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The Meaning Of The Attainment Of Brahma By Virtue And The Path Of Non-Virtue

Sanatana Dharma mentions two ways to attain Brahmatva. One is Saguna and the other is Nirguna. Saguna means worshiping the shape of Brahm. That is to worship them in some form. Such as Rama and Krishna etc. The worshipers of Nirguna Brahman believe that there is no end to God nor is it infinite.

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The Meaning Of The Attainment Of Brahma By Virtue And The Path Of Non-Virtue

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Presentation Transcript


  1. सगुणविनगु?णमाग?सेब्र??वकीप्राि?त काअथ? सनातन धम? म? ब्र??व को प्रा?त करने क े दो माग? बताए गए ह?। एक है सगुण और दूसरा िनगु?ण। सगुण से ता?पय? है ब्र? क े आकारकीउपासनाकरना।अथ?त्उ?ह?िकसी?पम?पूजना। जैसे – रामवक ृ ?णआिद। िनगु?ण ब्र? क े उपासकॲ का मानना है िक ई?र का न अंत है और न ही आिद वह अनंत है। िबना िकसी शत? िकसी भी ?प म? उसकी साधना की जा सकती है। लेिकन वा?तव म? ब्र? क े सा?ा?कार क े दोनॲ माग? एक ही ह?। यािन सगुण से ही ?यि?त िनगु?ण ब्र?कीओरबढ़ताहै। यह एक तरह से अ?यास है। यानी जबतक हम क ृ ?ण की कथा म? कहानी ढूंढते रह?गे तब तक क ृ ?ण?व क े प्रेम और वा?स?य की अनुभूित ही नहीं कर?गे। लेिकन, जब हम अपने िचंतन अ?या?म, ?यान और योग की शि?त से क ृ ?ण कथा का पान करने लग?गे, तब

  2. बोध होगा िक वह ?प उपासना का जिरया मा? है और ब्र? तो हर जगह िव?मान है उसी िदन हम? ब्र? का सा?ा?कार भी हो जाताहै। िनराकारब्र??याहै वा?तव म? ई?र िनराकार ही है, वह िकसी भी आकार म? नहीं बंधता। सम?त प्राणीमा? और संसार की ऊज? का ??ोत उसी ई?र म? िव?मान है जो िनराकार है। जो ब्र? है और उसे िसफ? महसूस ही िकया जा सकता है। लेिकन, जो कोई भी ई?र को िकसी ?पम?देखनेकीकोिशशकरताहैवहसंसारकीमायासे भीकभीमु?तनहींहोपाता। हमन? अपने वेदो और पुराणॲ म? ऋिषयॲ को तप और साधना म? लीन देखा है। वह ब्र? क े िकसी आकार क े उपासक न होकर अपनी ?यान साधना से उस ऊज? को महसूस करते ह? जो इस सम?त ब्र??ड म? िनिहत है। इसीिलये ही ?यान और योग को ब्र??वप्राि?तकामाग?भीबतायागयाहै। आ?मासेपरमा?माकामाग? यह एक तरीक े से लंबे समय का अ?यास है जो सगुण ब्र? से होकर िनगु?ण ब्र? तक जाता है और मानव जाित को बंधन मु?त करता है। सनातन सं?क ृ ित म? भी इन दोनॲ माग?ं को ब्र? माग? क े पड़ाव की तरह पेश िकया गया है। िजस तरह से एक छोटे बालक को आरंभ म? िकताब पकड़ाई जाती है, िजससे वह ककहरा सीखता है। लेिकन, अपने अनुभव और अ?यास से एक समय क े बादवहिबनािकताबहीउसककहरेकोपढ़ताहै। ई?र यािन ब्र? भी ऐसा ही है। िजसे अनुभव और अ?यास से पाया जा सकता है। लेिकन, जो ?यि?त ताउम्र ई?र को िकसी आकार और देवालय म? खोजने की कोिशश करते ह?, वह उस बुजुग? की तरह होते ह? िजसक े हाथ म? क?ा एक की पु?तक पकड़ा दी गयीहो।?यूँिक, ई?रिसफ?एकउज?हैजोकण-कण म?बसीहुईहै। हमारी पौरािणक कथाओं म? आ?मा को परमा?मा भी बताया गया है, यािन िक आ?मा से होकर ही परमा?मा तक का माग? प्रा?त िकया जा सकता है। आ?मा को न ही काटा जा सकता है, न ही जलाया या िभगोया जा सकता है। परमा?मा की तरह ही आ?मा का भी कोई ?प नहीं है, वह िसफ? शरीर को चलाने वाली उज? है जो ब्र??ड म? भ्रमण करती रहती है। इसिलये िनगु?ण ब्र? की प्रि?त सेपहलेआ?माक ेसा?ा?कारकीज?रतहै। Source

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