’’ निनतििेनिढ़करकहा‘‘ मम्मीआपमेरीमम्मीहैंनकउसलड़कीकी?’’ 31

  43. कनिकािेकहा‘‘यहीतोदुखहैनकमैंतेरीमाँह ँ, तूिेदुष्कमवभलेमािवीकेसाथनकयाहैपरइज्जतमेरीलुटगईहै कोईअन्तरिहींहैमेरीऔरउसकीपीड़ामें।उसकीकमसेकमसुिवाईतोहैपरमेरीतोकोईसुिवाईभीिहींहै”!यह कहकरकनिकावहींधरतीपरनगरकरमुँहढापकरनबलखपड़ी। अलकाप्रमोद 32

  44. सौ बरस ि े मलए ईश्वर डॉ. मशवा िमेिा कितने मंदिर, मस्जिि, गुरूद्वारे, कितनी पूिाएँ, ववधि-वविान, सबिा एि लक्ष्य, ईश्वर ममलिाये तो िीवन िन्य हो ! िीवन तो िन्य ही है, हम ही आँखों पर पट्टी लगाये हुए हैः ! िभी- िभी हम उस चीि िी तलाश िर रहें होते हैः, िो हमारे ही पास होती है ! ईश्वर िी तलाश भी िुछ ऐसी ही है ! वो शक्ल सूरत िारण िरि े हमारे साथ उठते बैठते हैः, बात िरते हैः, यहाँ ति कि हमारे मलए बहुत प्यार से खाना बनाते हैः, किर प्यार से अपने हाथों से हमें खखलाते भी हैः ! 33

  45. ईश्वर सब बच्चों ि े पास होते हैः 100 बरस ि े मलए औऱ उतने ही बरस हम उनसे भागने, उनसे िूर िाने में लगा िेते हैः ! िो ईश्वर 100 बरस साथ रहते हैः! वो घर में अि े ले होते हैः, औऱहम उन्हीं िो ढूंढ़ने मंदिर िी लाइनों में िािर लग िाते हैः ! कितनी ववधचत्र है प्रभु िी माया ! िरअसल िीवन िा सबसे बड़ा सत्य है कि िो वजतु स्ितनी सहि आपिो ममल िाती है, उतनी ही उसिी िीमत धगर िाती है! माता- वपता भी ऐसे ही हैं, उनि े प्रेम पर इतना अटूट भरोसा होता है हमें कि हम सौ प्रततशत िानते हैः कि अपमान िी िोई भी सीमा, उनि े मन से हमारे मलए बुरे भावों िो िन्म ति िेने में सिल नहीं हो पायेगी ! वो किर भी हज़ारों हज़ार आशीवााि ही िेंगे !” मैः बस यूँ ही मन में भावों िो आिार िेती हूँ, हाथों में िभी सिाई ि े मलए झाड़ू, िभी बतानों में गीले हाथ, िलम हाथ में लें सिूँ ऐसा वक़्त ममलता नहीं! इन सब दिनचयाा ि े िामों में लेकिंन मन ि े अंिर जयाही से शब्ि बनते –बबखरते ही रहते हैः ! अभीअभीआँखखुलीऔऱमैःरोज़िीतरहसबसेपहलेकिचनिीतरिगई, िहींमम्मी मुझसेपहलेिगिरिाममेंतोनहींलगगई ! अपनेसपनोंिोिबािर, छुपािरमुजिुरातेहुए,मैःिाममेंलगगईबबल्िुलयँत्रवत ! किचनिीजलैपसाििी, झूठेबतानइिठ्ठाकिये ! िचरेिीथैलीबनाई ! गायि ेखाने िोअलगथैलीमेंडाला, बाहररखनेगईतोरोज़िीतरहइंतज़ारिरतेिरवािेि ेबाहर खड़ेगलीि ेतीनिुत्ते, उनिोतोषडाले, धचड़ड़योंिापानीबिला ! बाहररखीिूििी थेमलयांलेिरमैःअंिरआगई ! मम्मीअभीिगिरकिचनि ेबाहरतिआईथी ! चायबनाईसुबहि े 7 बिेथे ¡ िुछ बबस्जिट्स, नमिीनस्िसि ेबबनाचायपीनेिीआितहीनहींमुझे ! ”दिमाग़मेंिववता, लेखनऔऱचायपीते–पीतेमम्मीहरसुबहिीतरहऐसेबोलतीही चलीिारहींथीमुझसेिैसेिुतनयाभरिीसबबातेंएिसाथहीमुझपरउडेलिें !” धचरागआयाथा, ऐसाहुआ.... वैसाहुआ ! 34

  46. मानमसिरूपसेिुछ ममनटों ि ेबाि, “मैःसुप्तहोंिातीहूँ, उनि ेबोलनेमेंिोईिुल जटॉपनहींहोता ! मैःि े वलहाँयानामेंसरदहलापातीहूँ !” चायिीिो–तीनमसपहीलीथी ! किबेलबिगईिरवािेिी ! धचरागआयाहोगा, अंशीगेटखोलिे ! िीिीचायबनालो, वोअंिरआतेहीबोलाऔऱमैः अपनीबाकिबचीचायिोंमम्मीि ेपाससेकिचनमेंहीलेआई ! धचरागिीचायबनाते-बनातेखडे-खडेहीचायिाआनंिलेमलया ! इसवपंिरेमेंतोतेिीतरहरोज़िीमेरीदिनचयााएििैसीहीहोतीहै ! खैरयेक्याबड़ीबातहै ? सबमदहलायेिरतीहैं, ! सुबहसरमेंइतनाििािीहोरहाथा कििोईआितोमुझेएििपचायहाथमेंिेतबमैःबबजतरसेउठती! मगरऐसाइस िीवनमेंएिदिनभीनहींहुआ ! पतानहींिौनसीकिजमतहै, मुझेिुछभीक्योंनहों, किसीिोंिोईअथानहींयहाँमसवाय मम्मीि े !’ िल्िीसेिामिरि ेइसशोरसेअि े लेिमरेमेंचलीिाऊ ँ , बसएिहीइच्छाहोतीहै औऱमुझेअपनेमलएइनसबसेिुछनहींचादहएहोता, मसवायआज़ािीि े ! िोिुछिेरि े मलएभीइसतरहिीिातीहैिैसेततिोरीमेंसेतनिालिरहज़ारोंअशरकियाँिेिीहों मुझे !” इसिीवनिोंऐसामैःनेहीबनाया, प्यारहोयानिरतसबहिसेज्यािाहोतोिुछनहीं संभलसिताकिर ! थोड़ीतोप्रोि े शनलहोिातीमगरनहींहोपाई ! अबतोसबपीछेछूट गया, सपने, शस्क्त !’ िामिरतेिरतेबसयेहीचलतारहताहैमनमें ! मशीनिीतरहिल्िीिल्िीिाम किये, िैसेतैसेिुछिेरि ेमलएऊपरवालेिमरेतिपहुँचगई ! इतनेशोरसेज़बयहाँ पहुँचिातीहूँतोआसपासकितनाभीसमानि ै लाहोअच्छाहीलगताहै !िैसेिुखते घावपरमरहमहोिोई ! इसिुतनयामेंदिखतेहुएघावोंपरमरहमलगानेि ेमलएिईडॉहैंमगरलहूलुहानमन पर, मरहमईश्वरि ेमसवायिोईनहींलगाता ! मैऔऱमेरेईश्वरकिरइसिमरेमें ! 35

  47. येशांततभीिुछहीममनटोंमेंछीनिातीहै ! घरमेंसंजथाचलतीहै ! पैसािमानेि ेमलए भीशोरहीहोताहै, शांततसेिुछनहींहोसिता ! पूरेघरमेंअबएिभीिोनानहींिहाँिोघड़ीपैरसीिेिरबैठसिूँ , सुबह 6 बिेसे चलताशरीरि े वलएििोनेमेंशांततसेिुछिेरबैठनेिोतरसताहै ! सबअपनीअपनीिगहसहीहैं, मगरिोईिांटेिीचुभनपरतलवारि ेवारलगनेिैसी, धचल्लाधचल्लािरप्रततकियािेताहैऔऱिोईतलवारि ेवारिोभीिांटेि ेचुभनेिी तरह, मानिरचुपरहिाताहै ! ज़बचलतेकिरतेिीवनिोहीनहींपढ़तािोई..........तोइसिहानीिोिौनपढ़ेगाभला ! इतनािालतूसमयिहाँहोताहै ? अपनीस्िंिगीपरकिताबभीमलखिूँतोरद्िीसेज्यािािुछनहींहोगी ! िैसेिीवनभी तोलि ेभाव......वैसेहीवोभीिाएगी ! िईसालोंसेमैःइसखुलेवपंिरेसेउड़िानाचाहतीहूँ, चाहेबाहरमुझेिोई.... इसवपंिरेिीअदृश्यसलाखेंबड़ीववधचत्रहैं, मैःिुछबाहरतिपहुँचभीिातीहूँतो जवयंमेवहीअंिरआिातीहूँ, िैसेइसि ै िि ेमलएहरसांसिीजवीिायाताहोगईहैमेरी ! अभीइतनेपरभीिाफ़ीनहींहैवार–मेरेपँखोंिोिाटनेवालेहीसुबहशामउड़ते पक्षियोंिीउड़ानिाउिाहरणभीिेतेहैः ! िेखउसिीउड़ान............... बहुतसारीपढ़ाईिीमैःने, थोड़ाबहुतक़ानूनभीपढ़ा, असलीवालानहीं, किताबोंवाला ! येसमझनहींआयाकिशारीररिदहंसाि ेमलएिाराएंभीबनीऔऱसिाऐंभी ! लेकिनज़बकिसीिोमानमसिरूपसेमारािाताहै, रोज़मारािाताहैउसिीसिाक्यों नहीं, उसपरिोईभीिारालागूक्योंनहीं...........किरएििमसेआवािआयी! अंशीिहाहो? मैःकिरसेवहीीँपहुँचगई!ओरअपनेआपिोकिरसेव्यजतिरदिया! प्रभु िी वंिना, उनि े सम्मुख हाथ िोड़िर जतब्ि ख़डी हो गई! 36

  48. पहचान आशा शैली न्यायालय क े बाहरी बरामदे में भीड़ थी। सीढ़ियााँ चि कर उर्मिला हााँफने लगी थी, लेककन अभी अन्दर से आवाजें आनी शुरृ भी नहीीं हुई थीीं। इींतज़ार तो करना ही था। उसक े साथ आज और भी बहुत से लोग थे। आज उर्मिला क े पक्ष में कुछ गवाह पेश होने थे। एक बेंच पर थोड़ी सी जगह देखकर कान्ता ने कहा, ‘‘दीदी! तुम यहााँ बैठ जाओ, खड़े-खड़े थक जाओगी।’’ उर्मिला बबना कुछ कहे चुपचाप बैठ गई। तभी सीढ़ियााँ चिते हुए भानु पर उसकी नज़र पड़ी। भानु उसे खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था। कफर वह अपने वकील क े साथ बात करता हुआ एक तरफ खड़ा हो गया। वकील भी एक-दो र्मनट बाद भीतर जजक े कक्ष में चला गया। तभी उर्मिला का वकील आ गया, ‘‘उर्मिला जी, सभी गवाह आ गए हैं?’’ उसने पूछा। ‘‘जी हााँ, ठाकुर साहब, सब आ गए हैं आप चचन्ता न करें।’’ जवाब उर्मिला क े पास खड़ी कान्ता ने ढ़दया। ‘‘सब पक्क े हैं न?’’ ‘‘जी हााँ, हमने ककसी को भी झूठ बोलने क े र्लए नहीीं कहा। जो सच है वही तो बोलना है और गााँव में अभी सच्चे लोगों की कमी नहीीं हुई है।’’ 37

  49. ‘‘ठीक है, आप लोगों का क े स 12 नम्बर पर है लेककन पहले क े सारे क े स शराब आढ़द क े हैं, जल्दी ननपट जायेंगे। आप लोग तैयार रढ़हए।’’ कह कर वकील अन्दर जाने लगा तो भानु उसक े पास आकर बोला, ‘‘ठाकुर साहब, आप जजतनी भी कोर्शश कर लें, हारे हुए तो आप हैं ही। बस अब फ ै सले तक इींतज़ार कर लीजजए।’’ ‘‘हााँ बेटा! मुकद्दमा लड़ना अब मुझे तुम से सीखना पड़ेगा। जाओ अपना काम करो, जा कर।’’ कह कर बूिे वकील ‘ठाकुर’ साहब, जज क े कक्ष में चले गए तो भानु ने बड़े व्यींग्य और उपहास की दृजटट से उर्मिला की ओर देखा। एक अनकही पीड़ा, ववतृटणा और ववरजक्त से मुाँह घुमा कर वह खखड़की से बाहर देखने लगी। ‘‘भानु, दफ़ा हो जा यहााँ से, वरना मैं अभी पुर्लस को बुला लूाँगी। तू ऐसे दीदी को परेशान नहीीं कर सकता।’’ ‘‘मैं तो जा रहा हूाँ, अभी तो तुम हो यहााँ। पर एक बात बताओ मासी! अन्दर कोटि में इन्हें मुझसे कौन बचाएगा?’’ ‘‘ईश्वर है! वह सदा ही सच क े साथ होता है, यह बात तुम भूल रहे हो। जाओ यहााँ से।’’ कान्ता खीज गई थी। भानु बेशमी से हाँसता हुआ वहााँ से एक ओर को हट गया। उर्मिला की आाँखों में आाँसू भर आए पर वह उन्हें पी गई। उसे अपना स्वयीं से ककया वादा याद आ गया कक उसे कमज़ोर नहीीं पड़ना है। कान्ता ने उसक े क ीं धे पर हाथ रखा तो उसने आश्वासन की मुरा ा में र्सर ढ़हला कर उसे देखा और कफर से बाहर देखने लगी। 38

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