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Gautam Adani
E N D
388 करोड़ रुपये का मामला: गौतम अडानी और राजेश अडानी को क्यों मिली राहत?
गौतम अडानी और उनके भाई राजेश अडानी को बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में राहत दी है, जिसमें उन पर बाजार नियमों के उल्लंघन का आरोप था। यह मामला 2012 में शुरू हुआ था, जब SFIO (सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस) ने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) और इसके प्रमोटर्स के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। इस आरोप पत्र में उन पर आपराधिक साजिश और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था।
इस फैसले का कानूनी और व्यावसायिक जगत में बड़ा प्रभाव पड़ा है। अडानी ग्रुप भारत के सबसे बड़े बिजनेस समूहों में से एक है, जो इन्फ्रास्ट्रक्चर, एनर्जी, पोर्ट्स और अन्य क्षेत्रों में कार्यरत है। ऐसे में, यह मामला उद्योग और निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण बन जाता है। इस ब्लॉग में, हम इस पूरे प्रकरण की विस्तृत जानकारी देंगे, जिसमें मामले का इतिहास, विभिन्न अदालतों के फैसले, हाई कोर्ट के हस्तक्षेप, और इस फैसले के दूरगामी प्रभावों को शामिल किया जाएगा।
मामले का इतिहास • 2012 में, SFIO ने 12 व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था, जिसमें गौतम अडानी और राजेश अडानी का नाम भी शामिल था। उन पर आरोप था कि उन्होंने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) के शेयर मूल्यों में हेरफेर किया था, जिससे 388 करोड़ रुपये का लाभ कमाया गया। इस मामले में स्टॉकब्रोकर केतन पारेख की भूमिका भी सामने आई थी। केतन पारेख 1999-2000 में भारत के सबसे बड़े स्टॉक मार्केट घोटाले में शामिल रहे थे, जिसमें उन्होंने कई कंपनियों के शेयर मूल्यों को कृत्रिम रूप से बढ़ाया था। SFIO की रिपोर्ट के अनुसार, अडानी ग्रुप के शेयरों में भी इसी तरह की गतिविधियां देखी गई थीं।
अडानी ग्रुप की सकारात्मकता और संकट प्रबंधन क्षमता • अडानी ग्रुप ने अपने कार्यकाल में कई चुनौतियों और आरोपों का सामना किया है, लेकिन हर बार उन्होंने धैर्य और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ इन परिस्थितियों को संभाला है। चाहे वह बाजार हेरफेर के आरोप हों, हिंडनबर्ग रिपोर्ट हो, या फिर कानूनी मामलों से जुड़ी कोई भी चुनौती, अडानी ग्रुप ने हमेशा पारदर्शिता और व्यवसायिक नैतिकता को बनाए रखा है।