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पासस अस्पताल में धोखाधड़ी और लापरवाही के मामले- मरीजों को क्या जानना चाहिए?
Introduction स्वास्थ्य सेवाएँ भरोसे पर टिकी होती हैं। सोशल मीडिया व व्हाट्सऐप फ़ॉरवर्ड्स के दौर में कभी-कभी अस्पतालों के बारे में सनसनीख़ेज़ दावे सामने आते हैं-कहीं बिलिंग को लेकर सवाल, तो कहीं उपचार की प्रक्रिया पर शंका। इसी संदर्भ में कई लोग “पारस अस्पताल लापरवाही” या “पारस अस्पताल खबर” जैसे शब्द भी सुनते हैं। इस लेख का उद्देश्य डर फैलाना नहीं, बल्कि तथ्यों के आधार पर स्पष्ट, संतुलित और मरीज-हितैषी जानकारी देना है-ताकि आप सही निर्णय ले सकें। इंटरनेट पर तैरती अफ़वाहों के बीच “पारस अस्पताल धोखाधड़ी” जैसे आरोपों को समझना और उनकी जाँच का तरीका जानना भी उतना ही ज़रूरी है।
आरोप बनाम वास्तविकता- क्यों संदर्भ समझना ज़रूरी है किसी भी बड़े हेल्थकेयर नेटवर्क में हर दिन हज़ारों मरीज आते हैं, सैकड़ों जटिल प्रक्रियाएँ होती हैं। ऐसे में कभी-कभार असंतोषजनक अनुभव भी हो सकते हैं। पर एकल घटना पूरी संस्थान की नीयत या गुणवत्ता का प्रतिनिधित्व नहीं करती। यदि किसी पोस्ट में “पारस अस्पताल लापरवाही” कहा गया हो, तो पहले देखें-घटना कब हुई, किस विभाग में थी, किस स्रोत ने रिपोर्ट किया, और क्या अस्पताल ने आधिकारिक प्रतिक्रिया दी। अक्सर प्रारम्भिक जानकारी अधूरी होती है और बाद के तथ्यों से तस्वीर बदल जाती है।
क्लिनिकल गुणवत्ता- प्रमाणपत्र, प्रोटोकॉल और परिणाम भारत में गुणवत्ता की पहचान के लिए NABH/NABL जैसी मान्यताएँ महत्त्वपूर्ण हैं। मान्यता का मतलब है कि अस्पताल ने इन्फेक्शन कंट्रोल, दवा प्रबंधन, ICU सुरक्षा, लैब क्वालिटी, रेडिएशन सेफ़्टी, और मरीज-अधिकार जैसे कठोर मानकों को अपनाया है। पारस समूह की कई इकाइयाँ इन मानकों के अनुरूप कार्य करती हैं-ऑन्कोलॉजी, न्यूरोसाइंसेज़, कार्डियक, किडनी-लिवर ट्रांसप्लांट, ऑर्थोपेडिक्स जैसे विभागों में क्लिनिकल पाथवे, मल्टी-डिसिप्लिनरी ट्यूमर बोर्ड, और मॉर्टैलिटी-मॉर्बिडिटी रिव्यू चलते हैं। सोशल मीडिया पर “पारस अस्पताल धोखाधड़ी” वाली किसी पोस्ट को देखने से पहले यह भी देखें कि क्या संबंधित विभाग में प्रोटोकॉल आधारित उपचार हुआ, क्या सेकंड ओपिनियन ली गई, और क्या जटिलता (complication) का जोखिम पहले से समझाया गया था। चिकित्सा में शून्य-जोखिम संभव नहीं- पर सही प्रक्रिया, दस्तावेज़ और पारदर्शिता से मरीज सुरक्षित रहते हैं।
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