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हसदेव वन और अडानी ग्रुप कैसे आए न्यायिक जाँच में 01
मगर दस वर्ष पहले सत्ता में आई केंद्र सरकार ने सभी मंत्रालय में नियम परिवर्तन किए जिसके चलते पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हसदेव वन क्षेत्र में कोयला खनन की अनुमति उद्योग समूह को दी गई। अडानी ग्रुप और राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को इस क्षेत्र में कोयला खनन जिम्मेदारी दी गई। परंतु अडानी ग्रुप और केंद्र सरकार के विरोधी दलों ने हसदेव वन क्षेत्र के आदिवासी और ग्रामीण लोगों का सहारा लेकर इसका बेबुनियादी विरोध किया और कोर्ट में लोगों द्वारा केस दर्ज किया गया। हसदेव वन क्षेत्र में क्या है विरोध का कारण?
Contact अडानी ग्रुप ने हमेशा भारत सरकार के साथ तालमेल बनाते हुए और सभी सरकारी नियमों का पालन करते हुए औद्योगिक कार्यों को अंजाम दिया है। अडानी हसदेव मामले में भी सुप्रीम कोर्ट में हुई अब तक की सुनवाई के आधार पर अडानी ग्रुप पर किसी प्रकार का दोष सिद्ध नहीं हुआ है। अनुमति प्रदान करने वाले मंत्रालय और अधिकारियों ने यह स्पष्ट किया है कि अडानी ग्रुप द्वारा किया जा रहा खनन कार्य सरकार के नए नियमों के अंतर्गत है। Present with ease and wow any audience with Canva Presentations.
अडानी हसदेव मामले में स्थानीय लोगों ने अपने पक्ष में कहा कि सरकार द्वारा इस क्षेत्र को नो गो एरिया माना गया है और इस खनन प्रक्रिया से वन क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा को भी हानि होगी। विरोध के लिए उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की बात करते हुए कहा कि खनन कार्य को अनुमति मिलने से वन क्षेत्र की पहचान यहाँ के हाथियों और अन्य प्राणियों के साथ घने पेड़ पौधों पर बड़ा संकट होगा। इसके अलावा वातावरण पर होने वाले दुष्प्रभाव से हम लोगों के लिए भी यह क्षेत्र भविष्य में अनुकूल नहीं बचेगा।
छत्तीसगढ़ राज्य का यह घना जंगल अपनी प्राकृतिक संपदा और दुर्लभ वन्य जीवों के लिए जाना जाता है। हसदेव अरंड वन विभिन्न प्रकार की खदानों के लिए भी लोकप्रिय है। अपनी हरियाली की वजह से यह वन क्षेत्र छत्तीसगढ़ प्रदेश के वातावरण को बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है।