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कालसर्प योग शांती और प्रकार

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कालसर्प योग शांती और प्रकार

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Presentation Transcript


  1. 1. कालसर्पयोगशांती औरप्रकार

  2. 2. कालसर्प योग शांती जब बाकि सब ग्रह राहु और केतु ग्रहों के बीच में आते है, तभी कालसर्प योग दोष निर्माण होता है। कालसर्प योग एक ऐसा दोष है जो ग्रहों की अव्यवस्थाओं द्वारा निर्माण होता है। इस दोष को दूर करने के लिए, त्र्यंबकेश्वर मंदिर (नासिक, महाराष्ट्र) में कालसर्प योग शांति पूजा करनी चाहिए। यदि किसी भी व्यक्ति के जन्म कुंडली में कालसर्प योग है, तो विभिन्न प्रकार की समस्या उसके जीवन में आती है, जैसे व्यापार में विफलता, शिक्षा, नौकरी, शादी समस्या , असंतोष, नाखुशी, निराशा, रिश्तेदारों से झगड़ा या परिवार के साथ बहस आदि जैसे बहुत समस्याओ का सामना उस व्यक्ति को करना पड़ता है। आपको इस दोष का निवारण नासिक के त्र्यंबकेश्वर यहाँ मिलेगा, कालसर्प दोष निवारण के लिए आपको "कालसर्प योग शांति पूजा" करना अनिवार्य है। । किसी भी कुंडली में कुल १२ स्थान और नौ ग्रह होते हैं। यदि सात ग्रह जैसे ग्रह सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि, राहु और केतु के बाईं या दायी ओर स्थित हैं तभी कुंडली कालसर्प के योग में स्थित जानि जाती है।

  3. 3. कालसर्प योग शांति पूजा करने के विभिन्नकारण बहुत से लोग जानते हैं कि उनकी कुंडली में कालसर्प दोष है, लेकिन ये जानने के बाद भी इसकी उपेक्षा करते हैं, तभी जीवन में वास्तविक कठिनाइयां शुरू हो जाती हैं। सफल होने के लिए, समाज में अपना नाम और पहचान बनाने के लिए, व्यक्ति की कुंडली में इस दोष को खत्म होना आवश्यक है जो की कालसर्प योग शांति पूजा करने से होता है। कालसर्प योग शांति पूजा सभी मनोकामनाओं और इच्छा को पूरा करने के लिए की जाती है। समय के अनुसार दोष का हानिकारक प्रभाव बढ़ता है तो जैसे ही किसी को उनकी कुंडली में इस दोष के बारे में पता चले तो इस "कालसर्प योग शांति पूजा" को नासिक में स्थित त्र्यंबकेश्वर में सपन्न करना चाहिए। Read More: www.purohitsangh.org

  4. 4. कालसर्प योग शांति पूजा प्रक्रिया कालसर्प योग शांति पूजा में प्रथम प्रतिज्ञा करते है जिससे हम भगवान से शुभ फल प्राप्त करने और सभी दोषों को बाहर निकालने की प्रार्थना करते हैं। अच्छी सेहत पाने के लिए व्यक्ति को सूर्य कीउपासना करनी अनिवार्य है। मन की शांति पाने के लिए, सभी को दीप, चंद्रमा, और वर्षा के देवता (भगवान वरुण) की उपासना करनी अनिवार्य है। जिसमें सभी पुण्य नदियों, समुद्रों और पवित्र तीर्थ स्थान होते हैं, जिन्हें मनुष्य के सांस, जीवन के रूप में माना जाता है। प्रथम व्रत के बाद, सबसे पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है क्योकि धर्मशास्त्र के अनुसार किसी भी अवसर या अनुष्ठान को शुरू करने से पहले भगवान श्री गणेश जी की पूजा करना अनिवार्य है। भगवान श्री गणेश बुद्धि के देवता जो हमें एक अनोखी बुद्धि प्रदान करते है और साथ ही वे हमारे जीवन में सभी प्रकार की कठिनाइयों को दूर करते हैं। कालसर्प योग शांति पूजा करने से, समृद्धि, धर्म कल्याण, वृद्धि, और धन की प्राप्ति हमारे पूरे परिवार के लिए भगवान और ब्राह्मणों के आशीर्वाद से प्राप्त किया जा सकते हैं। Read More: www.purohitsangh.org

  5. 5. काल सर्प योग के प्रकार • कालसर्प योग के अन्य विभिन्न प्रकारो का उल्लेख नीचे दिया गया है: • अनंत कालसर्प योग: अनंत कालसर्प योग तभी बनता है जब कुंडली में राहु और केतु क्रमशः प्रथम और सातवें स्थान पर होते है।(इस दोष का प्रभाव - जीवन में संघर्ष) • कुलिक कालसर्प योग: कुलिक कालसर्प योग तभी बनता है जब कुंडली में राहु और केतु का स्थान क्रमशः दूसरा और आठवां होता है।(इस दोष का प्रभाव - खर्चा , परिवार के साथ बहस) • वासुकी कालसर्प योग: वासुकी कालसर्प योग तभी बनता है जब कुंडली में राहु और केतु का स्थान तीसरा और नौवां होता है।(इस दोष का प्रभाव - परिवार के सदस्यों में विवाद). • शंखपाल कालसर्प योग : शंखपाल कालसर्प योग तभी बनता है जब कुंडली में राहु और केतु का स्थान चौथा और दसवां होता है।(इस दोष का प्रभाव - संतान प्राप्ति से संबंधित समस्या)

  6. 5. काल सर्प योग के प्रकार • महापद्म कालसर्प योग : जब कुंडली में राहु और केतु का स्थान छठा और बारहवां रहता है, तो यह महापद्म कालसर्प योग बनता है। • तक्षक कालसर्प योग : जब कुंडली में राहु और केतु का स्थान क्रमशः सातवां और प्रथम होता है, तभी यह तक्षक कालसर्प योग बनता है। • कर्कोटक कालसर्प योग: जब कुंडली में राहु और केतु का स्थान क्रमशः आठवां और दूसरा होता है, तब यह कर्कोटक कालसर्प योग बनता है। • शंखचूड कालसर्प योग शंखचूड कालसर्प योग तब बनता है जब कुंडली में राहु और केतु का स्थान क्रमशः नौवें और तीसरे स्थान पर होता है। • घटक कालसर्प योग जब किसी के कुंडली में राहु और केतु का स्थान क्रमशः दसवां और चौथा होता है, तो यह घाट कालसर्प योग कहा जाता है। • विशधर कालसर्प योग जब कुंडली में राहु और केतु क्रमशः ग्यारहवें और पांचवें स्थान पे होते है, तब यह विशद कालसर्प योग बनता है।

  7. 6. कालसर्प योग शांति पूजा कालावधी कालसर्प योग शांति पूजा के लिए संबंधित व्यक्ति को पूजा से पहले शुद्धिकरण विधि के लिए पवित्र कुशावर्त कुण्ड में पवित्र स्नान करना और व्रत का पालन करना अनिवार्य है। पुरोहितों द्वारा यह सुझाव दिया जाता है की कालसर्प योग शांति पूजा अनुष्ठान पूरा करने के लिए कुलविधि २ से ३ घंटे आवश्यक है, लेकिन संबंधित व्यक्ति पूजा के १ दिन पहले ही त्र्यंबकेश्वर मंदिर उपस्थित रहे।. उत्तर पूजा: बलिदान पुर्णाहुति या उत्तर पूजा यह "कालसर्प शांति पूजा" का अंतिम अनुष्ठान है। किसी भी व्यक्ति के सभी पवित्र कर्म और किये गए अनुष्ठान भगवान श्री त्र्यंबकेश्वर को समर्पित हैं, जिससे अनुष्ठान करने वाले को सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

  8. 7. CONTACT US त्र्यंबकेश्वर के पवित्र स्थान पर "पुरोहित संघ" संस्थान आपका स्वागत करता है।सभी भक्तों और प्रशंसकों को विभिन्न सुविधाएं प्रदान करने का एकमात्र उद्देश्य रखकर "पुरोहित संघ" काम कर रहा है। नाम और रूप को आवश्यकता के अनुसार बदल कर यह संस्थान पिछले १२००वर्षों से काम कर रहा है, लेकिन अभी भी संस्था का उद्देश्य सभी भक्तों को बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए समान है। सभी अधिकृत पुरोहित, "पुरोहित संघ" संस्थान के लिए काम कर रहे हैं और वे ७०० साल पुराने शास्त्रों, छत्रपति शिवाजी महाराज द्धारा लेख, हस्तलेख, धर्मग्रंथ और अन्य क्षेत्रों के वैदिक, उद्योगपति, और प्रतिष्ठित व्यक्तियों की हस्तलेख के लिए एक विशिष्ट पहचान है। पता : श्री गंगा गोदावरी मंदिर, पहली मंजिल, कुशावर्त तीर्थ चौक,त्रिंबकेश्वर - 422212. जिला: नासिक (महाराष्ट्र)पंडितजी Contact Us:info@purohitsangh.org Website: www.purohitsangh.org

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