1 / 30

Purushon Ke Gupt Rog : Savaal, Uttar Aur Samaadhaan|पुरुषों के गुप्तरोग: सवाल,

jaanie purushon ke gupt rog ke kaaran, lakshan aur upachaar ke baare mein. samajhen svaasthy kee mahatvapoorn jaanakaaree aur banen svasth jeevan ke praneta.<br>

Hakim7
Download Presentation

Purushon Ke Gupt Rog : Savaal, Uttar Aur Samaadhaan|पुरुषों के गुप्तरोग: सवाल,

An Image/Link below is provided (as is) to download presentation Download Policy: Content on the Website is provided to you AS IS for your information and personal use and may not be sold / licensed / shared on other websites without getting consent from its author. Content is provided to you AS IS for your information and personal use only. Download presentation by click this link. While downloading, if for some reason you are not able to download a presentation, the publisher may have deleted the file from their server. During download, if you can't get a presentation, the file might be deleted by the publisher.

E N D

Presentation Transcript


  1. PurushonKeGupt Rog : Savaal, Uttar AurSamaadhaan|पुरुषों के गुप्तरोग: सवाल, उत्तर और समाधान

  2. Purushonkegupt rog : savaal, uttaraursamaadhaan|पुरुषों के गुप्तरोग: सवाल, उत्तर और समाधान • गुप्तरोगों का एक कारण होता है सेक्स के संबंध में सहज जिज्ञासा होने पर उसकी संतुष्टि न होना। इसी कारण बचपन में बुरी आदतें पड़ जाती हैं, जो गुप्तरोगों का कारण बनती हैं। पुरुषों के प्रमुख रोग नपुंसकता, शीघ्रपतन, स्वप्न दोष और हस्तमैथुन सब इसी के प्रतिफल हैं। • उपरोक्त सभी रोगों का अधिकांशत: प्रारम्भ हस्तमैथुन से ही होता है। कोई भी क्रिया एक सीमा में रहकर की जाए तो ही उचित है, अन्यथा परेशानियां पैदा हो जाती हैं। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के सभी देशों के 98% लड़के विवाह पूर्व हस्तमैथुन करते हैं। शुरू-शुरू में महीने में एक-दो बार व बाद में यह क्रिया बढ़ती जाती है। • अत्यधिक हस्तमैथुन के कारण शिश्न की नसों व रक्तवाहिनियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। स्नायु जाल ढीला पड़ जाता है और धीरे-धीरे शिश्नोत्थान (लिंग में तनाव) कम हो जाता है। यही नपुंसकता (Impotency) है। ऐसा पुरुष विवाहोपरांत स्त्री को संतुष्ट नहीं कर पाता और शर्मिंदा होता रहता है। वैवाहिक जीवन में भी दरार पड़ने लगती है। कुछ दिनों में ही वीर्य

  3. स्खलन शीघ्र होने लगता है-कभी-कभी कामोत्तेजना के साथ ही व्यक्ति शीघ्रपतन का शिकार हो जाता है। ऐसे व्यक्ति का मसाना चौड़ा जाता है। उसे स्वप्न दोष अधिक होने लगता है, जिस कारण शारीरिक कमजोरी बढ़ जाती है। पाखाना करते समय जरा-सा जोर लगाने पर, कांखने से वीर्य निकल जाता है। व्यक्ति शारीरिक रूप से अक्षम व मानसिक रूप से अशांत रहने लगता है। • अधिक दिनों तक हस्तमैथुन से वीर्य में शुक्राणुओं की कमी भी हो सकती है। इस कारण संतानोत्पत्ति की क्षमता का ह्रास होता है। शिश्न में टेढ़ापन (थोड़ा टेढ़ापन सभी के शिश्न में होता है) • नपुंसकता रोग के कुछ कारण भी हो सकते हैं-मीयादी (टायफाइड) बुखार, माता का बिगड़ जाना, खून की कमी, मधुमेह, दिल के रोग, सूजाक या सिफलिस रोग। खट्टे, गरम (उष्ण), रुक्ष, चटपटे पदार्थों के अधिक सेवन से पित्त कुपित होकर वीर्य उत्पन्न करने वाली धातुओं को कमजोर कर देता है, जिस कारण नपुंसकता आ जाती है। यदि जन्मजात वृषण (गोली) है ही नहीं (एक या दोनों) अथवा सेक्स हारमोन (टेस्टोस्टीरोन) के स्राव में कोई गड़बड़ी है तो भी नपुंसकता आ सकती है। • सहवास अधिक करने एवं वीर्य बढ़ाने वाले पदार्थों का सेवन नहीं करने से वीर्य क्षण अधिक होकर उसकी पूर्ति नहीं हो पाती, जिससे शिश्न में शिथिलता और बढ़ जाती है।

  4. मांस-मछली, मदिरा, तम्बाकू, गुटखा, अफीम, भांग, सिगरेट आदि का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए। अंकुरित अनाज, फल, हरी सब्जियों, सलाद आदि का सेवन अधिक करें। गाय का दूध दोनों समय पिएं। भोजन समय पर करें, पानी खूब पिएं (किंतु भोजन के दौरान नहीं), कब्ज से बच्चें और शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखें। शिश्न के आस-पास के बाल सप्ताह में एक बार अवश्य बनाएं। ऐसा करने से शिश्न की रक्तवाहिकाओं में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है और तनाव अच्छा बनता है। • प्रातः-सायं प्रभु भजन, ध्यान, सत्संग व स्वाध्याय आदि का अभ्यास डालें। आयुर्वेद एक खजाना है जिसमें एक से बढ़कर एक नुस्खे रूपी मोती बिखरे पड़े हैं। प्रस्तुत है, उपरोक्त बीमारियों को समाप्त करने वाले कुछ अनमोल योग (नुस्खे)। स्वप्न दोष में हितकर आयुर्वेदीय योग • कबाबचीनी, छोटी इलायची के दाने, वंशलोचन, प्रत्येक 5-5 ग्राम कूट-पीसकर कपड़छानकर चूर्ण बना लें। इसमें 2 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिलाकर प्रात:- सायं 5 से 7 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करना लाभप्रद है। • शुद्ध शिलाजीत 10 रत्ती में मिश्री 20 रत्ती मिलाकर कूट-पीसकर कपड़छन कर इसमें से 6 रत्ती प्रात:-सायं शहद या गाय के दूध के साथ लेने से लाभ होता है।

  5. अश्वगन्ध, आंवला चूर्ण 5-5 ग्राम एवं मिश्री 10 ग्राम लेकर सबको मिलाकर कूट-पीसकर कपड़छन चूर्ण बनाकर 7 ग्राम की मात्रा में प्रात:-सायं गाय के दूध के साथ सेवन करना लाभदायक है। • कच्ची हल्दी का चूर्ण 2 ग्राम एवं त्रिफला 5 ग्राम लेकर कूट-पीसकर कपड़छन कर 3 से 5 ग्राम की मात्रा में प्रात:- सायं जल के साथ सेवन करना लाभप्रद है। इलायची चूर्ण एवं ईसबगोल की भूसी प्रत्येक 10-10 ग्राम लेकर आंवले के रस में खरलकर 2-2 ग्राम की गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर एक से दो गोली प्रात:-सायं गाय के दूध के साथ सेवन करना हितकारी है। • औषधि सेवनकाल में भोजन सात्विक एवं सुपाच्य लें। भूख से अधिक भोजन न करें। रात्रिकालीन भोजन सोने से चार घंटे पूर्व ही कर लें। सोते समय हाथ-पैर ठंडे पानी से धोकर सोएं। रात को सोते समय दूध पीकर न सोएं। रात को खाना खाने के बाद सोते समय तक कुछ नहीं खाएं। कब्ज न होने दें। बहुत ज्यादा मिर्च, मसाले, अचार, चटनी, खटाई, गुड़ का परहेज करें। • बबूल का गोंद 10 ग्राम, एक कप पानी में रात को डालकर रख दें। सुबह इसे मसल- • छानकर एक चम्मच पिसी मिश्री घोल लें और पी जाएं। तीन सप्ताह में लाभ हो जाता है।

  6. रात को सोने से घंटे भर पहले ईसबगोल की भूसी 2 चम्मच ठण्डे पानी के साथ फांक लेने से इस रोग को दूर करने में बहुत मदद मिलती है। यह प्रयोग 4-5 माह तक करना चाहिए। • शीतल चीनी का चूर्ण आधा चम्मच (3 ग्राम) सुबह-शाम ठंडे पानी से तीन सप्ताह तक सेवन करने से स्वप्न दोष होना बन्द होता है। • गोखरू, तालमखाने, शतावर, काँच के शुद्ध बीज और खिरैटी के बीज- सबको अलग-अलग कूट-पीसकर महीन चूर्ण करके 50-50 ग्राम वजन में लेकर मिला लें फिर 125 ग्राम पिसी मिश्री मिला लें। इसे 1-1 चम्मच सुबह-शाम सेवन करें। इस नुस्खे से सिर्फ स्वप्न दोष ही नहीं, अन्य धातुविकार भी दूर हो जाते हैं। • गुलाब के 3-4 ताजे फूलों पर पिसी हुई मिश्री बुरक लें और खूब चबा-चबाकर खा लें, ऊपर से दूध पी लें। यह प्रयोग किसी भी ऋतु में किया जा सकता है। तीन-चार सप्ताह सुबह-शाम इस उपाय को करने से स्वप्न दोष होना बन्द हो जाता है। नपुंसकतानाशक योग • कोच के बीज 10 ग्राम, सफेद मूसली 20 ग्राम, फूल मखाना 30 ग्राम, तालमखाना 40 ग्राम, मिश्री 50 ग्राम। सभी को कूट-पीसकर कपड़छन चूर्ण बना लें। सेवनीय मात्रा 5 ग्राम

  7. दूध के साथ है। • छोटा गोखरू 15 ग्राम लेकर कूट-पीसकर कपड़छन चूर्ण बनाकर उसे थोड़े जो भूनकर 250 ग्राम शहद मिलाकर रख लें। प्रात: 10-12 ग्राम सेवन कर ऊपर से दूध पीने से नपुंसकता में लाभ होता है। • असगन्ध, नागौरी, कौंच के बीज की गिरी, सालम मिश्री समभाग लेकर कट-पीसकर कपड़छन चूर्ण बना लें। इसमें से तीन ग्राम चूर्ण 10 ग्राम शहद के साथ जातः दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है। शीघ्रपतन में लाभप्रद योग • 10 ग्राम तुलसी के बीज, 20 ग्राम अकरकरा एवं 30 ग्राम शक्कर पीसकर चूर्ण बना लें। रात को एक माशा चूर्ण दूध के साथ लेने से स्तम्भन शक्ति बढ़ती है। • दालचीनी और काले तिल बराबर मात्रा में लेकर पीस लें फिर शहद मिलाकर 1-7 माशे की गोलियां बना लें। सोते समय । गोली पानी के साथ खाने से शीघ्रपतन नहीं होता • कोच के बीज और सफेद मूसली को समभाग लेकर चूर्ण बना लें। सोते समय 4 माशा चूर्ण दूध में उबालकर पीने से शीघ्रपतन में लाभ होता है।

  8. कसौंदी की जड़ की सूखी छाल सात माशा पीसकर शहद के साथ गोली बना ल। एक गोली दूध के साथ सोते समय खाने से वीर्य स्तम्भन होता है। शुक्राणु वृद्धि • काबुली हर्र, हरा कसीस 5-5 ग्राम लेकर पीसकर बासी पानी से लें। • खुंजान, तालमखाना, किवांच के बीज, काकोली एवं सफेद मूसली, गुरुच का सत्व, गगौरी अश्वगन्धा, गोला ढाक, बहमन सफेद सकाकुल मिश्री, सालिब मिश्री, छोटी इलायची के दाने समान मात्रा में लेकर पीसकर सबके बराबर शक्कर मिलाकर माजूम बना लें। 8 ग्राम दूध के साथ सायं एवं 4 ग्राम प्रात: लें। • अनार के फूल, गुलाब के फूल, धाय के फूल, नीलोफर के फूल को समान मात्रा में लेकर छाया में सुखाएं। इसे पीसकर समभाग शक्कर मिलाकर 3-3 ग्राम प्रतिदिन सायं एवं प्रातः लें। • सफेद कत्था, सुमठल्लकार, सूखा सिंघाड़ा, 15-15 ग्राम लेकर नीबू के रस में बाल करके 5 ग्राम कस्तूरी डाल दें। 15 ग्राम प्रतिदिन नित्य प्रातः पानी के साथ लें। बल-वीर्यवर्धक योग • शहद एवं दूध मिलाकर पीने से धातु क्षय में लाभ होता है। शरीर में बल-वीर्यकी वृद्धि

  9. होती है। • गरम दूध में पांच बादाम पीसकर मिलाएं। एक चम्मच देशी घी डालें। बल-वीर्यवर्धक है। शीत ऋतु में दो रत्ती केशर भी डालकर पिएं। • सफेद प्याज का रस, शहद, अदरक का रस, देशी घी प्रत्येक 6-6 ग्राम से पत्र थारों को मिलाकर चाटें। महीने भर के सेवन से ही आशातीत लाभ मिलता है, नपुंसकता नाशक है। • शीतऋतु में प्रातः 5 कली लहसुन को चबाकर दूध पीना उत्तम है। • दूध में भिगोकर छुहारा खाने से वीर्य गाढ़ा होता है एवं शीघ्रपतन में लाभ होता है। • मुलहठी का चूर्ण एक चम्मच (6 ग्राम) और एक छोटा चम्मच देसी घी व 2 चम्मच शहद मिलाकर चाट लें। इसके बाद आधा चम्मच सोंठ चूर्ण डालकर खूब औटाया हुआ मिश्री मिलाकर दूध ठंडा करके घंट-घूंट करके पिएं। यह शरीर की सभी धातुओं को बेइन्तहा पुष्ट करने वाला योग है। इस नुस्खे को हमेशा रात को सोने से पहले या सहवास के बाद अवश्य प्रयोग करना चाहिए। इसका सेवन करने वाले पुरुष की धातुएं कभी क्षीण नहीं होतीं। • विवाहित पुरुष यदि ऊपर अंकित मुलहठी वाला योग नियमित रूप से सेवन करते हुए

  10. निम्नलिखित नुस्खा भी प्रयोग करें तो स्तम्भनशक्ति बढ़ती है और शीघ्रपतन की स्थिति नष्ट हो जाती है। नुस्खा इस प्रकार है-इमली के बीज चार दिन तक पानी में गलाकर छिलका हटाकर इसकी गिरी से दुगुने वजन के बराबर दो वर्ष पुराना गुड़ लेकर मिला लें और पीसकर एकसार कर लें। इसकी बेर के बराबर गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। सहवास करने से दो घंटे पहले दो गोली थोड़े से पानी के साथ निगल लें। यह नुस्खा धातु पौष्टिक है। • असगन्ध और बिधारा-दोनों को अलग-अलग कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर बराबर मात्रा में मिला लें। प्रतिदिन प्रातःकाल एक चम्मच चूर्ण थोड़े से घी में मिलाकर चाट लें और ऊपर से मिश्री मिला दूध पिएं। पूरे शीतकाल में प्रतिवर्ष 3-4 माह इस योग का प्रयोग करें और ठंड भर नारायण तेल की मालिश कर स्नान करें, फिर इस नुस्खे का चमत्कार देखें। किसी भी प्रकार का यौन दौर्बल्य पास नहीं फटक सकेगा। • उड़द की छिलका रहित दाल रात को पानी में गला दें। मात्रा शुरू में 25 ग्राम रखें। सुबह इसे पीस कर घी में भून लें। जब लाल हो जाए तब उतारकर औटते हुए दूध में डालकर खीर बना लें। इसे मीठी करना चाहें तो पिसी मिश्री डाल लें। इस खीर को अपनी पाचन शक्ति के अनुकूल मात्रा में प्रात:काल नाश्ते के रूप में खूब चबा-चबाकर खाएं। ज्यों-ज्यों पचती जाए, इसकी खुराक बढ़ाते जाएं। इसे पूरे शीतकाल भर सेवन करें। यह अद्भुत

  11. धातु-पौष्टिक खीर है। मधुमेह के रोगी इस खीर का सेवन मिश्री मिलाए बिना करें। यहनुस्खा बलपुष्टि और यौनशक्ति बढ़ाने में अनुपम है। विवाहितों के लिए पौष्टिक नुस्खे • सूखे सिंघाड़े पिसवा लें। इसके आटे का हलवा बनाकर प्रातः नाश्ते में अपनी पाचन शक्ति के अनुकूल मात्रा में, खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए। यह शरीर को पुष्ट और शक्तिशाली बनाता है। शकरकन्द का हलवा भी इसी विधि से बनाया जाता है और बहुत लाभ करता है। • सिर्फ सफेद मूसली का चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह-शाम फांक कर ऊपर से एक विलास भोजा दूध पिएं। यह प्रयोग कभी बन्द न करें यानी बारहों महीने सेवन करते रहें। इससे शरीर कभी कमजोर नहीं होगा। • आधा सेर दूध में छुहारे डालकर उबालें। जब खूब अच्छा उबलने लगे तब उसमें केशर को 5-6 पंखुड़ी और चार चम्मच पिसी मिश्री डाल दें और उबलने दें। जब दूध आधा रह जाए तब उतारकर ठंडा करके सोने से आधा घंटे पहले घंट-घूंट करके पी है। यह बहुत ही पौष्टिक योग है। यह प्रयोग शीतकाल में करने योग्य हैं।

  12. दो आंवले पानी में उबाल लें या दाल-शाक बनाते समय डाल दें ताकि आंवले भदेश जाएं। अच्छे नर्म हो जाएं तब गुठली अलग कर कलियों को मसल लें। बीजरहित 5-6 मुनक्काऔर आधाचम्मच सोंठ चूर्ण मिलाकर मसल लें। इस मिश्रण को दिन में एक बार, भोजन के घंटे भर बाद, एक चम्मच शहद के साथ चाट लें। यह प्रयोग किसी भो ऋतु में प्रयोग कियाजा सकता है। यह प्रयोग हृदय, फेफड़े और पाचन संस्थान को बाल प्रदान कर पूरे शरीर को बल-पुष्टि देता है और श्वास कष्ट, दमा, खांसी, सिर चकराना, हायरपर-एसिडिटी आदि व्याधियां दूर करता है। यह योग स्वस्थ अवस्था में भी, सभी आयु वाले, किसी भी ऋतु में सेवन कर सकते हैं इसलिए इस योग को श्रेष्ठ बलपुष्टिदायक टॉनिक कह सकते हैं। • अश्वगन्ध, बिधारा, आंवला, गोखरू, गिलोय पांचों समान मात्रा में लेकर चूर्ण करके मिला लें। इस चूर्ण में शतावरी के रस की तीन बार भावना देकर सुखा लें। इसमें बराबर वजन की पिसी मिश्री मिला लें। सुबह-शाम ।। चम्मच चूर्ण आधा चम्मच शुद्ध घी और घी से तीन गुनी मात्रा में शहद मिलाकर चाट लें। यह प्रयोग कम से कम 60 दिन तक अवश्य करें। अविवाहित युवक-युवतियों और किसी भी आयु के स्त्री-पुरुषों के लिए यह योग एक श्रेष्ठ पौष्टिक टॉनिक है।

  13. अंजीर, बादाम, पिस्ता, चिरौंजी, किशमिश 50-50 ग्राम और छोटी इलायची के दाने 20 ग्राम। सबको कूट-पीसकर बारीक करके मिला लें। इसमें 100 ग्राम शक्कर और 2 ग्राम असली केशर घोंटकर मिला लें। आवश्यकता के अनुसार इतनी मात्रा में गाय का घी लें कि उसमें यह सब मिश्रण डूब सके। इस घी में यह मिश्रण डालकर 8 दिन तक रखा रहने दें। इसके बाद ।। चम्मच सुबह-शाम खाकर ऊपर से मोठा गरम दूध पिएं। • उड़द की दाल पिसवा लें। इसे शुद्ध घी में सेंककर शीशी में रख लें। 1-1 चम्मच चूर्ण जरासे शुद्ध घी में मिलाकर सुबह व रात को सोते समय चाटकर एक गिलास मोठा दूध पिएं। • विदारीकन्द 500 ग्राम लाकर आधा कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें और आधा मोटा-मोटा जौकुट-कूटकर अलग-अलग रखें। मोटे जौकुट चूर्ण को एक लीटर पानी में उबालें। जब चौथाई भाग यानी 250 मिली. पानी बचे तब इसमें 250 ग्राम महीन चूर्ण डालकर खरल में दो दिन तक घुटाई करके सुखा लें। अब इसमें पिसी हुई मिश्री 250 ग्राम मिला लें। सुबह व रात को सोते समय ।-। चम्मच चूर्ण जरा से शुद्ध घी में मिला कर चाट लें और एक गिलास मीठा गरम दूध पी लें। • असगन्ध, बिधारा, नागरमोथा काँच के शुद्ध बीज, गोखरू, शतावरी, त्रिफला चूर्ण, लाजवन्ती और खसखस सब 100-100 ग्राम वंशलोचन, जायफल और छोटी इलायची के

  14. दाने 50-50 ग्राम सबको कूट-पीसकर मिला लें और आधा किग्रा. मिश्री पीसकर मिला लें। इसे प्रतिदिन 1-1 चम्मच सुबह-शाम गरम दूध के साथ सेवन करें। • भीमसेनी कपूर 5 ग्राम, बंग भस्म 20 ग्राम, शुद्ध शिलाजीत 30 ग्राम, सफेद मूसली 100 ग्राम सबको अच्छी तरह मिलाकर एक जान कर लें। एक गिलास पानी में 50 ग्राम बबूल का गोंद गला लें और इसमें सब चूर्ण डालकर खरल में खूब अच्छी घुटाई करें। जब खूब घुटाई हो जाए तो आधा-आधा ग्राम वजन की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। सुबह-शाम। या 2 गोली दूध के साथ सेवन करें। • आंवला का चूर्ण 100 ग्राम, गिलोय सत्व, गोखरू, वंशलोचन और छोटी इलायची के दाने 10-10 ग्राम। सबको कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर मिला लें। एक बड़ा चम्मच चूर्ण आधा चम्मच शुद्ध घी या मक्खन में मिला लें और घी या मक्खन से तीन गुनी मात्रा में शहद मिला लें। इसे सुबह शाम चाटकर खाएं। • शंखपुष्पी चूर्ण, आमलकी रसायन 250-250 ग्राम और गिलोय सत्व 50 ग्राम। तीनों को मिलाकर शीशी में भर लें। इस चूर्ण को 1-1 चम्मच मात्रा में सुबह-शाम ताने जल के साथ फांक कर सेवन करें। • कोच के शुद्ध बीज 250 ग्राम, तालमखाना 100 ग्राम, मिश्री 350 ग्राम। सबको

  15. अलग-अलग कूट-पीसकर चूर्ण कर लें और मिलाकर शीशी में भर लें। सुबह शाम 1-1 चम्मच चूर्ण एक गिलास मीठे गरम दूध के साथ सेवन करें। • कोच के शुद्ध बोज, गोखरू और उटंगन के बीज 250-250 ग्राम तथा मिश्री 400 ग्राम। सबको चूर्ण कर मिला लें। इस चूर्ण को ।। चम्मच सुबह-शाम एक गिलास मीठे गरम दूध के साथ सेवन करें। • उड़द की छिलका रहित दाल, विदारीकन्द और उटंगन के बीज 250-250 ग्राम तथा मिश्री 400 ग्राम। यह चूर्ण 2-3 चम्मच आधा लीटर दूध में डालकर खूब उबालें। जब दूध गाढ़ा हो जाए तब उतार कर थोड़ा ठंडा हो जाए तब कुनकुना गरम रात को सोते समय पिएं। चाहें तो सुबह-शाम पिएं।कोच के शुद्ध बीज और उड़द की छिलका रहित दाल 250-250 ग्राम दोनों को कूट-पीसकर चूर्ण कर मिला लें। इस चूर्ण को 2-3 चम्मच आधा लिटर दूध में डालकर खूब उबालें। जब अच्छी गाढ़ी हो जाए तब उतारकर ठण्डा करें और कुनकुना गरम सुबह और रात को सोते समय पिएं। दोनों वक्त ताजा बनाकर पिएं। • विदारीकन्द 50 ग्राम लेकर कूट-पीसकर 200 मिली. पानी में डालकर उबालें। जब पानी 50 मिली, रह जाए तब उत्तार कर छान लें। इसमें एक बड़ा चम्मच शुद्ध घी घोलकर पी लें और ऊपर से एक गिलास मीठा गरम दूध पी लें। यह प्रयोग भी सुबह-शान या सिर्फ रात को सोते समय करें।

  16. विशेष सावधानी- किसी भी आयु में पौष्टिक एवं शक्तिवर्द्धक नुस्खे का सेवन करने वालों को 2-3 बातों का पूरा ख्याल रखना होगा। एक तो यह कि नुस्खे की मात्रा अपनी पाचन शक्ति के अनुकूल ही ली जाए, ताकि पौष्टिक द्रव्य पूरी तरह पच सकें और अंग लग सके। दूसरी बात यह कि पेट हमेशा साफ रहे, कब्ज न रहे और भूख वक्त घर और खुलकर लगती रहे। यदि कब्ज रहता हो तो पहले कब्जनाशक उपाय करना चाहिए और पेट साफ होने के बाद ही पौष्टिक नुस्खे का सेवन शुरू करना चाहिए। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पथ्य आहार-विहार का पालन और अपथ्य आहार-विहार का त्याग करतेहुए ही पौष्टिक योग का सेवन करना चाहिए, तभी योग के प्रयोग से पूरा लाभ होगा अन्यथा नहीं। सूजाक • विचारपूर्वक देखा जाए तो रोग मात्र मनुष्य के आहार व आचार दो दोषों से उत्पन्न होते हैं, परन्तु सूजाक और आतशक रोग तो मनुष्य खुद खरीदता है। यदि मनुष्य अपने मन को वश में रख सके तो इन रोगों से होने वाले कष्टों से बच सकता है, सूजाक वाली स्त्री के साथ सम्भोग करने से पुरुष को तथा सूजाक वाले पुरुष के साथ सम्भोग करने से स्त्री को यह रोग हो जाता है। कड़ी धूप में घूमने, तेल अचार आदि पदार्थ के अधिक खाने से पेशाब में जलन पैदा हो जाती है और सूजाक के लक्षण देखे जाते हैं,

  17. परन्तु यह जलन आप ही आप शान्त हो जाती है। बहुत से रोगी इसी तरह के कारण बतलाकर चिकित्सकों को भ्रम में डालने की चेष्टा करते हैं। परन्तु उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि मामूली कारणों से उत्पन्न हुए सूजाक और आतशक बिना दवा के अच्छे हो जाते हैं। किंतु सूजाक का जहर शरीर में घुसने के दो-तीन दिन बाद ही रोग के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। शुरू-शुरू में मूत्र नली का मुंह सुरसुराता और खुजलाता है, पेशाब लाल और गरम होता है। पेशाब में थोड़ी जलन और कुछ मवाद भी आने लगती है, इससे सूजाक की असली अवस्था उत्पन्न होती है। जिसके कारण रोगी को अत्यन्त कष्ट होता है। जननेन्द्रिय के मुंह में सूजन, अण्डकोषों और वस्तिग्रन्थि में प्रदाह आरम्भ हो जाता है,7 से 15 दिन के भीतर रोग के सब लक्षण घटकर सूजाक पुराना आकार धारण कर लेता है। • पुराने सूजाक में पेशाब की जलन बहुत कम हो जाती है या बिलकुल नहीं होती, सिर्फ पीला या सफेद पीब कम तादाद में निकलता रहता है, कभी मूत्र नली के संकुचन के कारण पतली धार से रुक-रुककर होता है, मवाद के कारण मार्ग एक जाने से कभी-कभी पेशाब एकदम बन्द हो जाता है। • मूत्रमार्ग की पतली झिल्ली में प्रदाह होकर घाव हो जाता है, जिसमें मवाद आता रहता है। सूजाक के प्रदाह से वागी (बन्ध) भी हो जाती है। प्राय: देखा जाता है कि सूजाक या आतशक भयानक न होकर मामूली रूप से प्रकट हो जाता है, सूजाक या आतशक होने

  18. के बाद गठिया-वात का होना बहुत सम्भव होता है। लोगों का विचार है सूजाक या आतशक में ठंडी चीजों के व्यवहार से गठिया वात हो जाती है परन्तु असल में ऐसी बात नहीं है। गठिया-वात सूजाक और आतशक के जहर से उत्पन्न होती है, सूजाक और आतशक की भयानक बीमारी एक-दो माह के भीतर इलाज करने से ठीक हो जाती है, किन्तु ज्यादा पुराना हो जाने से इसके कीड़े बहुत भीतर चले जाते हैं, तब किसी भी उपचार से लाभ नहीं मिलता, फलस्वरूप रोगी का जीवन नष्ट हो जाता है। उपचार • सूजाक के रोगी को मामूली जुलाब देकर पेट साफ कर देना चाहिए। सूजाक की पहली या दूसरी अवस्था में सूजाक का जुलाब देना चाहिए। दही की लस्सी में जवाखार मिलाकर पीने से बहुत पेशाब उतरता है। ककड़ी के बीज 3 ग्राम, कलमी शोरा डेढ ग्राम फांककर ऊपर से लस्सी पीना मूत्र रेचक है, कबाबचीनी का चूर्ण डेढ़ ग्राम 3-4 बार जल या लस्सी के साथ पीने से खूब पेशाब उतरता है, मूत्राघात व मूत्रस्तम्भ के नुस्खे भी लाभदायक हैं। • ताजा गुरुच (गिलोय) 12 ग्राम 240 ग्राम पानी में रात को भिगो दें, सुबह मल-छालकर 60 ग्राम शहद मिलाकर पिएं, उससे पेशाब की जलन और मवाद निश्चय बन्द हो जाएगा, एक गोली चन्द्रप्रभा वटी खाकर ऊपर से पानी पीया जाए तो शर्तिया आराम हो जाता है।

  19. गंध विरोजा का तेल, कबाब तेल चीनी, असली चन्दन का तेल तीनों तेल समभाग मिलाकर 10-20 बूंद तक चीनी या मिश्री के साथ सेवन करें, इससे सूजाक में शर्तिया लाभ होता है। खाली चन्दन का तेल भी पुराना सूजाक में अच्छा फायदा करता है। • राल (धूना) का चूर्ण डेढ़ ग्राम मट्ठा या जल के साथ सेवन करने से सूजाक में फायदा होता है। • सत्यानाशी (चौक) की जड़ की छाल 6 ग्राम से 20 ग्राम तक पीसकर जल के साथ लेने से सूजाक में लाभ होता है तथा दस्त भी साफ होता है। • वंशलोचन, माजूफल, गन्ध विरोजी का सत और सफेद कत्था को समभाग लेकर चन्दन के • तेल के साथ ।1ग्राम की गोलियां बना लें। इसको मिश्री के शर्बत या जल के साथ सेवन करने से सूजाक में फायदा हो सकता है। • शिलाजीत, कबाबचीनी, रेबन्ध चौनी, जवाखार, पकाया हुआ सोरा, कतीरे का गोंद, गेरू, फूली हुई फिटकिरी, वंशलोचन, राल, चन्दन का बुरादा, गिलोय का सत और विरोजे का सत ये 14 दवाएं समभाग लेकर चूर्ण बना लें और 6 ग्राम की मात्रा में दूध या जल के साथ लें, ये सूजाक में रामबाण की तरह लाभ पहुंचाता है, यह रोग धातु पुष्टि के लिए भी लाभदायक है।

  20. सेमल की जड़ (मूसली) का स्वरस या केलों के साम्भे का स्वरस 12 से 24 ग्राम तक पीने से सूजाक में अच्छा फायदा होता है। • सूजाक में सोते समय जननेन्द्रियां उत्तेजित होकर बहुत कष्ट देती हैं, इसके लिए जननेन्द्रिय के मार्ग में जरा-सा कपूर या अफीम रख लेने से उत्तेजना नहीं होती। • सूजाक में मूत्रनली एवं वस्ति के भीतर घाव हो जाता है, इसलिए पिचकारी द्वारा मूत्र मार्ग से उस घाव को प्रतिदिन दोनों समय या कम-से-कम एक बार जरूर धोना चाहिए। गुनगुने जल में जरा-सा पोटाश-परमैग्नेट मिलाकर या त्रिफला के काढ़े से धोना उत्तम है। • चन्दनासव सफेद चन्दन सुगन्ध वाला, नागरमोथा, गम्बारी छाल, नीलोफर, विंडे, प‌द्दाख, लोध्रछाल,मजीठ, लाल चंदन, पाठा, चिरायता, वट की छाल, पीपल हाल, कमचूर, पित्तपापड़ा, मुलहठी, रास्ना, परवल का पत्ता, कचनार की छाल, आप की छाल, मोचरस प्रत्येक दवा 58.32 ग्राम धाय के फूल 9.33 ग्राम 1.16 किग्रा. इन सबको लेकर 30 किग्रा. जल में 5.83 किग्रा. चीनी, गुड़ 3 किग्रा. मिलाकर कास्ट अनादि दवाएं डालकर मृतिका पात्र में एक मात्र पर्याप्त बन्द कर दें।

  21. बाद में छानकर इसे प्रयोग में लाएं इसकी 14 ग्राम से 21 ग्राम की मात्रा बराबर जल मिलाकर भोजन के बाद आवश्यकतानुसार सेवन करें। यह 20 प्रकार के प्रमेह मूत्रकृच्छ सूजाक (गनौरिया) आदि को नष्ट कर कान्ति को बढ़ाता है तथा अग्नि को प्रतिपथ करता है, यह पुराने सूजाक और प्रमेह की उत्तम दवा है। पथ-अपथ्य • गुड़, तेल, लाल मिर्च, अचार, मसाला आदि नहीं खाना चाहिए, इसमें नर्म बिस्तरे पर सोना चाहिए, स्त्री सम्भोग, घूमना, कसरत करना या साइकिल या घोड़े की सवारी करना एकदम मना है। यदि साथ में ज्वर हो तो दूध और साबूदाना लेना चाहिए। हल्का व पुष्टिकारक भोजन करना चाहिए, रोटी, दाल, भात, शाक, फल, दूध आदि पथ्य है, शराब या ब्रांडी 56 मिली. पीने पर भी सूजाक न उभरे तो समझना चाहिए कि रोग जड़ से आराम हो गया। सूजाक से बचने के उपाय • सूजाक रोगी के साथ विषय-भोग नहीं करना ही इससे बचना है, लेकिन पुराना सूजाकऐसी हालत में आ जाता है, इसकी पहचान मुश्किल से होती है। इसलिए विषय-भोग के

  22. बाद तत्काल पेशाब से मूत्रनली को धो डालना चाहिए, जननेन्द्रिय के चमड़े को खींचकरकरके पेशाब करें, ताकि थैली की तरह पेशाब जमा हो जाए फिर एक मिनट बाद छोड़ दें। इस तरह तीन-चार बार करें, पेशाब में तेजाब होता है। इससे सूजाक के कोमल कीटाणु तत्काल मर जाते हैं। विषय-भोग के कुछ समय बाद वे सूजाक के कीड़े भीतर जाकर अपना स्थान बना लेते हैं, फिर तो वे बिना तेज दवा के मरते ही नहीं इसलिए विषय-भोग के बाद तत्काल यह क्रिया कर लेनी चाहिए। ताकि सूजाक होने का भय न रहे। सिफलिस (उपदंश/आतशक) • सूजाक की तरह आतशक भी मनुष्य के पापों का फल है। आतशक या सूजाक होने वाले मनुष्य का जीवन आनन्द ही चला जाता है। यह रोग जहां एक बार लगा कि इसका जन्म भर जहर बना रहता है। आतशक या सूजाक का फल बेटे-पोते तक को भोगना पड़ता है। किसी कुष्ठ आश्रम के रोगियों की जांच कीजिए तो मालूम होगा कि कोढ़ अधिकतर आतशक के कारण ही पैदा होता है। यदि मनुष्य क्षणिक सुख के लोभ को रोक सके तो इस महाव्याधि से सुरक्षित रह सकता है।

  23. आतशक बाली स्त्री के साथ सम्भोग करने से पुरुष को आतशक या पु साथ सम्भोग करने से स्वी को यह रोग लग जाता है। कई ऐसे मूर्ख पुरुष दे आतशक या सूजाक होने परबिना रोग वाली स्त्री के साथ इस ख्याल से सम्भोग क है कि रोग में आराम हो जाए‌गा। परन्तु फल- विफल बिल्कुल उल्टा होता है, विषय- करने से गर्मी और सूजाक के घाव फरकर जो भयानक यन्त्रणा देते हैं उसे भुक्तभोगी है जान सकता है। आतशक या सूजाक के रोगी का कर्तव्य है कि रोग आराम होने के भी दो-चार महीने तक सम्भोग न करे। क्योंकि विषय-भोग के कारण कच्चे घावों का फटना बहुत सम्भव है, आतशक का विष शरीर में घुसने के बाद दस दिन के भीतर रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, पहले मसूर जैसा दाना प्रकट होता है फिर यह दान बड़ा आकार धारण करके फूल जाता है, इसके बाद इसमें मवाद होकर जख्म महो लगता है, जख्म के चारों ओर किनारा कठिन और ऊंचा तथा मध्य भाग धीरे-धीरे गहन होता जाए तो इसको कठिन आतशक कहते हैं, इसके विपरीत मामूली घाव हो से साधारण आतशक कहलाता है। आतशक के कुछ दिन बाद ही बन्द (बागी) उत्तन होती है, कठिन उपदंश के बाद ही कुछ विशेष कष्ट नहीं देती, परन्तु साधारण आतशक के बाद उत्पन्न होने वाली बागी बहुत कष्ट देती है। आतशक का जहर शरीर में फैलने से दूषित हो जाता है, शरीर में खुजली और तांबे के रंग की

  24. छोटी-छोटी फुसियां उत्पन्न हो जाती हैं। शरीर की संधि-संधि (जोड़-जोड़) में दर्द और सूजन हो जाती है। जिसको संधिवात या गठिया वात कहते हैं। हाथ, पैर और आंखों में जलन, गले या नाक में घाव, सिर के बालों का उड़ना, ज्वर, राजयक्ष्मा आदि अनेक उपद्रव होते हैं। • आतशक के रोगी को बिना किसी संकोच के शुद्ध पारा का सेवन नोचे लिखो विधि से करना चाहिए। शुद्ध पारा का सेवन इस रोग में अत्यन्त लाभ पहुंचाता है। आतशक के रोगी को पहले जुलाब देकर पेट साफ कर लेना चाहिए, दवा सेवन के बीच-बीच में भी जुलाब देना उचित है। आतशक होते ही जननेन्द्रियों के मुंड का चर्म उल्टा कर देना चाहिए। प्राय: देखा गया है कि गर्मी के कारण जननेन्द्रिय मुंड फूल जाता है और इस हालत में चर्म उल्टा नहीं किया जा सकता है। घाव भीतर हो भीतर सड़कर गलने लगता है। यदि चर्म उल्टा न किया गया हो और सूजन आ गई हो तो त्रिफला के गुनगुने काढ़े में जननेन्द्रियों को डुबाकर रखना चाहिए। त्रिफला के गुनगुने काढ़े में जननेन्द्रियों को डुबाकर रखने से शोथ कम हो जाता है। शोथ कम होते ही मुंड की टोपी उलट देनी चाहिए। यदि इससे भी ठीक न हो तो अग्र भाग का चर्म काट देना चाहिए। आतशक के घावों को त्रिफला का काढ़ा या नीम के पत्तों के पानी से प्रतिदिन दो बार धो देना उचित है, गरम पानी में जरा पोटाश ऑफ परमैग्नेट मिलाकर घोना भी अच्छा है, घाव को अच्छी

  25. तरह धोकर रस कपूर, घी या वैसलीन मिलाकर लगा दें, इससे धाव अच्छे हो जाते हैं। इसमें नीचे लिखी दवाओं का सेवन परम लाभकारी है। • अमीर रस- 300 ग्राम सेंधा नमक को खूब महीन पीसें, इसमें 175 ग्राम नमक लेकर तवे पर चार इंच में गोलाकार में बिछा दें उसमें नमक सच्चे गोटे (चांदी के तार 6 ग्राम रखकरफिर उस पर रस कपूर 12 ग्राम, रुमी सिंगरफ 12 ग्राम, दालचिकना 12 आप इनतीनों को छोटे-छोटे टुकड़े करके डाल दें। फिर उसके ऊपर गोटे का तार 6 ग्राम कालकर चीनी मिट्टी के बड़े प्याले से ढक दें और पूर्व शेष 125 सेंधा नमक में कतीरा भाई 300 ग्राम मिलाकर पानी से पीसकर संधिरोध कर दें, इस तवे को चूल्हे पर रखकर और पहर अग्नि पर पकाएं, प्याले के ऊपर वाले भाग को भीगे कपड़े रखकर ठंडा रखें, पोतल होने पर प्याले को उलटकर दवा को ग्रहण कर लें, इसमें पारे के कुछ कण होते हैं। उनसे भय न करें। यह दवा 125 या 250 मिग्रा. को मुनक्का में भरकर रोगी को निगलने को दें, इसे दांत से न चबाएं। खाने को गेहूं की रोटी बिना नमक, दूध, चीनी दें या फिर भात और दूध चीनी दें, अन्य सब चीजों से सख्त परहेज रखें, इससे आतशक 7-9 रोज में शर्तिया अच्छा होता है, साथ ही आतशक के कारण होने वाली गठिया वात ठीक हो जाती है। आतशक के कारण सारे शरीर में फोड़े होकर बहने लग गए हों तो इससे शीघ्र आराम होगा, दवा

  26. खाने से मुंह आ जाए तो ककोड़ (बबूल) की छाल के काई से कुल्ला करें या घावों पर पपरी या कत्था पीसकर डालें, आराम हो जाएगा। आतशक की यह बहुत अच्छी प्रामाणिक दवा है। • 3 ग्राम रुमी सिंगरफ 6 भाग करें और एक भाग में तम्बाकू का जर्दा मिलाकर हुक्का (गुड़गुड़ी) की तरह पीएं, इस तरह सुबह और शाम करके 3 दिन में सबको पी डालें। • पथ्य – बिना नमक रोटी, गेहूं का दलिया अथवा भुने चने के सिवाय और सब चीजें निषेध हैं, गुड़, तेल, लाल मिर्च, खट्टा, मिठाई आदि छः माह तक नहीं खानी चाहिए, इससे भयानक से भयानक आतशक शर्तिया अच्छा हो जाता है। दवा खाने के बाद शुद्ध गन्धक या रक्तशुद्धिकारक अरख का सेवन करना चाहिए। • सिंगरफ 12 ग्राम, रस कपूर 6 ग्राम, तूतिया 24 ग्राम और मुर्दाशंख 24 ग्राम- इन चारों दवाओं को महीन पीसकर 408 ग्राम मोम गलाकर उसमें मिला दें। फिर उसमें कपड़े की सात बत्तियां डालकर मोमबत्ती के आकार में बना लें, रोगी को बेंत वाली कुर्सी पर नंगा बैठाकर कुर्सी के नीचे अंगारों पर उक्त बत्ती रखकर शरीर को मोटे कपड़े से ढंक दें, सिर्फ गर्दन खुली रहने दें। जननेन्द्रियों को धुआं लगना चाहिए। लगभग एक घंटे में यह बत्ती धुआं देकर खत्म हो जाएगी, इससे बहुत पसीना बहेगा, यह चमत्कारी दवा है।

  27. भयानक उपदंश में धुआं से आराम हो जाता है। भोजन के लिए ताजा दूध और भात देना चाहिए। • रस कपूर 6 ग्राम बहुत महीन चूर्ण करके 60 ग्राम घी या वैसलीन में मिला दें, यह आतशक के घाव की शर्तिया मलहम है। रस कपूर की जगह केलोमल (Colomel) भी डाल सकते हैं। • पथ्यापथ्य – साथ में ज्वर होने से रोगी को दूध आदि का पथ्य देना चाहिए। जब तक घाव अच्छा न हो जाए तब तक मछली व मीठा खाना मना है, रोगावस्था में सम्भोग की इच्छा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जननेन्द्रियों के उत्तेजित होने पर पुनः घाव होने का भय रहता है।Read more…

More Related