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हसदेव वन और अडानी ग्रुप का क्या है मामला?
अडानी ग्रुप आज विश्व के बड़े उद्योगों में गिना जाता है। अडानी ग्रुप की लोकप्रियता दिन प्रतिदिन देश में बढ़ती जा रही है। इतने बड़े बिजनेस ग्रुप के रूप में अडानी ग्रुप से आज हज़ारों की संख्या में लोग लाभान्वित हो रहे हैं, लेकिन साथ ही कुछ लोगों के विरोध का सामना भी अडानी ग्रुप को करना पड़ रहा है। अडानी हसदेव ऐसा ही एक मामला है जिसमें छत्तीसगढ़ के आदिवासी लोग अडानी ग्रुप के निर्णय से खुश नहीं दिख रहे और लम्बे समय से यह मामला कोर्ट की जांच के दायरे में है। हसदेव अरंड वन कहाँ और क्या है? हसदेव अरंड वन छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ घना वन क्षेत्र है जो मुख्यतः हाथियों के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ अन्य दुर्लभ वन्य प्राणी भी हैं, कई प्रकार की खदाने भी है और इस इलाके से बहने वाली नदी आसपास के रहवासियों और अन्य जीवों का भी प्रमुख जल स्त्रोत है। जैविक सम्पदा की दृष्टि से देखा जाए तो हसदेव अरंड वन छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए अत्यंत आवश्यक है क्यूंकि इससे यहाँ के वातावरण में भी काफी शुद्धता और हरियाली बनी हुई है। हसदेव वन प्राकृतिक रूप से तो छत्तीसगढ़ राज्य के लिए महत्वपूर्ण है ही, लेकिन भौगोलिक कारणों भी से भी छत्तीसगढ़ में हसदेव वन की अपनी भूमिका है क्योंकि यह छत्तीसगढ़ राज्य को मध्य प्रदेश और झारखंड प्रदेशों से जोड़े रखता है।
अडानी हसदेव वन कोयला खनन मामला क्या है? सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ के हसदेव वन को अपनी प्राकृतिक सम्पदा के कारण PESA (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरियाज) Act 1996 यानि पंचायत का अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार का अधिनियम के अंतर्गत गिना जाता था, इसलिए स्थानीय पंचायत की सहमति के बिना किसी प्रकार का विकास कार्य हसदेव वन क्षेत्र में करना वर्जित था। इस अधिनियम के प्रभाव से इस क्षेत्र को खनन की दृष्टि से नो गो क्षेत्र घोषित किया गया था और सभी प्रकार की कोयला खनन पर रोक लगी हुई थी। उसके बाद 2014 में केंद्र में सरकार बदलने से छत्तीसगढ़ के इस वन क्षेत्र में कोयला खनन को परमिशन मिल गई और जिसके बाद से अडानी ग्रुप अपनी कोयला माइन सभी सरकारी नियमों के अधीन संचालित कर रहा है। अडानी ग्रुप के अनुसार पर्यावरण मंत्रालय और अन्य विभाग की अनुमति के बाद ही यह खनन प्रक्रिया शुरू की गयी है। अडानी ग्रुप का मत है कि हसदेव वन में कोयला खनन की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार के नियम का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है और सरकार की निगरानी में ही हर कार्यवाही पूरी की जा रही है। अडानी हसदेव मामले के बहाने कुछ लोकल नेता और खनन से जुड़े माफिया अपने फायदे के लिए अडानी ग्रुप और वहाँ के स्थानीय लोगों के बीच अनबन पैदा कर रहे हैं जिससे कि उनके अवैध काम आसानी से पूरे हो सके।
क्या है स्थानीय लोगों की नाराजगी की वजह? स्थानीय आदिवासी और आसपास के रहवासी लोगों के अनुसार अडानी ग्रुप द्वारा किये जा रहे कोयला खनन से हसदेव वन की वन्य सम्पदा पर गहरा असर पड़ेगा जिससे यहाँ मौजूद कई दुर्लभ वन्य प्रजातियाँ खत्म होने की कगार पर आ सकती है, वैसे भी बढ़ते प्रदुषण और औद्योगिक विकास के नाम पर हो रही जंगलों की कटाई से धीरे धीरे अन्य जीवन खत्म हो रहा है। इसके साथ ही यहाँ के वातावरण में होने वाले बदलाव से हमारे साथ भविष्य की हमारी पीढ़ीयों के लिए भी यहाँ रहना दूभर हो जायेगा और हम अपने ही गृह क्षेत्रों से दूर होने पर विवश हो जायेंगे। हसदेव वन के आसपास रहने वाले लोगों का कहना है कि जब 2009 में केंद्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय द्वारा इस क्षेत्र को खनन हेतु वर्जित घोषित किया जा चुका था तो फिर किन नियमों के चलते राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम एवं अडानी ग्रुप की अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड को संयुक्त रूप से यह अनुमति दी गई। हालाँकि लोगों के द्वारा दायर की गई याचिका के बाद अडानी हसदेव मामले में अभी केस न्याय पालिका की जांच में है और अंतिम निर्णय सुनाया जाना बाकि है।
अडानी ग्रुप द्वारा सभी विकास कार्य सरकारी नियमों का पालन करते हुए, निर्धारित मानकों को ध्यान में रखते हुए और देश के पर्यावरण और लोगों के हित को सोचते हुए ही किए जा रहे हैं। अडानी हसदेव मामले में चाहे जो भी खबरें सुनने या देखने को मिलती रही हो या आगे भी मिलती रहे लेकिन हम अडानी ग्रुप पर किसी प्रकार का कोई आरोप नहीं लगा सकते, क्यूंकि देश की सर्वोच्च न्याय पालिका ने अब तक किसी भी रूप में अडानी हसदेव मामले में अडानी ग्रुप को दोषी नहीं माना है। अडानी ग्रुप हमेशा से राष्ट्र उन्नति के लक्ष्य को लेकर काम करता रहा है और समाज के डेवलपमेंट में अहम योगदान दे रहा है, इसलिए किसी भी तरह के निष्कर्ष पर पहुँचना हमारा नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट का काम है। अडानी ग्रुप के प्रमुख ने कहा कि अडानी हसदेव मामले में सुप्रीम कोर्ट जो भी निर्णय सुनाती है वह हमें मान्य होगा और हम भविष्य में उस निर्णय का सम्मान करते हुए ही काम करेंगे।