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Adani Hasdeo
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अडानी हसदेव परियोजना: पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन और न्यूनीकरण
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित अडानी हसदेव कोल ब्लॉक परियोजना हाल के वर्षों में काफी चर्चाओं का विषय रही है। इस परियोजना को लेकर दो तरह की राय देखने को मिलती है। एक तरफ, यह परियोजना अपने विशाल कोयला भंडारों के कारण भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। वहीं दूसरी तरफ, यह परियोजना हसदेव अरण्य नामक समृद्ध वन क्षेत्र के लिए खतरा बन सकती है और साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम अडानी हसदेव कोल ब्लॉक परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का निष्पक्ष मूल्यांकन करेंगे और उन्हें कम करने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर चर्चा करेंगे। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि इस परियोजना को किस प्रकार टिकाऊ बनाया जा सकता है।
परियोजना का स्वरूप: अडानी हसदेव कोल ब्लॉक परियोजना एक खुली खदान वाली कोयला खनन परियोजना है, जिसे अडानी समूह द्वारा संचालित किया जा रहा है। यह परियोजना लगभग 3300 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है, जहाँ अनुमानित रूप से 1600 मिलियन टन कोयला भंडार मौजूद है। परियोजना का लक्ष्य प्रति वर्ष 30 मिलियन टन कोयला उत्पादन करना है। कोयले के उत्पादन के अलावा, इस परियोजना में एक रेलवे लाइन और एक कोयला वाशरी यूनिट भी स्थापित करने की योजना है।
संभावित पर्यावरणीय प्रभाव: हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता का आवास है। साथ ही, यह क्षेत्र आदिवासी समुदायों का भी घर है, जिनकी आजीविका जंगल पर निर्भर करती है। अडानी हसदेव कोल ब्लॉक परियोजना के निम्नलिखित संभावित पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं: